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Sleep Awareness Week 2024: एक्सपर्ट से जानें आखिर क्यों जरूरी है अच्छी नींद लेना!

बीते दिनों नेशनल क्रिएटर अवार्ड समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पर्याप्त और अच्छी नींद के महत्व पर भी जोर दिया था। इससे मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों को निपटने के साथ-साथ स्वस्थ और निरोगी जीवन की नींव तैयार होती है। नींद का हमारे स्वास्थ्य के साथ किस हद तक है जुड़ाव और अच्छी नींद के लिए हमें क्या करने की है जरूरत आइए जानते हैं...

By Jagran News Edited By: Ruhee Parvez Updated: Mon, 11 Mar 2024 06:30 PM (IST)
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10 से 16 मार्च तक नींद जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है।
नई दिल्ली। Sleep Awareness Week 2024: अगर रात में नींद अच्छी न आए, तो अगला पूरा दिन खराब हो जाता है। ताजगी का एहसास दिलाने वाली अच्छी नींद हमारे निरोग और आनंदपूर्ण जीवन के लिए बहुत जरूरी है। आज दैनिक जीवन की व्यस्तता और कृत्रिमता ने जीवनशैली को इतना अव्यवस्थित कर दिया है कि गहरी नींद लेने की चाहत किसी सपने की तरह हो गई है। आमतौर पर नींद को निष्क्रिय प्रक्रिया मान लिया जाता है, क्योंकि इस दौरान हम शारीरिक तौर पर सक्रिय नहीं होते। यह गलत धारणा है। दरअसल, नींद के दौरान शरीर का मरम्मत तंत्र सक्रिय होता है, जो हमें अगले दिन तरोताजा होने के लिए तैयार करता है।

नींद का हमारे स्वास्थ्य के साथ किस हद तक है जुड़ाव और अच्छी नींद के लिए हमें क्या करने की है जरूरत, इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए ब्रह्मानंद मिश्र ने बातचीत की डॉ. देबाशीष चौधरी (विभागाध्यक्ष, न्यूरोलॉजी, जीबी पंत अस्पताल, नई दिल्ली) से।

जीवन संतुलन का आधार है नींद

हमारी चेतन और निद्रा की प्रक्रिया में थोड़ा अंतर होता है। दिनभर कामकाज के दौरान मस्तिष्क में जो रसायन निकलते हैं, उससे शरीर में काफी बदलाव होता है। लेकिन, जब हम गहरी नींद में होते हैं तो बहुत सारे न्यूरोट्रांसमीटर में परिवर्तन और सुधार होने लगता है। नींद का मुख्य कार्य ही यही है कि शरीर में होमोस्टेसिस यानी संतुलन को बनाकर रखा जाए।

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मनोभावों का शरीर पर असर

शरीर में मुख्य रूप से दो तरह का कार्य होते हैं, एक जो हम अपनी इच्छानुसार करते हैं और दूसरा स्वत: होने वाला कार्य (आटोनामिक नर्वस सिस्टम)। हमारे रोजमर्रा के जीवन का तनाव, रक्तचाप, पल्स में बदलाव, कभी व्यायाम या कभी बैठे रहने की आदत, कभी गुस्सा तो कभी खुश होने की दशा जैसे कारणों से शरीर में बदलाव आता है। इन सभी को हमारा आटोनामिक नर्व्स सिस्टम संतुलित बनाकर रखता है। नींद में ये सारे कार्य जब अवचेतन दशा में चलते हैं, तो शरीर पुनः आरामदायक स्थिति प्राप्त कर लेता है यानी पुनर्निर्माण से फिर संतुलन बन जाता है। बनने-बिगड़ने की यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

मस्तिष्क तय करता है सोने-जागने का चक्र

मस्तिष्क का एक अहम हिस्सा है हाइपोथैलमस, जो मुख्य नियंत्रण प्रणाली की तरह कार्य करता है। इसमें एक केंद्रक होता है। यह जागरण और नींद दोनों के चक्र को व्यवस्थित करता है। इसमें बहुत सारे रसायन आते हैं। इसमें एक बहुत सामान्य रसायन होता है-मेलाटोनिन। सुबह जब सूरज उगता है और शाम को ढलता है, तो रोशनी में बदलाव के अनुरूप ही हार्मोन कम या ज्यादा होता है। हाइपोथैलमस सुबह-शाम शरीर में जो हार्मोन रिलीज करता है, उसकी मात्रा में फर्क आता है। यह पूरी प्रक्रिया में नींद और शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

कई चरणों में पूरी होती है नींद

नींद कई सारे चरणों में पूरी होती है। एक स्टेज होता है-रैपिड आइ मूवमेंट स्लीप (रेम स्लीप)। इसमें आंखें इधर-उधर मूव करती हैं। शरीर में तनाव बहुत कम (हाइपोटोनिया) हो जाता है। यह शरीर के लिए बहुत जरूरी है, ताकि रक्त संचार, ऊर्जा सभी को संरक्षित कर शरीर अगले दिन के लिए तैयार हो। आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ रेम स्लीप का प्रतिशत कम होने लगने लगता है। इससे गुणवत्तापूर्ण नींद में कमी आ जाती है। नींद खराब होने लगती है। ऐसे में छह-सात घंटे सोने के बाद भी सुबह ताजगी महसूस नहीं होती।

नींद की कमी और अधिकता भी हानिकारक

बहुत कम और बहुत अधिक नींद दोनों ही हानिकारक है। इससे जीवन की गुणवत्ता और आयुकाल दोनों ही प्रभावित होते हैं। जो लोग दो या तीन घंटे की ही नींद लेते हैं या जो आठ घंटे से अधिक सोते हैं, उनके बीमार होने की प्रबल आशंका रहती है। ध्यान रखें शरीर का अपना एक संतुलन है, यह बिगड़ना नहीं चाहिए। हालांकि, नींद के पीछे आनुवांशिक कारण भी होते हैं। कुछ लोग कम सोकर यानी चार-पांच घंटे की नींद से भी तरोताजा महसूस करते हैं, तो वहीं कुछ लोगों को सात-आठ घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। यह शरीर की आनुवांशिकी कार्यप्रणाली पर भी निर्भर करता है।

जीवन की व्यवस्तता ने बढ़ाई चुनौती

जैसे-जैसे इंसान ने प्रगति की, उसके जीवन में व्यस्तता और कृत्रिमता ने सेंध लगा दी। इलेक्ट्रिसिटी की खोज से इंसानों ने दिन के साथ-साथ रातों में भी काम करना शुरू कर दिया। पहले रात काम करने के लिए नहीं होती थी। नाइट शिफ्ट से लोगों के मस्तिष्क पर असर पड़ा। रातों में काम करने वाले सोचते हैं कि दिन में सोकर नींद पूरी कर लेंगे। लेकिन, ऐसा होता नहीं, क्योंकि सोने-जागने का चक्र बिगड़ चुका होता है। हाइपोथैलमस सही संतुलन नहीं बना पाता। नींद पूरी नहीं होने के कारण तनाव, थकान, कमजोरी होती है, जिससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि डायबिटीज, हाइपरटेंशन होने की आशंका अधिक रहती है। नींद न पूरी होने के कारण सड़कों खासकर एक्सप्रेसवे पर दुर्घटनाओं की संख्या भी काफी बढ़ गई है।

एकाग्रता में कमी की चिंता

आज लोग काफी समय कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर बिताते हैं, इससे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम जैसी समस्याएं आती है। लोगों को आंखों में जलन, पानी आने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, थकान और मानसिक क्षमता भी प्रभावित हो रही है। एकाग्रता कम हो जाने से कार्यक्षमता में गिरावट आती है। अगर कोई कार्य तरोताजा होकर आधे घंटे में करेंगे, तो नींद कम होने पर उसी कार्य को करने में दो घंटे का भी समय लग सकता है।

ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया से दिनचर्या की समस्या

सुबह देर से उठने से दिनचर्या प्रभावित होती है। इससे सुबह की सैर, व्यायाम-प्राणायाम सब छूट जाता है। सुबह उठकर भागना होता है। काम के दौरान भी आलस बना रहता है, नींद के झोंके आते रहते हैं। यह सब सोने-जागने का चक्र बिगड़ने के कारण होता है। दूसरा कारण है आब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया। इसमें सोते समय श्वसन प्रणाली में व्यवधान आता है जिससे नींद खराब होती है। नींद के दौरान ऑक्सीजन की कमी होने से अचानक नींद खुल जाती है। यह बार-बार होता है और पता नहीं लगता है। रात में कई बार नींद टूटती है। आमतौर पर खर्राटे के कारण नींद खराब होती है। इससे हाइपरटेंशन और डायबिटीज का जोखिम बढ़ जाता है।

नींद खराब होने के और भी हैं कारण

जो लोग मोटापे का शिकार हैं, पर्याप्त शारीरिक श्रम नहीं करते, रात के समय में अल्कोहल का नियमित सेवन करते हैं, रोजाना धूम्रपान करते हैं यानी जिनकी दिनचर्या ही इस तरह बन चुकी है, उनकी नींद खराब होना स्वाभाविक है। इससे शरीर में अनेक तरह की समस्याएं-रक्तचाप, मधुमेह होने की आशंका रहती है।

बेहतर नींद के लिए क्या करें

  • स्लीप हाइजीन के महत्व को समझना आवश्यक है।
  • सोने-जागने का एक समय निर्धारित हो।
  • जब सोने का समय हो जाए, तो सभी तरह के स्क्रीन टाइम, नोटिफिकेशन, मोबाइल को एक तरफ रख दें।
  • सोने से पहले तय करें कि बिस्तर और सिरहाना आरामदायक है कि नहीं।
  • सोने से पहले लाइट पूरी तरह से बंद कर दें। लाइट, टीवी या मोबाइल चल रहा है, तो स्लीप हाइजीन को कोई फायदा नहीं।
  • स्लीप हाइजीन की आदत डालने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।
  • आजकल मोबाइल में बेड टाइमर रिमांडर की सुविधा भी होती है, इसका प्रयोग करें।

खाने के बाद तुरंत न सोने जाएं

  • भोजन के बाद कम से कम 15-20 मिनट थोड़ा-बहुत टहलना आ‍वश्यक है।
  • इससे शरीर में जो भोजन गया है, उसका पाचन शुरू हो जाता है, साथ मस्तिष्क में रक्त संचार व्यवस्थित होने लगता है।

नींद की दवा खुद से न लें

  • नींद नहीं आने पर कुछ लोग केमिस्ट शॉप से लेकर नींद की गोली (जैसे कि अलप्राक्स आदि) लेना शुरू कर देते हैं।
  • कई बार लोग एंटी-एंजाइटी दवा शुरू कर देते हैं, जिससे उसकी आदत बन जाती है।
  • इस तरह की दवाओं के नियमित सेवन से डोज बढ़ने लगता है। कई बार तो दवा लेने के बाद भी नींद नहीं आती। अगर नींद की समस्या आ रही है, तो डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
  • घर में बच्चों को भी अच्छी नींद के बारे में जागरूक करें।
  • ज्यादातर लोग छह से सात घंटे सोकर तरोताजा महसूस करते हैं। यह नींद शरीर के लिए लाभदायक है।

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