Stroke: क्या आप भी हल्के में लेते हैं माइग्रेन का दर्द, तो हो सकते हैं इस जानलेवा बीमारी का शिकार
ब्रेन स्ट्रोक एक गंभीर कंडिशन है जिसमें व्यक्ति की जान जाने का खतरा सबसे अधिक रहता है। हाल ही मे एक स्टडी में पाया गया कि स्ट्रोक के पीछे कुछ नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स भी शामिल हो सकते हैं। इन वजहों से युवाओं में सबसे ज्यादा स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं। आइए जानते हैं क्या पाया गया इस स्टडी में और कैसे स्ट्रोक का पता लगाया जा सकता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Stroke: स्ट्रोक एक खतरनाक सेरेब्रोवैस्कुलर कंडिशन है, जो व्यक्ति के दिमाग तक सही मात्रा में खून न पहुंचने की वजह से होता है। इसकी वजह से ब्रेन सेल्स मरने लगते हैं, जिसके कारण दिमाग के प्रभावित हिस्से में स्ठायी नुकसान या मौत होने की संभावना रहती है। स्ट्रोक के मामले धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं, जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
लाइफस्टाइल और खान-पान स्ट्रोक का अहम कारण हो सकते हैं, लेकिन हाल ही में एक स्टडी सामने आई है, जिसके मुताबिक कुछ नॉन ट्रेडिशनल फैक्टर्स भी स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं, जिनमें माइग्रेन भी शामिल है। इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं फैक्टर्स के बारे में बताने वाले हैं। आइए जानते हैं क्या पाया गया इस स्टडी में।
सर्कुलेशन: कार्डियोवैस्कुलर क्वालिटी एंड आउटकम्स में पब्लिश हुई स्टडी में पाया गया कि युवाओं में नॉन ट्रेडिशनल फैक्टर्स की वजह से स्ट्रोक का खतरा अधिक रहता है। यह पता करने के लिए कि 55 साल से कम उम्र के व्यक्तियों में स्ट्रोक के रिस्क फैक्टर्स क्या हो सकते हैं, लगभग 2600 स्ट्रोक और 7800 कंट्रोल्ड मामलों का विश्लेषण किया गया।
यह भी पढ़ें: मौसम में बदलाव की वजह से गंभीर हो सकती है माइग्रेन की समस्या, बचाव के लिए अपनाएं ये टिप्सइसके बाद पता चला कि पुरुषों में स्ट्रोक के नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैकटर्स में माइग्रेन, किडनी फेलियर और थ्रॉम्बोफिलिया शामिल थे, तो वहीं महिलाओं में माइग्रेन, थ्रॉम्बोफिलिया और मैलिग्नेंसी स्ट्रोक की वजहों में शामिल थे। इतना ही नहीं, स्ट्रोक के ट्रेडिशनल रिस्क फैकटर्स में हाइपरलिपिडेमिया ( कोलेस्ट्रॉल और फैट की मात्रा ज्यादा होना), हाई ब्लड प्रेशर और तंबाकू का सेवन सबसे आम कारण थे।
नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स में माइग्रेन की वजह से स्ट्रोक के सबसे ज्यादा मामले पाए गए। वैसे तो, नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स वे फैक्टर्स होते हैं, जिनकी वजह से काफी कम रिस्क होता है, लेकिन इस स्टडी के अनुसार नॉन ट्रेडिशनल फैक्टर्स की वजह से 18-34 साल के युवाओं में स्ट्रोक के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं। हालांकि, उम्र बढ़ने के साथ यह खतरा कम होने लगते हैं, लेकिन 44 साल के बाद के व्यक्तियों में ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स को स्ट्रोक के लिए ज्यादा जिम्मेदार पाया गया।
क्या है स्ट्रोक?
क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक, स्ट्रोक एक ऐसी कंडिशन है, जिसमें व्यक्ति के दिमाग के किसी एक हिस्से तक ब्लड नहीं पहुंच पाता है। ब्लड न मिलने की वजह से उस हिस्से में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और वहां के सेल्स मरने लगते हैं। इस कारण, दिमाग बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाता है और ब्रेन डैमेज होने लगता है।स्ट्रोक किसी आर्टरी में ब्लॉकेज होने या दिमाग में ब्लीडिंग होने की वजह से होता है। कई बार कोलेस्ट्रॉल या फैट बढ़ने की वजह से आर्टरी में ब्लॉकेज हो जाती है, जिस कारण दिमाग तक ब्लड फ्लो में रुकावट होने लगती है। इस वजह से होने वाले स्ट्रोक को इस्केमिक स्ट्रोक कहते हैं। इसका दूसरा कारण ब्लड प्रेशर अधिक होने या किसी चोट की वजह से दिमाग में ब्लीडिंग होने लगती है, जिस वजह से स्ट्रोक आ सकता है। इस स्ट्रोक को हीमोरेजिक स्ट्रोक कहा जाता है। स्ट्रोक की वजह से स्ठायी ब्रेन डैमेज या मौत होने का खतरा भी रहता है।कैसे करें स्ट्रोक का पता?
किसी को स्ट्रोक आया है, इसका पता लगाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। इस नियम को BE FAST कहा जाता है।- व्यक्ति को खड़े होने के लिए कहें और ध्यान दें कि वह संतुलन बना पा रहा है या नहीं।
- उस व्यक्ति से पूछें कि उसके धुंधला या हर चीज दो तो नजर नहीं आ रही हैं।
- व्यक्ति को स्माइल करने के लिए कहें और देखें कि कहीं उसके चेहरे का एक हिस्सा ड्रूप तो नहीं कर रहा है।
- उसे अपने दोनों हाथ उठाने को कहें और देखें कि कहीं एक हाथ नीचे की तरफ ड्रूप तो नहीं हो रहा।
- व्यक्ति से कुछ बोलने के लिए कहें और देखें कि कहीं उसे बोलने में तकलीफ तो नहीं हो रही है।
- अगर इनमें से कोई भी लक्षण नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।