गरीबों से ज्यादा रईसों को अपनी चपेट में लेती हैं ये जानलेवा बीमारियां, जानकर आपके भी उड़ जाएंगे होश!
Cancer एक गंभीर बीमारी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है। आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि ऐसी बीमारियां अमीरों को ज्यादा पकड़ती हैं क्योंकि गरीब तो कम सुख-सुविधाओं में ही अपना जीवन गुजारता है। इस बीच ताजा स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि कैंसर का खतरा गरीबों की तुलना में अमीर लोगों को ज्यादा होता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कैंसर को लेकर सामने आई ताजा स्टडी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आप भी सोच रहे होंगे कि बेहतर लाइफस्टाइल और तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद भी इस जानलेवा बीमारी का खतरा अमीरों को ही क्यों ज्यादा रहता है? बता दें, कि शोधकर्ताओं ने बताया है कि डायबिटीज, डिप्रेशन और कैंसर का जोखिम (Higher Risk Of Cancer) आपकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर कर सकता है। स्टडी बताती है, कि एजुकेशनल अचीवमेंट और व्यवसाय के आधार पर कमजोर (निम्न) सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले लोगों में डायबिटीज और कार्डियोवैस्कुलर डिजीज जैसी जटिल बीमारियां होने की संभावना ज्यादा होती है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं इस बारे में।
2 लाख 80 हजार लोगों पर हुई स्टडी
हाल ही में, सामने आई एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि आनुवांशिक रूप से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंकी के शोधकर्ताओं ने बताया कि अमीरों को ब्रेस्ट, प्रोस्टेट और अन्य तरह के कैंसर का खतरा जेनेटिकली ज्यादा होता है। दरअसल, 2 लाख 80 हजार लोगों के जीनोमिक्स सामाजिक-आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य डेटा का परीक्षण किया गया। यूरोपीय सोसायटी ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स के वार्षिक सम्मेलन में इससे जुड़े आंकड़े पेश किए गए और यह सिफारिश की गई कि पॉलीजेनिक जोखिम स्कोर को स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल में जोड़ने से कई बीमारियों का पता लगाने में मदद मिल सकती है।यह भी पढ़ें- नहीं होना चाहते लिवर की बीमारियों का शिकार, तो Healthy Liver के लिए डाइट में शामिल करें ये 5 चीजें
इन बीमारियों का है ज्यादा जोखिम
शोध में बताया गया है कि डायबिटीज, डिप्रेशन और कैंसर का जोखिम आपकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर कर सकता है। अमीरों में रूमेटोइड गठिया, फेफड़े के कैंसर, डिप्रेशन और शराब सेवन विकार जैसी कई अन्य जटिल बीमारियों के विकसित होने की आनुवंशिक (जेनेटिक) संवेदनशीलता (ससेप्टिबिलिटी) भी अधिक थी। फिनलैंड के हेलसिंकी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के शोध के अनुसार, उच्च स्तर वाले लोगों में कुछ प्रकार के ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है। "यह समझना कि रोग जोखिम पर पॉलीजेनिक स्कोर का प्रभाव संदर्भ पर निर्भर है, आगे स्तरीकृत स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल की ओर ले जा सकता है।"यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन फिनलैंड (एफआईएमएम) में पोस्ट डॉक्टरल शोधकर्ता फियोना हेगेनबीक ने कहा, "यह समझना कि डिजीज रिस्क पर पॉलीजेनिक स्कोर का प्रभाव संदर्भ पर निर्भर करता है और आगे स्ट्रेटिफाइड स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल को जन्म दे सकता है।"यह भी पढ़ें- AC का ज्यादा इस्तेमाल कहीं आपको भी न बना दे इन बीमारियों का शिकार, डॉक्टर कर रहे सावधान!