Surrogacy: क्या कहता है सरोगेसी का नया नियम, जानें इससे जुड़ी सभी बातें
सरोगेसी एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी अन्य महिला की कोख को किराए पर लेकर बच्चे को जन्म दिया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल वे दंपती करते हैं जो किसी मेडिकल कारण से बच्चे को जन्म नहीं दे सकते हैं। हाल ही में इससे जुड़े नियमों में बदलाव हुआ है। जानें क्या है सरोगेसी और क्या है इसका नया नियम।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Surrogacy: माता-पिता बनने की खुशी को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। अपनी संतान के जन्म से पहले ही माता-पिता उसके सपने सजाने लग जाते हैं, लेकिन कई बार कुछ दंपती, किन्हीं मेडिकल कारणों से, संतान को जन्म देने में असमर्थ होते हैं। ऐसे कपल्स की मदद करने के लिए साइंस ने आर्टिफिशयल इंसेमिनेशन से लेकर सरोगेसी जैसी कई तकनीकों का आविष्कार किया है।
सरोगेसी एक ऐसी ही तकनीक है, जिसकी मदद से असमर्थ दंपती, अपने माता-पिता बनने के सपने को पूरा कर सकते हैं। हालांकि, इस तकनीक का दुरुपयोग न हो, इसलिए हमारे देश में सरोगेसी से जुड़े कुछ नियम हैं, जिन्हें हर दंपती को मानने पड़ते हैं।
हाल ही में, केंद्र सरकार ने सरोगेसी के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं, जिसके बाद अक्षम दंपतियों को और राहत मिली है। आइए जानते हैं, क्या होती है सरोगेसी और क्या कहते हैं इससे जुड़े नए नियम।
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क्या है सरोगेसी?
सरोगेसी एक ऐसी तकनीक है, जिसमें किसी अन्य महिला की कोख को किराए पर लेकर सरोगेसी करवाने वाले दंपती अपने बच्चे को जन्म देते हैं। इस तकनीक की मदद वे दंपती लेते हैं , जो किसी मेडिकल कारण से कंसीव करने में असमर्थ होते हैं। इसमें सरोगेट और सरोगेसी करवाने वाले कपल के बीच एक कानूनी समझौता है, जिसके तहत इस बच्चे के जन्म के बाद, कानूनी रूप से उसके माता-पिता सरोगेसी करवाने वाला दंपती ही होगा और बच्चे पर सिर्फ उनका अधिकार होगा।सरोगेसी में सरोगेट महिला अपने या फिर डोनर के अंडाणु के जरिए गर्भधारण करती है और उस बच्चे के जन्म तक, अपने गर्भ में उसका पालन-पोषण करती है। बच्चे के जन्म के बाद उसका उस बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रहता।
दो प्रकार की होती है सरोगेसी…
सरोगेसी दो प्रकार की होती हैं। पहला पारंपरिक सरोगेस और दूसरा जेस्टेशनल सरोगेसी। पारंपरिक सरोगेसी में जिस महिला की कोख को किराए पर लिया जाता है, उसी के अंडाणु का इस्तेमाल कर फर्टिलाइजेशन होता है, यानी सरोगेट ही बच्चे की बायोलॉजिकल मां होती हैं। इसमें बच्चे के पिता के सपर्म की मदद से सरोगेट महिला के अंडाणु को फर्टिलाइज किया जाता है और उस भ्रूण को महिला अपने गर्भ में धारण करती है। इस सरोगेसी में भी बच्चे को सभी कानूनी हक सरोगेसी करवाने वाले दंपती के पास ही होते हैं।जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु को आपस में फर्टिलाइज करवा कर, सरोगेट के गर्भ में रखा जाता है। इस सरोगेसी में सरोगेट महिला का बच्चे से कोई बायोलॉजिक संबंध नहीं होता। इस प्रक्रिया में आमतौर पर आईवीएफ (IVF) की मदद से अंडे और सपर्म को फर्टिलाइज करवाया जाता है, जिसके बाद उस भ्रूण को महिला अपने गर्भ में धारण करती है।