सेहत का खजाना, भारतीय खाना… जानें कैसे पारंपरिक भारतीय थाली है सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद
हाल में जारी लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट-2024 के अनुसार भारतीय खान-पान का ढंग दुनिया में सबसे सस्टेनेबल (India sustainable diet) यानी पर्यावरण के लिए अनुकूल है। आपको बता दें कि दुनियाभर में खान-पान में तेजी से बदलाव हो रहा है जिसकी वजह से मोटापा और अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। इसी बारे में इस लेख में विस्तार से बताया गया है। आइए जानें।
जागरण डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय खानपान की विविधता जलवायु अनुकूलता के साथ-साथ सेहतकारी गुणों से भी समृद्ध है। उत्तर भारत में जहां प्रोटीन की प्रचुरता वाली अलग-अलग रंगों की दालों, फाइबर युक्त मौसमी सब्जियों, गेहूं, जौ, बाजरा, रागी, दलिया आदि का चलन है, तो वहीं दक्षिण भारत में चावल से तैयार इडली, डोसा, दाल, सांभर और चटनी का खूब प्रयोग होता है, वहीं पूर्वी-पश्चिमी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में मछली और कई तरह के मोटे अनाज का सेवन पौष्टिकता का आधार तैयार करता है। चर्चा कर रहे हैं ब्रह्मानंद मिश्र…
हाल में जारी लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट-2024 के अनुसार भोजन उपभोग का भारतीय तरीका पर्यावरण के सर्वाधिक अनुकूल है। रिपोर्ट सचेत भी करती है कि जिस तरह दुनियाभर में फैट और शुगर का सेवन बढ़ रहा है, उससे मोटापे की समस्या अब महामारी का रूप ले रही है, जो अनगिनत बीमारियों की जड़ भी है। वर्तमान में 2.5 अरब वयस्कों का वजन सामान्य से अधिक है और 89 करोड़ लोग तो मोटापे का शिकार हो चुके हैं। रिपोर्ट भारत के पारंपरिक अनाज को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रीय मिलेट कैंपेन का भी जिक्र करती है, जो सेहत और पर्यावरण अनुकूल खाद्य उपभोग पर बल देता है।
विविधता से भरे भारतीय भोजन, मसाले और पकवान स्वाद के साथ-साथ पौष्टिकता से भी परिपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि दुनियाभर के लोग यहां के स्थानीय भोजन को जानने-समझने को लेकर उत्सुक रहते हैं। लेकिन, हाल के कुछ दशकों में जिस तरह भारतीय भोजन में शुगर और कार्बोहाइड्रेट की अधिकता हुई है, उससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी पैदा हो रही हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस तरह के खानपान के बजाय पारंपरिक भोजन पर जोर देते हैं, जो शरीर की प्रतिरक्षा को मजबूती देने और तन-मन को बेहतर रखने में सहायक होते हैं। शरीर की असंख्य कोशिकाओं को विविध भोजन और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, इसलिए स्वस्थ रहने के लिए आपकी थाली में स्थानीय भोजन के साथ मौसमी सब्जियां, फल आदि भी होने चाहिए।
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भारतीय थाली में अनाज का महत्व
देश के अलग-अलग हिस्सों में बाजरा, ज्वार, नचनी, रागी समेत अनेक तरह के मोटे अनाज की परंपरा रही है। लो-कार्ब डाइट के इस दौर में लोग वजन घटाने के लिए चावल से परहेज शुरू कर देते हैं, पर इसमें सफलता मिले, यह जरूरी नहीं है। हमारे यहां दाल-चावल, राजमा-चावल खाने का चलन सदियों से है। ये प्रोटीन और आवश्यक अमीनो एसिड के बेहतर स्रोत होते हैं।
क्या है भारतीय थाली
पारंपरिक भारतीय थाली में आमतौर पर दो-तीन तरह की दालें, सब्जी, कुछ चावल या रोटी या फिर दोनों होते हैं। चटनी, सलाद, अचार और पापड़ भी थोड़ा-थोड़ा स्थान थाली में जरूर लेते हैं। लेकिन, रेस्त्रां संस्कृति ने थाली का आकार और भोजन अनुपात दोनों को ही बिगाड़ दिया है। जानते हैं थाली के मुख्य घटक :- तेल : सरसों, मूंगफली और नारियल जैसे अनेक स्वास्थ्यप्रद तेल हमारे भोजन में प्रयोग किए जाते हैं। हालांकि, आज प्रसंस्करित खाद्य तेल स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक चुनौती पैदा कर रहे हैं।
- नमक : भारत में काला, गुलाबी और सेंधा प्रयोग होता है। बाद में रिफाइंड नमक प्रयोग बढ़ा, जो भोजन को अस्वस्थकर बना रहा है।
- करी : सही सामग्री और उचित मात्रा में तेल के साथ तैयार करी इम्युनिटी के लिए बेहतर मानी जाती है। इससे सूजन कम होती है। करी पत्ता, टमाटर, काली मिर्च, लहसुन, हल्दी और अन्य भारतीय मसालों से तैयार करी सेहत के लिए फायदेमंद है।
- गेहूं : यह धारणा है कि गेहूं सूजन का कारण बनता है, हालांकि यह निर्भर करता है कि उसकी प्रोसेसिंग कैसे हुई है। ब्रेड के बजाय घर में गेहूं के आटे से तैयार रोटी बेहतर है।
- आचार और चटनी : काला नमक और तेल से तैयार अचार को प्रोबायोटिक खाद्य माना जाता है। इसी तरह हरी पत्तियों, बीज आदि से बनने वाली चटनी स्वादिष्ट और सेहत से भरपूर होती है।