स्ट्रोक की वजह बन सकती है Atrial Fibrillation, एक्सपर्ट से जानें क्या है यह स्थिति और कैसे करें इससे अपना बचाव
तेजी से बदलती जीवनशैली लोगों को कई समस्याओं का शिकार बना रही है। इन दिनों दिल से जुड़ी समस्याएं बेहद आम हो चुकी हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन (Atrial Fibrillation) इन्हीं समस्याओं में से एक है अनियमित दिल की धड़कन की वजह बनती है। इतना ही नहीं यह स्ट्रोक का कारण भी बन सकती है। ऐसे में एक्सपर्ट से जानते हैं इससे जुड़ी सभी जरूरी बातों के बारे में-
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दिल हमारे शरीर का सबसे अहम अंग होता है। यह लगभग बंद मुट्ठी के आकार का एक अंग है, जो पूरे शरीर में खून पहुंचाने के लिए लगातार पंप करता है। हालांकि, इन दिनों कई वजहों से लोग दिल से जुड़ी समस्याओं का शिकार होते जा रहे हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन (Atrial Fibrillation) इन्हीं समस्याओं में से एक है। हार्ट खुद अपने इलेक्ट्रिक सिग्नल जेनरेट करता है, जिससे दिल धड़कना शुरू होता है, लेकिन इन सिग्नल्स में किसी भी तरह की अनियमितता दिल की धड़कन को प्रभावित करती है। इसे ही एट्रियल फिब्रिलेशन या एएफ कहा जाता है।
इस स्थिति में कुछ लोगों में घबराहट, चक्कर आना और थकान जैसे लक्षण नजर आते हैं। हालांकि, एएफ से पीड़ित लगभग 50% लोगों में कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसे साइलेंट एएफ के नाम से जाना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सीधे स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती है। इस स्वास्थ्य स्थिति के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने पटपड़गंज स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में कैथ लैब, कार्डियक साइंसेज में प्रधान निदेशक डॉ. मनोज कुमार से बातचीत की-
यह भी पढ़ें- लंबे समय तक ऑफिस में बैठना ले सकता है आपकी जान, बढ़ सकता है दिल की बीमारियों का खतरा
एएफ के रिस्क फैक्टर्स
इसे बारे में डॉक्टर बताते हैं कि समय के साथ, अनियमित पंपिंग के कारण खून दिल के ऊपरी चैंबर में जमा हो जाता है, जो खून के थक्कों की वजह बनता है। खून के यह थक्के अक्सर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हैं, जिससे मस्तिष्क तक पहुंचने वाले खून में रुकावट होने लगती है, जो स्ट्रोक का कारण बनती है। अध्ययन से पता चलता है कि 10% से 20% मरीजों में स्ट्रोक का कारण एट्रियल फिब्रिलेशन है। स्ट्रोक शारीरिक रूप से अक्षम कर सकता है, खासकर उम्रदराज लोगों को। हालांकि, एट्रियल फिब्रिलेशन का शिकार लोगों में इस स्ट्रोक को रोकना संभव है।
कार्डियोलॉजिस्ट्स 'CHADS2-VASc' स्कोर के जरिए एट्रियल फिब्रिलेशन वाले लोगों में स्ट्रोक के जोखिम की गणना करते हैं। यह स्कोर व्यक्ति की उम्र, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट फेलियर, अन्य हार्ट डिजीज और स्ट्रोक के इतिहास जैसी स्थितियों पर फोकस करता है। एएफ वाले लोग जिनका स्कोर 1 या इससे ज्यादा है, उन्हें एंटी-कोआगुलंट्स नामक दवाएं दी जाती हैं। ये दवाएं खून का थक्का जमने से रोकती हैं और स्ट्रोक को रोकने में मदद करती हैं।
स्क्रीनिंग, निदान और उपचार
डॉक्टर बताते हैं कि साइलेंट एएफ में, स्ट्रोक की रोकथाम एक चुनौती बन जाती है। ऐसे में हेल्थ एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले लोग, जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरॉइड की समस्या या कोई अन्य समस्या है, हृदय रोग के लिए नियमित जांच करानी चाहिए। एएफ की स्क्रीनिंग पल्स की पेल्पिटेशन और एक ईसीजी के जरिए की जाती है।