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बचपन तक छीन लेता है Autism, इन संकेतों से समय रहते करें अपने बच्चों में इसकी पहचान

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक विकासात्मक विकार है जो आमतौर पर बचपन में भी अपना शिकार बना लेता है। इसकी वजह से पीड़ित बच्चे के व्यवहार सोशल कॉन्टेक्ट और बातचीत करने की क्षमता प्रभावित होती है। इस बीमारी का कोई इलाज तो नहीं है लेकिन समय रहते इसकी पहचान कर इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। आइए जानते हैं इसके कुछ प्रमुख लक्षण।

By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Tue, 24 Sep 2024 11:21 AM (IST)
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बच्चों ऑटिज्म के प्रमुख लक्षण (Picture Credit- Freepik)

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक ऐसी समस्या है, जिसका कई लोगों का अंदाजा नहीं होता। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अक्सर शुरुआती स्टेज में इसकी पहचान नहीं कर पाते हैं। यह एक डेवेलपमेंटल डिसएबिलिटी है, जिसका निदान अक्सर बचपन में किया जाता है। इसे पहले ऑटिज्म के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसके Autism spectrum disorder (ASD) कहा जाता है। सही समय पर इसकी पहचान कर बच्चों की सही समय पर मदद की जाती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे बच्चों में इस बीमारी के कुछ शुरुआती संकेतों के बारे में-

क्या है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर?

क्लीवलैंड क्लनिक के मुताबिक ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है, जो आमतौर पर बचपन में भी सामने आ जाती है। एएसडी होने पर आपके बच्चे के बातचीत और संवाद करने के तरीके को बदलाव आ जाता है। ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है, लेकिन समय के साथ लक्षण कम हो सकते हैं।

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ऑटिज्म के प्रमुख लक्षण

  • ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे नजरें मिलाने से बचते हैं।
  • 9 महीने की उम्र तक वह अपने नाम से पुकारे जाने पर कोई रिस्पॉन्स नहीं देते हैं।
  • 9 महीने की उम्र तक चेहरे पर खुशी, उदासी, गुस्सा और आश्चर्य जैसे भाव नहीं दिखते हैं।
  • ऑटिज्म होने पर बच्चा 12 महीने की उम्र तक पैट-ए-केक जैसे सरल इंटरैक्टिव गेम नहीं खेल पाता है।
  • 12 महीने का होने के बाद भी वह बहुत कम या बिल्कुल भी इशारों (जैसे बाय कहने के लिए) का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
  • 15 महीने के होने पर वह दूसरों को अपनी पसंद या नापसंद नहीं बता पाते हैं।
  • 18 महीने की उम्र तक उनको कुछ भी दिलचस्प दिखाने का मतलब नहीं होता।
  • 2 साल की उम्र का होने पर दूसरों को चोट लगने या परेशान होने पर उनका ध्यान नहीं जाता।
  • 36 महीने यानी 3 साल की उम्र तक वह अन्य बच्चों पर ध्यान नहीं देते और उनके साथ खेलते भी नहीं है।
  • 48 महीने (4 साल) की उम्र का होने पर वह खेलते समय किसी सुपरहीरो जैसा होने का कोई दिखावा नहीं करता
  • 5 साल की उम्र तक पहुंचने के बाद भी वह गाना, डांस करना या एक्टिंग जैसी किसी एक्टिविटी में रूचि नहीं लेते हैं।

ऑटिज्म के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं?

  • समय से पहले बच्चे का जन्म।
  • जन्म के दौरान कॉम्पिकेशन्स।
  • जन्म के समय बच्चे का कम वजन होना।
  • एक भाई-बहन का ऑटिज्म से पीड़ित होना।
  • कुछ क्रोमोसोनल या जेनेटिक कंडीशन होना।
  • बच्चे के जन्म के समय माता-पिता की उम्र 35 या उससे ज्यादा होना।
  • प्रेग्नेंसी के दौरान पेरेंट्स द्वारा वैल्प्रोइक एसिड या थैलिडोमाइड का इस्तेमाल।

क्या ऑटिज्म को रोका जा सकता है?

जिस तरह ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है, उसी तरह इसे रोका भी नहीं जा सकता है। हालांकि, कुछ बातों और लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है, जिनमें निम्न शामिल हैं:-

  • हेल्दी डाइट और रेगुलर एक्सरसाइज आदि की मदद से अच्छी लाइफस्टाइल फॉलो कर इसका खतरा कम कर सकते हैं।
  • अपने डॉक्टर की दी गई दवाएं ही खाएं। साथ ही उनसे यह जरूर पूछें कि कौन सी दवाएं सुरक्षित हैं और आपको प्रेग्नेंसी के दौरान किन दवाओं को लेना बंद कर देना चाहिए।
  • प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी तरह की और किसी भी मात्रा में शराब सुरक्षित नहीं है, इसलिए इससे पूरी तरह परहेज करें।
  • प्रेग्नेंट होने से पहले जर्मन मीसल्स (रूबेला) वैक्सीन सहित डॉक्टर की बताई गई सभी वैक्सीन जरूर लगवाएं। यह वैक्सीन रूबेला से जुड़े ऑटिज्म को रोक सकता है।

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