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सिर्फ खानपान ही नहीं घंटों मोबाइल स्क्रॉल करने से भी होता है मोटापा, डॉक्टर से समझें क्या है Digital Obesity

भोजन की थाली में अगर जंकफूड की भरमार हो जाए तो सेहत पर पड़ता है गंभीर असर। यही बात लागू होती है घंटों स्मार्टफोन की स्क्रीन स्क्रॉल करने की आदत पर। कंटेंट नुमा जंकफूड आपको डिजिटल ओबेसिटी का शिकार बना सकता है। ऐसे में इस नई किस्म की चिंता के बारे में विस्तार से जानने के लिए सीमा झा ने एक्सपर्ट से बात की।

By Jagran News Edited By: Harshita Saxena Updated: Sun, 22 Sep 2024 12:00 AM (IST)
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क्या है डिजिटल ओबेसिटी और इसके लक्षण (Picture Credit- Freepik)
नई दिल्ली, सीमा झा। लोग गौरव को फूडी कहते हैं। भारी-भरकम शरीर और चेहरे पर लंबी मुस्कान। उन्हें मलाल है कि कुछ नया खाना ट्राई करते रहने की बुरी आदत न होती तो आज उनका वजन भी नियंत्रण में रहता। पर अब न जिम काम आ रहा है और न वजन कम करने वाला कोई प्रेरक वीडियो। अगर घंटों मोबाइल, लैपटाप के साथ आपका समय गुजरता रहता है। कुछ लुभावनी तस्वीरें, वीडियो की शक्ल में कुछ चटपटे या मसालेदार कंटेट के रूप में पेश की गई डिश को भी अगर आप किसी फेवरेट स्नैक की तरह लगातार ट्राई कर रहे हैं तो सावधान, आप पर मंडरा रहा है कंटेंट ओबेसिटी का खतरा।

आटो मोड पर सब

नूडल्स, पास्ता या डिब्बाबंद खाना इसके शौकीनों को तुरंत लुभा लेता है। यह जानते हुए भी कि यह सेहत के लिए अच्छा नहीं, वे इन्हें दिन के किसी भी समय में खा सकते हैं। इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर परोसा जाने वाला कंटेंट भी जंकफूड की तरह लोगों को भा रहा है। दिन के किसी भी प्रहर में लोग घंटों उनका सेवन कर रहे हैं। इससे रोजमर्रा की तनाव देने वाली गतिविधियों से तनिक देर के लिए छुटकारा तो मिल सकता है, पर उसमें मौजूद ज्ञानविहीन तत्व की मोटी खुराक कंटेंट ओबेसिटी का शिकार बनाने के लिए काफी है। दरअसल, इंटरनेट प्लेटफॉर्म को ऐसे तैयार किया गया है कि आप देर तक उसमें फंसे रहें, स्क्राल करते रहें। कुछ नया दिख जाए तो यह आपको आगे कुछ और नया पाने के लिए भी उकसाता है।

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वास्तव में उनमें ज्यादातर बेकार कंटेंट होता है। यह जानते हुए भी आप उन्हें क्यों देखते हैं? अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. नंद कुमार इस स्थिति को हमारे दिमाग की कंडीशनिंग हो जाना कहते हैं। उनके अनुसार, ‘जो चीज आप बार-बार करते हैं हमारा दिमाग उन्हें सहज अपना लेता है। एक समय बाद वह इसे आटो मोड में करता चला जाता है। जैसे, कार चलाते समय एक साथ क्लच, एक्सीलेटर आदि का ध्यान रखते हुए गाने सुनते हैं। कभी फोन पर बात भी कर लेते हैं।’

मोल ले रहे भारी संकट

स्मार्टफोन, लैपटाप पर नाचती अंगुलियां जरा देर भी रुकना नहीं चाहतीं या यूं कहें आपका मन नहीं मानता कि थोड़ी देर के लिए फोन रख दें। भीतर से आवाज तो आती है कि व्यर्थ इतना समय गंवाया पर यह झल्लाहट कुछ देर ठहरकर गुम हो जाती है। अगली बार कुछ नया देखने, सुनने, पढ़ने की भूख ऐसा आवेग लाती है, जो आपको इंटरनेट की दुनिया में ले जाती है। ऐसा करके आप तमाम बीमारियों को खुद बुलावा दे रहे हैं। पहले प्रिय लगने वाली चीजों को खाने की आदत पड़ी, फिर कुछ नया ट्राई करते जाने के क्रम में भूल गए कि आप लगातार बैठकर कई मुसीबतें मोल ले रहे हैं।

जर्नल आफ अप्लाइड फिजियोलाजी में प्रकाशित अध्ययन की मानें तो दिन में 13 घंटे से अधिक समय तक बैठे रहने से कसरत करने के लाभ भी समाप्त हो सकते हैं। यह प्रवृत्ति हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन के मुहाने पर खड़ा कर सकती है। इंटरनेट मीडिया पर आप जो कंटेंट ले रहे हैं, उनमें आपके काम का कुछ नहीं, यह आभास आपको मूल्यहीनता का अनुभव कराता है। व्यर्थ समय खर्च होने और हाथ कुछ न आने से पैदा हुई एंग्जायटी को भुलाने के लिए मेडिटेशन का कोर्स और रिट्रीट सेंटर पर जमकर धनराशि खर्च कर रहे हैं। लंबी छुट्टियों पर भी जाते हैं पर लौटने के बाद दोबारा उसी मोड पर लौट आती है जिंदगी। वही मोबाइल, वही कंटेंट और एंग्जायटी, जो कभी पीछा नहीं छोड़ती।

किसने चुराया ध्यान?

शार्ट मूवी और रील्स के दौर में तीन घंटे की फिल्म देखना अब अधिकांश को भारी लगता है। दरअसल, बीते वर्षों में एक जगह ध्यान टिकाने की अवधि बहुत तेजी से घटी है। बेचैनी, थकान हावी रहती है। डा. नंद कुमार के अनुसार, ‘करीब दो दशक पूर्व 24 मिनट तक एकाग्र रहने वाले इंसान की एकाग्रता अब आठ सेकेंड तक रह गई है, जो गोल्डफिश की एकाग्रता की अवधि नौ सेकेंड से भी कम है। अगर भूलने की बीमारी बढ़ी है, तो इसका कारण भी यही है।’ दिमाग ध्यान से सुनने के बाद ही कोई चीज याद रख पाता है। पर छोटे-छोटे काम करते हुए भी मन बेचैन रहता है, तो आपको चिंता करनी चाहिए। परिवार में अगर किसी ने शिकायत की है कि उनसे बात करते समय आप फोन पर नजरें गड़ाए रहते हैं, तो यह संकेत है कि अब रिश्ते को समय देने की जरूरत है। कंटेंट ओबेसिटी से पैदा हुई बेचैनी ने परिवार, प्रियजनों व समाज से भी आपको दूर कर दिया है। हर कोई कह रहा है कि अब जिंदगी अकेलेपन में कट रही है तो, सोचें कि इसका जिम्मेदार कौन है!

ठहराव है उचित समाधान

कंटेंट देखने के प्रलोभन से बचाव आप स्वयं कर सकते हैं। पहले दिमाग को आराम देना होगा। निरंतर बहते चले जाने के स्थान पर कुछ समय रचनात्मक कार्यों के लिए निकालें। यह अधिक आनंददायक होगा, साथ ही इससे कार्यक्षमता व उत्पादकता भी बढ़ती है।

इन बातों को रखें ख्याल

  • कंटेंट देखने की समय सीमा तय करें, अमल आज से ही शुरू करें।
  • डिजिटल डिटॉक्स वेकेशन भी एक उपाय है, पर इसे स्थायी समाधान नहीं कहा जा सकता।
  • जिस कंटेंट को देख रहे हैं, वह क्यों देख रहे हैं, उससे आपकी क्या मदद हो रही है, स्वयं से ऐसे सवाल करें 
  • उन प्लेटफॉर्म को तलाशें जो गुणवत्ता से भरे, शोधपरक, मूड बेहतर करने वाले, शिक्षाप्रद व प्रेरक भी हों।
  • कंटेंट देखने की आदत पर नियंत्रण रखने के क्रम में किताब से दोस्ती काम आ सकती है।
  • प्रकृति के साथ समय बिताएं। इससे आत्म-अनुशासन बनाने में मदद मिलती है।
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