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Secondary Infertility: क्या है सेकेंडरी इनफर्टिलिटी और किन वजहों से होती है यह प्रॉब्लम?

Secondary Infertility क्या आपने कभी सेकेंड इनफर्टिलिटी के बारे में सुना है? सेकेंडरी इंफर्टिलिटी पहले बच्चे को जन्म देने के बाद दूसरे बच्चे को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था को कहा जाता है। जो महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी देखने को मिल सकता है। किन कारणों से होती है यह समस्या और क्या है इलाज जानेंगे यहां।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Wed, 05 Jul 2023 12:30 PM (IST)
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Secondary Infertility: क्या है सेकेंड इन्फर्टिलिटी और इसके कारण
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Secondary Infertility: दूसरे बच्चे की जन्म की तैयारी करना एक उत्साहजनक सफर हो सकता है। हालांकि, इसके अपने कई जोखिम और खतरे होते हैं। दूसरी बार गर्भवती होने की कोशिश कर रही महिलाओं को सेकेंडरी इंफर्टिलटी का सामना करना पड़ सकता है। सेकेंडरी इंफर्टिलिटी पहले बच्चे को जन्म देने के बाद दूसरे बच्चे को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था को कहा जाता है।

सेकेंडरी इंफर्टिलिटी की समस्या किसी एक पार्टनर या दोनों पार्टनर्स में हो सकती है। इसके एक तिहाई मामले पुरुषों के मिलते हैं, जबकि इतने ही मामले पुरुषों में पाए जाते हैं। इस तरह के बांझपन की समस्या उन महिलाओं में ज्यादा होती है, जो दूसरे बच्चे को 28, 30 या 32 साल की उम्र में जन्म देना चाहती है। जब प्रजनन की बात आती है तो इस मामले में पिछली जीत आपको भविष्य में सफलता मिलने की गारंटी नहीं होती। यह बात जानकर हैरानी होगी कि आपकी प्रजनन क्षमता पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है।

महिलाओं में दूसरे बच्चे को जन्म देते समय बांझपन के कारण

पीसीओएस

पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम(पीसीओएस) दूसरे बच्चे के जन्म के समय महिलाओं में बांझपन की शिकायत का प्रमुख कारण है। अंडाशय से अंडा निकलने की प्रक्रिया को ओव्यूलेशन कहते हैं। हर मासिक धर्म में एक बार यह स्थिति आती है।

हाल में किए गए अध्ययन के अनुसार पीसीओएस प्रजनन उम्र की 10 फीसदी महिलाओं को प्रभावित करता है। पीसीओएस होने पर अंडाशय में कई गांठें बनने लगती है। ये गांठें छोटी थैली के आकार की होती हैं और इसमें तरल पदार्थ भरा होता है। इससे ओव्यूलेशन की प्रक्रिया में रुकावट आती है। हालांकि यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि सही समय पर इलाज कराने से इस समस्या को दूर किया जा सकता है और सफलता से गर्भधारण किया जा सकता है।

एंड्रोमेट्रियोसिस

एंड्रोमेट्रियोसिस गर्भाशय को रेखाबद्ध करने वाला ऊतक है। यह ऊतक गर्भाशय के बाहर बढ़ता है। यह आसपास के ऊतकों की सूजन का कारण होती है, जिससे अंडे की क्वॉलिटी खराब हो सकती है। यह निशान ऊतक के रूप में विकसित हो सकता है। यह व्‍यक्ति की प्रजनन क्षमता की संरचना को बिगाड़ सकता है, उसे बदल सकता है। इससे सीरम का अंडाणुओं तक पहुंचना काफी मुश्किल हो जाता है।

आयु

हर मासिक धर्म में महिलाओं के गर्भाशय में एक अंडा रिलीज होता है। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, गर्भाशय में अंडे बनने की प्रक्रिया काफी धीमी हो जाती है या इनकी गुणवत्ता बहुत कम हो जाती है। इससे उनके प्राकृतिक रूप से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है। यह 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के लिए आम बात है। उन्हें दूसरी बार गर्भधारण करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, जबकि उन्हें पहली बार गर्भवती होने के बाद कोई परेशानी महसूस नहीं हुई थी।

यौन संबंधों से फैलने वाले संक्रमण

संक्रमण, जिसमें यौन संबंधों से फैलने वाला संक्रमण भी शामिल है, से पेल्विक (श्रोणि) में सूजन की बीमारी हो सकती है। यह फेलोपियन ट्यूब का आकार बिगाड़ सकती है और उनके रास्ते में रुकावट भी बन सकती है। ह्यूमन पेपिलोमावायरस और उसका इलाज गर्दन में जमा होने वाले कफ को प्रभावित कर सकता है और प्रजनन क्षनता को कम कर सकता है।

हार्मोन संबंधी गड़बड़ियां

हार्मेन संबंधी गड़बड़ियां तब पैदा होती हैं, जब दिमाग में मौजूद हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथियों के काम करने का तरीका बिगड़ जाता है। ये ग्रंथियां हार्मोन पैदा करती हैं, जो अंडाशय की कार्यप्रणाली पर प्रभाव डालते हैं। इसलिए इनके साथ समस्या होने से प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

गर्भाशय के साथ समस्याएं

गर्भाशय में आई कई गड़बड़ियां दूसरी बार बच्चे को जन्म देते समय बांझपन की स्थिति उत्पन्न कर देती है। इससे गर्भधारण करना मुश्किल हो सकता है।

ऑपरेशन (सी-सेक्‍शन) के बाद दाग

अगर आपकी पिछली डिलिवरी सिजेरियन ऑपरेशन से हुई है तो आपके गर्भाशय पर इस्थमोसेले या दाग हो सकते हैं। इस्थमोसेले गर्भाशय में परेशानी पैदा करता है, जिससे गर्भधारण करने में मुश्किल आ सकती है। इसके इलाज के लिए आईवीएफ जैसे आधुनिक चिकित्सा समाधान को प्राथमिकता दी जाती है।

ऑटोइम्यून रोग

रोग प्रतिरोधक तंत्र की गड़बिड़यां स्वस्थ ऊतकों पर हमला करती है। इसमें प्रजनन ऊतक भी शामिल हो सकते हैं। हाशिमोटो के थायराइडटिस, ल्यूपस और रुमिटाइड गठिया से गर्भाशय और नाल (प्‍लैसेंटा) में सूजन आने से प्रजनन क्षमता कम हो सकती है।

फेलोपियन ट्यूब में रुकावटें

इन रुकावटों की वजह से वीर्य (सीमन) की फेलोपियन ट्यूब तक पहुंचने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे प्रजनन क्षमता में रुकावट आती है। फेलोपियन ट्यूब में रुकावटों से प्रजनन के बाद निषेचित अंडे के गर्भाशय तक पहुंचने में बाधा आती है। यह रुकावटें पेल्विक में संक्रमण, एक्टोपिक प्रेगनेंसी के नतीजे के रूप में पैदा हुई समस्याओं या सर्जरी के कारण हो सकता है।

पुरुषों में सेकेंडरी इंफर्टिलिटी के कारण

टेस्टोस्टेरॉन में कमी

शुक्राणु के बनने के लिए टेस्टोस्टेरोन काफी महत्वपूर्ण है। टेस्टोस्टोरोन का लेवल बढ़ती

उम्र, मूत्र संबंधी या लिंग पर चोट की वजह से भी गिर सकता है। इसके अलावा कई मेडिकल गड़बड़ियों जैसे

डायबिटीज, टीबी और भावनात्मक परेशानी से शुक्राणुओं के बनने में कमी आ सकती है।

वृषण (टेस्‍टीकुलर) वैरिसोकेले

वृषण वैरिसकोले से अंडकोश में नसें बढ़ती है। यह त्वचा का थैला होता है, जिसमें वृषण होते हैं। इससे वृषण के आसपास का तापमान बढ़ जाता है, जिससे खराब शुक्राणु बनते हैं। यह पुरुषों में नामर्दी बढ़ाने में 30 फीसदी योगदान देता है।

खराब क्वॉलिटी का सीमन (वीर्य)

वीर्य वह द्रव है, जो शुक्राणुओं को अपने साथ वृषण से बाहर ले जाता है और उनका पोषण करता है। 40 साल की उम्र के बाद वीर्य की क्वॉलिटी खराब होने लगती है।

पौरुष ग्रंथि का बड़ा होना

पौरुष ग्रंथि के बड़े होने से शुक्राणु के बाहर निकलने में रुकावट आती है।

इलाज

अगर आपको पहले गर्भधारण करने में कोई परेशानी का सामना न करना पड़ा हो, उस स्थिति में दूसरी बार गर्भधारण करने में परेशान महसूस होना अजीब लग सकता है, जो इस समस्या को और जटिल बनाता है। हालांकि बांझपन को दूर करने के लिए इसका कारण जानना पहला कदम है। इसके लिए आपका डॉक्टर आपको कई टेस्ट कराने के सुझाव दे सकता है, जिससे उसे मरीज के बांझपन के कारणों का पता चल सके। ये टेस्ट ब्लड टेस्ट, फेलोपियन ट्यूब का एक्सरे से लेकर ओल्यूशन टेस्ट और पेल्विक एग्जाम तक हो सकते हैं। इन टेस्ट के आधार पर डॉक्टर आपके इलाज की सबसे उचित प्लान बना सकते हैं।

इसके लिए कुछ सामान्य टेस्ट इस प्रकार है:

दवाएं: हार्मोन का संतुलन बनाए रखने के लिए अक्सर हार्मोन को नियमित करने वाली दवाएं लेने की सिफारिश की जाती है, जबकि प्रजनन क्षमता को बढ़ाने वाली दवाओं से ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है। हालांकि यह समझना बहुत जरूरी है कि अगर पीसीओएस प्रजनन क्षमता में कमी का कारण है, तो ट्रीटमेंट में ओव्यूलेशन की प्रक्रिया बढ़ाना और जीवनशैली में बदलाव करना शामिल हो सकता है। अगर डॉक्टर आपके वजन को गर्भधारण करने में समस्या मानते हैं, तो आप बच्चे को जन्म देने लायक स्वस्थ रूप से वजन बढ़ा सकती हैं।

सर्जरी: प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के कुछ मामलों में सर्जरी करना जरूरी हो सकता है। गर्भाशय के फाइब्राइड, गर्भाशय पर दाग और एडवांस्ड एंडोमेट्रियोसिस की स्थितियों के इलाज के लिए बेहद प्रभावी सर्जरी के तरीके हैं। इसमें से कई तरीकों में केवल कम से कम चीर-फाड़ की जाती है। इससे मरीज के जल्दी ठीक होने की संभावना को बढ़ावा मिलता है।

एआरटी: असिस्टेड रिप्रॉडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) सफलता से गर्भधारण करने का तरीका हो सकता है। इसके लिए अक्सर दो उपाय इंट्रायूटरीन इनसेमिनेशन (आईयूआई) और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) किए जाते हैं। आईयूआई की प्रक्रिया में शुक्राणुओं को एकत्र कर गर्भाशय से अंडे रिलीज होने की अवस्था के दौरान से गर्भाशय में डाला जाता है। आईवीएफ में महिलाओं के अंडाणु और शुक्राणु निकाले जाते हैं। प्रयोगशाला में इन अंडाणुओं की शुक्राणु से प्रजनन योग्य बनाया जाता है। इनको भ्रूण में विकसित करने की इजाजत दी जाती है। बाद में एक या ज्यादा भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिए जाते हैं।

(डॉ. असवती नायर, फर्टिलिटी कंसल्टेंट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, दिल्ली से बातचीत पर आधारित)

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