थैलेसीमिया क्या है, कैसे होते हैं इससे छोटे बच्चे प्रभावित और क्या है इसका इलाज
थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है जो काफी घातक होता है। किन्तु माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर बच्चे को खतरा नहीं होता।
By Jagran NewsEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Wed, 31 May 2023 05:42 PM (IST)
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला ब्लड डिसऑर्डर है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में बाधित होती है, जिसके कारण एनीमिया के लक्षण दिखाई देते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहर से खून की आवश्यकता पड़ती है। थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किन्तु माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत संभावना है। अतः यह जरूरी है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों इस संबंध में अपना टेस्ट कराएं।
अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत देश में हर साल सात से दस हजार थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। बात करे दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों की तो यह संख्या करीब 1500 है। भारत की कुल जनसंख्या का 3.4 प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त है। हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलीसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है। जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं (Red blood cell) तेजी से नष्ट होती हैं। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार रक्त चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय, लिवर और फेफड़ों में पहुँचकर जानलेवा होता है।
थैलेसीमिया को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया है
थैलेसीमिया मेजर: यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलेसीमिया होता है। जिसे थैलेसीमिया मेजर कहा जाता है।थैलेसीमिया माइनर: थैलेसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।
सीबीसी से एनीमिया का पता
पूर्ण रक्तकण गणना (Complete blood count) यानि सीबीसी से एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी) के द्वारा एल्फा थैलेसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है।थैलेसिमिया के लक्षण
- बच्चों के नाख़ून और जीभ पिली पड़ जाने से पीलिया / जौंडिस का भ्रम पैदा हो जाता हैं।
- बच्चे के जबड़ों और गालों में असामान्यता आ जाती हैं।
- बच्चे की विकास रूक जाती हैं और वह उम्र से काफी छोटा नजर आता हैं।
- सूखता चेहरा, वजन न बढ़ना, हमेशा बीमार नजर आना, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ आदि ये भी लक्षण दिखाई देते हैं।
थैलेसीमिया से बचाव एवं सावधानी
थैलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, आगे चलकर यह बच्चे के जीवन के लिए खतरा साबित हो सकता है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।
- विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जांच कराएं।
- गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएं।
- रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें।
- समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें।
- विवाह पूर्व जांच को प्रेरित करने हेतु एक स्वास्थ्य कुंडली का निर्माण किया गया है, जिसे विवाह पूर्व वर-वधु को अपनी जन्म कुंडली के साथ-साथ मिलवाना चाहिये। स्वास्थ्य कुंडली में कुछ जांच की जाती है, जिससे शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े यह जान सकें कि उनका स्वास्थ्य एक-दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली के तहत सबसे पहली जांच थैलीसीमिया की होगी। HIV, हेपाटाइटिस बी और सी। इसके अलावा उनके खून की तुलना भी की जाएगी और खून में RH फैक्टर की भी जांच की जाएगी।