Monsoon And Asthma: मानसून अस्थमा की स्थिति को बना सकता है बेहद गंभीर, एक्सपर्ट से जानें कैसे रखें अपना ख्याल
Monsoon And Asthma मौसम में बदलाव को देखते हुए अस्थमा मरीजों की स्थिति गंभीर न हो इसके लिए एक्शन प्लान तैयार करना बहुत जरूरी है। इससे कई खतरनाक स्थितियों को समय रहते कंट्रोल किया जा सकता है। जैसा कि मानसून का सीज़न चल रहा है और अगर आपके घर में कोई अस्थमा का मरीज है तो कैसे उसका ध्यान रखना है आइए जान लेते हैं।
By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Mon, 24 Jul 2023 11:35 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Monsoon And Asthma: अस्थमा, एक ऐसी गंभीर श्वसन स्थिति है, जिसमें सांस लेने के मार्ग में सूजन हो जाती है और एयरवेज छोटा हो जाता है। यह देश भर में लगभग 34 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावित करता है। जहां मानसून की शुरुआत तपती गर्मी से राहत दिलाती है वहीं अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए ये मौसम कई सारी मुसीबतें लेकर आता है। बदलते मौसम के मिजाज़ के साथ, बढ़ी हुई नमी, साथ ही फंगस और सीलन, धूल के कण आदि जैसे एलर्जी कारक अस्थमा के लक्षणों को गंभीर रूप से बढ़ा सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, गर्मियों से लेकर मानसून तक अस्थमा एक्शन प्लान तैयार करके अस्थमा को सही तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है।
अस्थमा एक्शन प्लान क्या है?
अस्थमा एक्शन प्लान एक डॉक्टर के मशवरे से बनाई गई एक लिखित वर्कशीट है, जिसमें दवाओं को कब लिया जाना चाहिए, स्थिति की गंभीरता, ट्रिगर, एलर्जी आदि के निर्देशों को लिखा गया है। जिससे अस्थमा के रोगियों को अपनी स्थिति कंट्रोल रखने में मदद मिलती है। जिन रोगियों में मानसून के दौरान लक्षण विकसित होते हैं, उनके लिए यह जरूरी है कि डॉक्टर के परामर्श से अपनी एक्शन प्लान को अपडेट करते रहें। अधिकांश मामलों में प्लान को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है।
ग्रीन- जो एक सेफ जोन है जहां अस्थमा के लक्षण कंट्रोल में होते हैं और डॉक्टर द्वारा बताए अनुसार लॉन्ग टर्म मेडिसिन जारी रखी जाती है।
येलो ज़ोन- तब होता है जब लक्षण वर्तमान में अनुभव किए जा रहे हों और डॉक्टर द्वारा बताई गई जल्द-राहत वाली दवाएं लेने की ज़रूरत हो।रेड जोन- तब होता है जब लक्षण गंभीर रूप से बढ़ जाते हैं। यहां, एक्शन प्लान बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और यदि लक्षणों में सुधार नहीं होता है तो तत्काल मेडिकल ट्रीटमेंट देने की आवश्यकता होती है।
कोई व्यक्ति अपने फेफड़ों से कितनी हवा निकाल सकता है, उसे मापने के लिए डॉक्टर पीक फ्लो रेट नामक एक टेस्ट का उपयोग करते हैं। टेस्ट यह निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति के फेफड़ों का फंक्शन अच्छी रेंज(हरा), चेतावनी रेंज (पीला), या खतरनाक रेंज (लाल) में है।