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World Autism Awareness Day 2021: एक्सपर्ट्स से जानें, क्या है ऑटिज़्म और कैसे करें इसे दूर

World Autism Awareness Day 2021 ऑटिज्म को दवा से ठीक नहीं किया जा सकता है। ऑटिस्टिक लोग विशेष रूप से प्रोफेसनल और थेरेपी की मदद से अभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र सार्थक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जी सकते हैं।

By Umanath SinghEdited By: Updated: Fri, 02 Apr 2021 03:18 PM (IST)
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किसी दूसरे व्यक्ति की बात को इग्नोर करना या न सुनने का बहाना करता है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। World Autism Awareness Day 2021: आज विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस है। यह हर साल 2 अप्रैल को मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को ऑटिज़्म के प्रति जागरूक करना है। ऑटिज़्म एक प्रकार का मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति अलग दुनिया में जीने लगता है। आमतौर पर इस बीमारी में लोगों को भूलने की बीमारी हो जाती है। इसके अलावा, इस विकार में व्यक्ति या बच्चा आंख मिलाने से कतराता है। किसी दूसरे व्यक्ति की बात को इग्नोर करना या न सुनने का बहाना करता है। आवाज देने पर भी कोई जवाब नहीं देता है। अगर जवाब भी देता है, तो अव्यवहारिक रूप में देता है। माता-पिता की बात पर सहमति नहीं जताता है। अगर आपके बच्चे में इस प्रकार के लक्ष्ण हैं, तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेने की जरूरत है। आइए स्वास्थ्य विशेषज्ञ से जानते हैं कि ऑटिज़्म क्या है और कैसे इसे दूर करें-

डॉ मनीष मन्नान, एचओडी - नॉनटोलॉजी और पेडियाट्रिक्स, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम  का कहना है कि  "ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक विकास सम्बन्धी विकलांगता है जो महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक, संचार और व्यवहार संबंधी मुश्किलों का कारण बन सकता है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में 160 बच्चों में से एक बच्चा एएसडी से पीड़ित होता है। एएसडी से पीड़ित बच्चे में आमतौर पर सामाजिक, भावनात्मक और बातचीत करने में समस्याएं होती हैं। ऐसे बच्चे एक ही व्यवहार को बार-बार दोहरा सकते है और अपनी रोज की दिनचर्या में बदलाव करने से विमुख हो सकते है।

एएसडी से पीड़ित बच्चों का सीखने, खेलने, ध्यान देने और किसी चीज पर प्रतिक्रिया देने का अलग तरीका होता है। एएसडी का लक्षण बचपन के शुरूआती फेज में शुरू होता है और यही वह समय होता है जब उनमे इस बीमारी का पता जल्दी लगाया जाना चाहिए और मेडिकल हस्तक्षेप करना चाहिए। इसका डायग्नोसिस दो साल की उम्र में किया जा सकता है। एविडेंस आधारित साइकोसोशल हस्तक्षेप, जैसे कि बिहाविरियल ट्रीटमेंट (व्यवहार उपचार) और माता-पिता ट्रेनिंग स्किल प्रोग्राम से कम्युनिकेशन और सामाजिक व्यवहार में आने वाली मुश्किलों को कम किया जा सकता हैं।

इससे एएसडी से पीड़ित बच्चा और उनकी देखभाल करने वाले बच्चों के लिए जीवन की गुणवत्ता और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा बच्चे की नियमित रूप से जांच कराते रहना चाहिए ताकि बच्चे के विकास संबंधी कार्यो का लेखा -जोखा किया जा सके और कोई समस्या होने पर उसका तुरंत निदान किया जा सके। दुनिया भर में एएसडी से पीड़ित लोग अक्सर कलंक, भेदभाव और बुनियादी मानव अधिकारों की कमी से जूझते हैं। विश्व स्तर पर एएसडी से पीड़ित लोगों के लिए सर्विसेस और सपोर्ट बहुत कम मिल पाता है। एएसडी वाले बच्चों और लोगों के प्रति संवेदनशील होने और उनके साथ दयाभाव दिखाने की जरुरत है।  इसके लिए समाज को इस समस्या के प्रति ज्यादा जागरूक और प्रतिबद्ध होने की जरुरत है।"

डॉ सुदीप चौधरी, कंसलटेंट - बाल रोग विशेषज्ञ, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार, गुड़गांव का कहना है कि "ऑटिज्म को विशेष रूप से भारत में बहुत गलत समझा जाता रहा है । भारत में इस कंडीशन के बारे में जागरूकता बहुत कम है। भारत में किसी भी व्यक्ति के अंदर कोई भी व्यवहार में बदलाव होता है तो इसे मेंटल कंडीशन की स्थिति को समझ लिया जाता है। ऑटिज्म (आत्मकेंद्रित) के बारे में प्रचलित गलतफहमियों में से एक यह है कि यह एक मानसिक स्वास्थ्य विकलांगता है, असल में यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य विकलांगता नहीं है।

ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो मस्तिष्क संरचना या न्यूरोट्रांसमीटर में असामान्यताएं होने से पैदा होता है। इस न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर के कारण शारीरिक और मानसिक विकास संबंधी विकलांगता और देरी होती है। लेकिन इसे किसी भी मानकों द्वारा मेंटल हेल्थ डिसआर्डर (मानसिक स्वास्थ्य विकार) नहीं कहा जा सकता है। दुनिया भर में एक और बड़ी गलतफहमी है जो विशेष रूप से एंटी- वैक्सिनेशन लॉबी द्वारा फैलाई गई है, गलतफहमी यह है कि वैक्सीन के अत्यधिक उपयोग से ऑटिज्म की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। यह एक मिथक है इसका अभी तक कोई मेडिकल या वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं उपलब्ध हो पाया है।

कई लोगों का यह भी मानना है कि आज कल कई मेडिकल एक्स्पर्ट अनावश्यक रूप से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम के तहत लक्षणों और कई तरह व्यवहारों को इस बीमारी के तहत बता रहे हैं। कई बच्चों को गलत तरीके से 'ऑटिस्टिक' के रूप में पहचाना जा रहा है। यह एक और गलत धारणा है। सच्चाई यह है कि समय के साथ ऑटिज्म डिसआर्डर के बारे में हमारी समझ बढ़ी है और हम अब जानते हैं कि व्यवहार का एक व्यापक स्पेक्ट्रम ऑटिज्म की कंडीशन में आता है। इसलिए ऑटिज्म का केस हल्का भी हो सकता है और गंभीर भी हो सकता है। पहले इस कंडीशन को हाई फंकसनिंग ऑटिज्म ’कहा जाता था। हमारे यहाँ ओपीडी में हर 50 में से 1 बच्चे में यह प्रॉब्लम होती है. मगर इलाज़ में सबसे बढ़ी प्रॉब्लम माता पिता का समस्या को ना बताना होता है।

डॉ शुचिन बजाज, फाउंडर और डायरेक्टर ,  उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल्स  का  कहना है कि   "ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर-जिसे सामान्यतः 'ऑटिज्म' कहा जाता है। कभी-कभी यह एएसडी 100 लोगों में 1 को होता है। इस विकास संबंधी डिसऑर्डर का असर अक्सर बच्चों में देखा जाता है लेकिन कुछ वयस्कों में भी उनके जिंदगी में आटिज्म से डायग्नोसिस किया जाता है। ऑटिज्म के बारे में कई सारी गलत धारणाएं और मिथक जुड़े हुए है और ऑटिज्म से पीड़ित बहुत सारे लोग इसी गलत धारणाओं के शिकार हैं। ऑटिज़्म के बारे में ये मिथक आपत्तिजनक, हानिकारक, कलंकित करने वाले या भ्रामक हो सकते हैं। ऑटिज्म के बारे में मिथकों के बीच एक आम गलत धारणा यह है कि यह एक बीमारी है। लेकिन सच यह है कि ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है।

ऑटिज्म को दवा से ठीक नहीं किया जा सकता है। ऑटिस्टिक लोग विशेष रूप से प्रोफेसनल और थेरेपी की मदद से अभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र, सार्थक, स्वस्थ और उत्पादक जीवन जी सकते हैं। एक मिथक यह भी है कि वैक्सीन से भी ऑटिज्म हो सकता है। कुछ लोग सोचते हैं कि ऑटिस्टिक व्यक्ति भावनाओं को महसूस नहीं कर सकता है, और इसलिए दूसरों के साथ संबंध बनाने या दोस्त बनाने में उसकी कोई रूचि नहीं होती है। लेकिन ऑटिज्म से पीड़ित लोग सभी भावनाओं को महसूस करने में पूरी तरह से सक्षम होते हैं। गलत धारणा यह है कि ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति किसी के साथ बातचीत या व्यवहार करने में सक्षम नहीं होता है। यह धारणा सरासर गलत है। इससे पीड़ित लोग समाज से संबंध बनाने में पीछे नहीं रहते है।"

डॉ स्मिता ग्रोवर, कंसल्टेंट- बाल चिकित्सा नेत्र विज्ञान, विजन आई सेंटर  का कहना है कि " ऐसे बच्चे जो आँखों की समस्याओं के साथ पैदा होते है उनमे ऑटिज़्म होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। सामान्य बच्चों के मुकाबले अंधे बच्चो में ऑटिज़्म होने का खतरा 10 गुना ज्यादा होता है। इसलिए ऑटिज़्म और आँख की समस्या का परिमाणित सम्बन्ध है। जिस तरह से ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चे में लक्षण दिखता है उसी तरह से अंधे बच्चे में भी यह लक्षण देखने को मिलता है। कमजोर सोशल स्किल से  लेकर ख़राब बोलने की समस्या तक की परेशानी (बार-बार बोलने और मोटर बिहेवियर) इस बीमारी में देखने को मिलती है जिसमें इकोलिया और रॉकिंग शामिल होती हैं, जो बच्चे नेत्रहीन होते हैं उनमें वे सारे लक्षण होते हैं जो ऑटिस्टिक बच्चों में होते हैं। पर्याप्त भावनात्मक और संज्ञानात्मक स्किल वाले सामाजिक व्यक्ति के रुप में बच्चे का विकास और  प्रारंभिक दृष्टि का विकास आपस में संबंधित होता है, हालांकि यह स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं हो पाया है कि दृष्टिहीन बच्चे में ऑटिस्टिक समस्या दृष्टि के विशुद्ध रूप से ख़राब होने का परिणाम होती हैं या फिर यह किसी विशिष्ट अंतर्निहित न्यूरो-डेवलपमेंटल कंडीशन के कारण यह समस्या होती है।

दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या ये सामान्य लक्षण केवल ओकुलर कंडीशन का परिणाम होते हैं या ब्रेन के कुछ हद तक क्षतिग्रस्त होने के कारण ये लक्षण देखने को मिलते हैं। फिर भी अंधे और ऑटिस्टिक बच्चों में दिखने वाले लक्षणों में  महत्वपूर्ण समानताएं होती है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। कुछ रिसर्च में पता चला है कि ऑटिज्म नेत्रहीनता के विशिष्ट कारणों जैसे कि ऑप्टिक नर्व हाइपोप्लासिया (गीगा की कंडीशन), समय से पहले की रेटिनोपैथी और एनोफ़थेल्मिया (जिसमें एक या दोनों आँखें विकसित नहीं हो पाती हैं) से जुड़ा हुआ है। "

कमल नारायण ओमर सीईओ , इंटीग्रेटेड हेल्थ एंड वेल्बीइंग कौंसिल (आईएचडब्लू कौंसिल)

"ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) को कई बीमारियों की जड़ समझा जाता है। इन बीमारियों में संज्ञात्मक, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य की समस्या शामिल होती है। लगभग सभी केसेस में इस बीमारी से बच्चे प्रभावित होते है। यह एक गंभीर विकास संबंधी डिसऑर्डर है। यह अनुमान लगाया गया है कि 10 वर्ष से कम आयु के भारत में 100 में से 1 बच्चे ऑटिज्म से पीड़ित होते है, और 8 में से 1 बच्चे कम से कम एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन से पीड़ित होते हैं।

न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन का अनुमान 2011 जनगणना में दर्ज संख्या से लगभग 10 गुना ज्यादा है। जनगणना 2001 के अनुसार 35.3% भारतीय 0 से 14 वर्ष के आयु वर्ग में आते हैं, इससे यह पता चलता है कि भारत में बीमारी का बोझ बहुत ज्यादा है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के माता-पिता अक्सर सूचना और बुनियादी ढाँचे की कमी से जूझते हैं। इस बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी और बुनियादी ढांचा उपलब्ध होने से उनके बच्चे सम्मानजनक जीवन जी सकते है।

यह सीएसआर मैंडेट के जरिए कॉर्पोरेट संगठनों के लिए बहुत बड़ा स्कोप प्रदान करता है ये संगठन  एएसडी से पीड़ित लोगों के जीवन की क्वालिटी में सुधार करने वाले इंटरवेंशन करने के लिए अपने सीएसआर बजट का फायदा उठा सकते हैं। इस बीमारी से आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा प्रभावित है और जो लोग वर्तमान में मदद प्रदान कर रहे है वे मात्र लोगों की एक सीमित संख्या तक ही मदद पहुँचा पा रहे हैं। इसलिए वंचित लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कारपोरशन उन्हें अपने सीएसआर के माध्यम से पूरा करने में मदद कर सकते हैं।"

डिस्क्लेमर: स्टोरी के टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।