Move to Jagran APP

World Blood Donor Day 2023: 300 साल से भी ज्यादा पुराना है रक्तदान का इतिहास, ऐसे हुई थी इसकी शुरुआत

World Blood Donor Day 2023 हर साल 14 जून को वर्ल्ड ब्लड डोनर डे मनाया जाता है ताकि लोगों को रक्तदान के प्रति जागरूक किया जा सके। रक्तदान कर आप किसी की जान बचा सकते हैं इसलिए सभी को इसके लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है।

By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Wed, 14 Jun 2023 11:10 AM (IST)
Hero Image
World Blood Donor Day 2023: पढ़ें रक्तदान का दिलचस्प इतिहास
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। World Blood Donor Day 2023: आज के दौर में रक्तदान करने का मतलब है किसी ऐसी जगह जाना, जो साफ-सुथरी होने के साथ मॉडर्न फैसिलिटी से लैस होती है, दानकर्ता के लिए सुरक्षित होने के साथ ही अनुभव भी आरामदायक होता है। हालांकि, ऐसा हमेशा से नहीं था।

सदियों पहले जब मॉडर्न इलाज के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था, उस वक्त रक्त दान की शुरुआत की गई थी। यह उस वक्त की बात है जब मेडिसिन ने तरक्की नहीं की थी, तो जाहिर है न ही पेनकिलर्स होते थे और न ही इंफेक्शन को रोकने के तरीके, यानी पूरा प्रोसेस ही सुरक्षित नहीं होता था।

यह सुनने में जितना डरावना लग रहा है, उससे कहीं ज्यादा असल जिंदगी में था। तो आइए आज वर्ल्ड ब्लड डोनर डे के मौके पर आपको बताते हैं कि रक्तदान कैसे और कब शुरू हुआ, जो आज लाखों लोगों की जान बचा रहा है।

ब्लड बैंकिग का इतिहास

जब किया जाता था जोंक का इस्तेमाल

रक्तपात (bloodletting) चिकित्सा की एक प्राचीन प्रणाली पर आधारित था, जिसमें रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थ को "शरीरी द्रव" माना जाता था, जिसका उचित संतुलन स्वास्थ्य को बनाए रखता था।

माना जाता है कि "रक्तपात" गले में खराश से लेकर प्लेग तक सब कुछ ठीक करने का एक बेहतरीन तरीका था, जिसकी शुरुआत प्राचीन मिस्र में हुई और यह 1800 के दशक तक जारी रहा। रक्तपात के लिए जोंक का भी इस्तेमाल खूब हुआ, इसके अलावा यह काम यूरोप में नाई किया करते थे।

2500 BCE: मिस्र में हुआ रक्तपात का उपयोग

मिस्र के मेम्फिस में एक मकबरे पर बना चित्र बताता है कि कैसे उस वक्त मरीज के पैर और गर्दन से खून बहने दिया जाता था। उस समय रक्तपात की सलाह जरूर डॉक्टर देते थे, लेकिन इसे अंजाम सिर्फ नाई ही दिया करते थे।

1800 के अंत में: रक्तपात पर जब उठने लगे सवाल

1800 के दशक के मध्य में रक्तपात के फायदों पर सवाल उठने लगे। इसके बावजूद कुछ स्थितियों में इसे तब भी फायदेमंद माना जाता था, जैसे कि संक्रमित या कमजोर रक्त को शरीर से निकालने या फिर रक्तस्राव को रोकने के लिए इसका उपयोग हुआ था। यहां तक कि 20वीं सदी में भी रक्तपात के कुछ तरीकों का इस्तेमाल जारी रहा।

ब्लड ट्रान्स्फ्यूज़न की शुरुआत

1492: इतिहास में पहली बार हुआ ब्लड ट्रान्स्फ्यूज़न

पहली बार तीन साल के लड़कों के रक्त को, कोमा में जा चुके पोप इनोसेंट VIII के मुंह के जरिए ट्रांसफर किया गया था। हालांकि, यह एक्सपेरिमेंट फेल हुआ और पोप के साथ उन लड़कों की भी मौत हो गई।

1665: कुत्तों में ब्लड ट्रान्स्फ्यूज़न किया गया

ऐसा माना जाता है कि पहला ब्लड ट्रान्स्फ्यूज़न 1665 में कुत्तों के बीच किया गया था। जिसके दो साल बाद भेड़ से इंसान में ब्लड को ट्रांसफर किया गया।

1667: इंसान में पहली बार किया गया ब्लड ट्रान्स्फ्यूज़न

फ्रांस में पहली बार किंग लुई XIV के डॉक्टर ने एक भेड़ के खून को 15 साल के बच्चे में ट्रांसफर किया, जिसकी जान बच भी गई। हालांकि, इस तरीके में कई रिएक्शन देखे गए, जिसके बाद इसे जल्द ही बैन भी कर दिया गया।

1818: इंसान से इंसान में हुआ ट्रान्स्फ्यूज़न

ब्रिटिश ऑब्स्टट्रिशन और फिजियोलॉजिस्ट जेम्स ब्लंडेल ने पहली बार मानव-से-मानव में रक्त को पहुंचाया। उन्होंने एक ऐसे मरीज में 12 से 14 आउंस रक्त इंजेक्ट किया, जो आंतरिक रक्तस्राव से पीड़ित था। इसके लिए उन्होंने कई डोनर्स से खून लिया। हालांकि शुरुआत में मरीज में सुधार देखा जा रहा था, लेकिन फिर उसकी मौत हो गई।

1901: तीन अहम ब्लड ग्रुप्स का पता चला

20वीं सदी की शुरुआत में तीन अहम ब्लड ग्रुप्स का पता चला, जिसमें ए, बी और सी शामिल हैं। 'सी' को बाद में टाइप 'O' के नाम से जाना जाने लगा।

1902: चौथा ब्लड ग्रुप का पता लगा

एक साल बाद AB टाइप, यानी चौथे ब्लड ग्रुप का पता चला।

1907: क्रॉस मैचिंग का पहली बार इस्तेमाल

मरीज को ब्लड डोनर्स के रक्त से किसी तरह का रिएक्शन न हो, इसके लिए क्रॉस मैचिंग की जाती थी।

1914: पहली बार डायरेक्ट ट्रांसफ्यूज़न नहीं हुआ

इससे पहले डोनर सीधे मरीज को रक्तदान करता था। फिर शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर रक्त में सोडियम सिट्रेट मिला दिया जाए, तो इससे ब्लड में क्लॉटिंग नहीं होगी। एंटी-कॉगूलेंट मिलाने और रेफ्रिजरेट करने से रक्त को कई दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। जिसके बाद ब्लड बैंक की शुरुआत हुई।

1917: पहला ब्लड बैंक

सेना के डॉक्टर ने O टाइप रक्त को कलेक्ट कर स्टोर किया। ताकि इसका उपयोग पहले विश्व युद्ध में किया जा सके।

1930: पहली ब्लड फैसीलिटी

सोवियत पहला ऐसा देश था, जहां रक्त को एकत्र करने और बाद में उपयोग के लिए उसे स्टोर करने की सुविधा स्थापित की गई थी।

1935: पहली बार अस्पताल में उपलब्ध हुआ ब्लड

मायो क्लीनिक ने पहली बार रक्त को स्टोर करना शुरू किया और वक्त पड़ने पर इसका अस्पताल में ही इस्तेमाल किया गया।

1939-40: Rh ब्लड ग्रुप की खोज

आरएच ब्लड ग्रुप की खोज और एंटी-आरएच के रूप में स्टिल बर्थ की वजह बनने वाले एंटीबॉडी की पहचान हुई।

1948: ब्लड स्टोर करने के लिए प्लास्टिक बैग बना

डोनर के ब्लड को स्टोर करने के लिए प्लास्टिक का बैग बनाया गया।

1971: हेपेटाइटिस-बी के लिए टेस्ट बना

रक्त में हेपेटाइटिस-बी एंटीबॉडीज़ की पहचान करने के लिए टेस्ट की शुरुआत हुई। ताकि डोनर का खून अगर संक्रमित हो तो उसका पता चल सके।

AIDS का दौर शुरू हुआ

1981: एड्स का पहला मामला सामने आया

एड्स को पहले GRID (Gay-related Immunodeficiency Disease) कहा जाता था, क्योंकि यह आमतौर पर समलैंगिक पुरुषों में ही पाया गया था। इसका नाम बाद में AIDS (Acquired Immune Deficiency Syndrome) रखा गया।

1983: AIDS वायरस सामने आया

शोधकर्ताओं ने उस वायरस को अलग किया, जो AIDS का कारण बन रहा था।

1984: एड्स के वायरस की पहचान हुई

HTLV III - ह्यूमन टी-सेल लिम्फोट्रोपिक वायरस की पहचान हुई, जो एड्स की वजह बनता है।

1985: पहला एड्स ब्लड-स्क्रीनिंग टेस्ट किया गया

एचआईवी एंटीबॉडी की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाने के लिए पहला रक्त-जांच परीक्षण हुआ। ELISA टेस्ट को अमेरिकी रक्त बैंकों और प्लाज्मा केंद्रों द्वारा सार्वभौमिक रूप से अपनाया गया है।

1999: NAT टेस्टिंग

अमेरिका में रक्त केंद्रों ने सभी रक्तदानों के लिए न्यूक्लिक एसिड परीक्षण (Nucleic Acid Testing) शुरू किया। इसकी मदद से रक्तदाता की खून की जांच में ज्यादा समय नहीं लगता और समय रहते एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सी का पता चल जाता है।