क्या है क्रॉनिक हार्ट फेलियर?
दिल की बीमारी के कारण जब हमारा दिल पूरी ताकत से खून पंप नहीं कर पाता तो इसे क्रॉनिक हार्ट फेलियर कहते हैं। ये बीमारी अक्सर हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज जैसी अन्य बीमारियों के कारण होती है। कई बार दवाओं के बावजूद भी ये बीमारी बढ़ सकती है, जिसे वर्सनिंग हार्ट फेलियर कहते हैं। इस स्थिति में पेशेंट को बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है।
ध्यान रहे, दिल की बीमारी के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। समय पर डॉक्टर की सलाह लेने से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है और अस्पताल में भर्ती होने से बचा जा सकता है। जब लोग कहते हैं कि उनका दिल काम करना बंद कर रहा है, तो इसका मतलब आमतौर पर क्रोनिक हार्ट फेलियर होता है। 'क्रोनिक' का मतलब है कि यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, अचानक नहीं। कई लोगों को यह जानकर हैरानी होती है कि उन्हें यह बीमारी है, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण बहुत हल्के होते हैं।
हल्के में न लें थकान और सांस फूलने की तकलीफ
डॉ. प्रवीण चंद्रा बताते हैं, "मुझे एक बुजुर्ग महिला का मामला याद है। उन्हें यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी थकान और चलने पर सांस फूलने की समस्या का संबंध हार्ट फेलियर से हो सकता है। हालांकि, जब जांच की गई तो उनमें हार्ट फेलियर के शुरुआती लक्षण मिले।"यह भी पढ़ें- Healthy Heart के लिए बेहद जरूरी है ओमेगा थ्री फैटी एसिड, डाइट में शामिल करने से मिलेंगे और भी कई फायदे
क्रोनिक हार्ट फेलियर के कारण
डॉ. बताते हैं कि, "हमारा दिल पूरे शरीर में खून पंप करता है। जब यह काम धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है, तो क्रोनिक हार्ट फेलियर हो सकता है। लंबे समय तक हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, दिल का दौरा या दिल के वाल्व में समस्या होने से दिल को ज्यादा काम करना पड़ता है, जिससे यह बीमारी हो सकती है। इसके अलावा डायबिटीज और किडनी की बीमारी भी दिल को कमजोर बना सकती हैं।"
क्रोनिक हार्ट फेलियर के लक्षण
क्रोनिक हार्ट फेलियर धीरे-धीरे होता है और शुरुआत में इसके लक्षण हल्के होते हैं, जैसे थकान। इसलिए लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। जब बीमारी बढ़ जाती है, तो फेफड़े या शरीर के अन्य हिस्सों में पानी भर जाता है। इससे टखने सूज जाते हैं, सांस फूलती है और खांसी होती है। सबसे बड़ी गलती ये है कि लक्षण गंभीर हो जाने के बाद लोग डॉक्टर के पास जाते हैं।
क्या इलाज के बाद भी बिगड़ सकती है बीमारी?
डॉ. प्रवीण चंद्रा बताते हैं, कि इलाज के बाद
क्रोनिक हार्ट फेलियर की स्थिति को संभाला जा सकता है। हालांकि यह जानना जरूरी है कि स्टैंडर्ड थेरेपी के बाद भी 6 में से 1 मरीज में क्रोनिक हार्ट फेलियर ‘वर्सनिंग हार्ट फेलियर’ में बदल सकता है। मेरे एक 70 वर्षीय बुजुर्ग मरीज थे, जिन्हें क्रोनिक हार्ट फेलियर की समस्या थी। वह अपनी सेहत को लेकर बहुत अलर्ट रहते थे। वह रोजाना अपनी सभी दवाएं लेते थे, हेल्दी डाइट लेते थे और रोजाना वॉक पर जाते थे। वह एक दिन मेरे पास आए और बताया कि उनका वजन तीन दिन में अचानक तीन किलो बढ़ गया है। उन्हें सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी। जांच के बाद उन्हें कुछ दिन इंट्रावीनस थेरेपी दी गई। इसका अर्थ था कि उनका क्रोनिक हार्ट फेलियर बिगड़कर वर्सनिंग हार्ट फेलियर बन गया था।
वर्सनिंग हार्ट फेलियर की स्थिति में मरीजों को बार-बार इंट्रावीनस ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है या अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। समय के साथ अस्पताल में भर्ती होने की दर बढ़ती जाती है और जीवन की गुणवत्ता खराब होती जाती है। पहले वर्सनिंग हार्ट फेलियर के मरीजों को भी वही इलाज मिलता था, जो क्रोनिक हार्ट फेलियर के मरीजों के लिए था। हालांकि आज के समय में हमने एडवांस्ड थेरेपी विकसित की हैं, जिनसे अस्पताल में भर्ती होने की दर कम हो जाती है।
क्या होते हैं वर्सनिंग हार्ट फेलियर के संकेत?
क्रोनिक हार्ट फेलियर के मरीजों को रात में सांस लेने में तकलीफ, अचानक वजन बढ़ना, भूख न लगना, बेहोशी और ज्यादा खांसी जैसे लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए। ये लक्षण बीमारी के बढ़ने का संकेत हो सकते हैं। नियमित रूप से कार्डियोलॉजिस्ट से मिलना बहुत जरूरी है ताकि बीमारी बिगड़ने से पहले ही इसका इलाज किया जा सके।
हार्ट फेलियर: क्या जीवन पहले जैसा हो सकता है?
क्रोनिक हार्ट फेलियर का
वर्सनिंग हार्ट फेलियर बन जाना बहुत पीड़ादायक होता है। खासकर जो व्यक्ति इलाज ले रहा हो और डाइट एवं लाइफस्टाइल को लेकर सतर्क रहता हो, उसके लिए यह और भी कष्टकारी हो जाता है। जल्दी जांच और एडवांस्ड थेरेपी की मदद से आप अस्पताल में बार-बार जाने से बच सकते हैं और अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं। बस आप अपनी तरफ से बेस्ट कीजिए और बाकी का काम आपके कार्डियोलॉजिस्ट पर छोड़ दीजिए।
कार्डियोवस्कुलर बीमारियों पर विशेषज्ञ की राय
इससे जुड़े विषय को और अधिक जानने के लिए हमने डॉ. टी. एस. क्लेर, चेयरमैन और एचओडी, बीएलके मैक्स हार्ट एंड वैस्कुलर इंस्टीट्यूट से भी बातचीत की। उन्होंने कहा, "कार्डियोवस्कुलर बीमारियां हृदय और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली कई प्रकार की स्थितियों को शामिल करती हैं, जैसे कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट फेलियर, एरिदमियास, और वाल्व संबंधी बीमारियां जैसे कि एओर्टिक स्टेनोसिस। एओर्टिक स्टेनोसिस तब होता है जब एओर्टिक वाल्व संकरा हो जाता है, जिससे हृदय से रक्त प्रवाह में रुकावट आती है और इस महत्वपूर्ण अंग पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसके सामान्य लक्षणों में सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और थकान शामिल हैं, इसलिए समय पर निदान और उपचार इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए बहुत जरूरी है।"
"एओर्टिक स्टेनोसिस से पीड़ित मरीजों के लिए Transcatheter Aortic Valve Implantation (TAVI) जैसी नवीन उपचार विधियां एक नई उम्मीद लेकर आई हैं। TAVI एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें पारंपरिक ओपन-हार्ट सर्जरी की जरूरत नहीं होती और क्षतिग्रस्त वाल्व को बदला जाता है। यह तकनीक रिकवरी के समय को काफी हद तक कम करती है और जटिलताओं को भी घटाती है, जिससे विशेषकर बुजुर्गों या कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे मरीजों को दिल की कार्यक्षमता वापस पाने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का मौका मिलता है।चिकित्सकीय हस्तक्षेप के अलावा, नियमित शारीरिक गतिविधि भी हृदय स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। हर दिन सिर्फ 40 मिनट एक्सरसाइज को समर्पित करना दिल की बीमारियों के खतरे को काफी कम कर सकता है। तेज चलना, साइक्लिंग या तैराकी जैसी गतिविधियों में हिस्सा लेने से हृदय मजबूत होता है, रक्त प्रवाह में सुधार होता है, और वजन व ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के प्रति जागरूकता, समय पर हस्तक्षेप और जीवनशैली में बदलाव को प्राथमिकता देकर हम इन स्थितियों से प्रभावी ढंग से लड़ सकते हैं और अपनी कम्युनिटी के लिए एक स्वस्थ भविष्य को बढ़ावा दे सकते हैं। हर प्रयास मायने रखता है, और हृदय स्वास्थ्य की दिशा में उठाया गया हर कदम समग्र भलाई में योगदान देता है।"
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