World Menstrual Hygiene Day: हर साल इस वजह से मनाया जाता है ‘मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’,जानें इसका इतिहास और महत्व
World Menstrual Hygiene Day 2023 पीरियड्स सभी महिलाओं के लिए बेहद जरूरी होता है। आज भी इसे लेकर कई तरह की भ्रांतिया फैली हुई हैं। ऐसे में इस दौरान स्वच्छता के महत्व के प्रति जागरूक करने के लिए मकसद से हर साल ‘वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ मनाया जाता है।
By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Sun, 28 May 2023 08:46 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। World Menstrual Hygiene Day 2023: पीरियड्स एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे एक महिला हर महीने गुजरती है। महिलाओं के लिए इसे एक बेहद जरूरी माना जाता है, हालांकि इस दौरान उन्हें कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं को साफ-सफाई का भी खास ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि साफ-सफाई की कमी की वजह से कई बार कई तरह की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस यानी ‘वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं क्या है इस दिन का इतिहास और इसका महत्व-
मेन्सट्रुअल हाइजीन डे का इतिहास
इस दिन को मनाने की शुरुआत सबसे पहले साल 2014 में हुई थी। जर्मन की एक नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन डब्ल्यूएएसएच (WASH) यूनाइटेड द्वारा वर्ल्ड मेंस्ट्रूअल हाइजीन डे मनाने की शुरुआत की गई थी। साल 2014 के बाद से हर साल 28 मई को सेलिब्रेट किया जा रहा है।
मेन्सट्रुअल हाइजीन डे का उद्देश्य
मासिक धर्म को लेकर आज भी कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। साथ ही इसे लेकर कई लोग आज भी रूढ़िवादी सोच का शिकार है। इसके अलावा गांव ही नहीं शहरों में भी कई महिलाएं ऐसी हैं, जो पीरियड से जुड़ी जरूरी चीजों के बारे में अनजान है। ऐसे में पीरियड्स को लेकर जरा सी सर्वाइकल कैंसर या योनि संक्रमण जैसी गंभीर समस्याओं की वजह बनती है। ऐसे में महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का ख्याल रखने के मकसद से हर साल मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है इस दिन का मुख्य उद्देश्य पीरियड से जुड़ी अहम जानकारी लोगों तक पहुंचाना है, ताकि महिलाएं किसी भी बीमारी का शिकार होने से बचे।मेन्सट्रुअल हाइजीन डे का महत्व
इस दिन को मनाने के लिए 28 तारीख का चुनाव करने का भी अपना अलग महत्व है। दरअसल, ज्यादातर महिलाओं को महीने में 5 दिन पीरियड से होते हैं और औसत पीरियड साइकिल 28 दिन की होती है। यही वजह है कि हर साल 28 मई को मेंस्ट्रूअल हाइजीन डे मनाया जाता है।गांव-देहात में अक्सर कई कारणों से महिलाएं सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं जैसे कि पैसे की कमी, जागरूकता की कमी और सैनिटरी नैपकिन की सुलभता में कमी। इस संबंध में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं माहवारी दिनों कपड़े से काम चलाती हैं, जिसे स्वच्छ और सुरक्षित नहीं माना गया है। लेकिन यह चलन उनकी सेहत के लिए हानिकारक है और इस अज्ञानता से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर, प्रजनन मार्ग में संक्रमण, हेपेटाइटिस बी का संक्रमण, मूत्र मार्ग में संक्रमण और ऐसी अन्य अत्यंत गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हर साल लगभग 20 मिलियन लड़कियां स्कूल की पढ़ाई छोड़ देती हैं क्योंकि स्वच्छता का कोई साधन, केवल लड़कियों का शौचालय और सैनिटरी नैपकिन वहां कुछ भी नहीं मिलता है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में भारत में भारी प्रगति के साथ कई परिवर्तन हुए हैं। देश के नीति निर्माताओं ने माहवारी के मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है लेकिन इस दिशा में सुधार संतोषजनक नहीं है। फिर भी भारत के शहरों और गांवों की (वंचित महिलाओं) के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, जागरूकता कार्यक्रम, विशेष अभियान, निःशुल्क सैनिटरी नैपकिन वितरण जैसे प्रयास जारी हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में 15-24 वर्ष की महिलाओं में स्वच्छता के सुरक्षित उपाय (स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन, सैनिटरी नैपकिन) उपयोग करने में 24.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई; यह 2015-16 में 48.2 प्रतिशत से बढ़ कर 2019-21 में 72.3 प्रतिशत हो गई। माहवारी में स्वच्छता के सुरक्षित उपाय करने में शहर एवं गांव के बीच अंतर भी कम हुआ है। 2015-16 और 2019-21 के बीच सबसे ज्यादा सुधार ओडिशा (42.8 प्रतिशत से बढ़ कर 79.5 प्रतिशत), राजस्थान (47.9 प्रतिशत से बढ़ कर 81.9 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (47.6 प्रतिशत से बढ़ कर 79.7 प्रतिशत) के ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है।
आज इस सिलसिले में सरकार/एनजीओ/सीएसओ की कई परियोजनाएं हैं। केंद्र सरकार ने जन औषधि सुविधा योजना शुरू कर 1 रुपये में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराई है। कई अन्य परियोजनाएं निजी संगठनों ने शुरू की हैं। ऐसी ही एक परियोजना है, ‘प्रोजेक्ट बाला’ जिसकी कमान संभाल रहे हैं कॉर्नेल और वारविक विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। यह परियोजना हर माहवारी के लिए पर्याप्त मात्रा में सस्ता और टिकाऊ स्वच्छता समाधान सुनिश्चित करती है। पूरे भारत में इसके 1,100 से अधिक कार्यशालाएँ हुई हैं और जून 2022 तक ऐसे 350,000 पैड बांटे गए जिनका दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस साल नई दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) ने एक नई पहल करते हुए हर महीने महिला सफाई कर्मियों को सैनिटरी नैपकिन देने का फैसला किया। इसका लाभ लगभग 640 महिला कर्मचारियों को मिलेगा यह उम्मीद है। इसी तरह ‘प्रदान’ ने इस समस्या के समाधान का बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है। यह महिला समूह के मार्गदर्शन में कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन कर महिलाओं को माहवारी के बारे में अधिक जागरूक कर रहा है। यह अलग-अलग जगहों पर और समुदाय के मार्गदर्शन में सैनिटरी नैपकिन उत्पादन केंद्र बनाने पर जोर देता है; तकनीकी ज्ञान और उद्यम कौशल का प्रशिक्षण देता है; महिलाओं को स्थानीय स्तर पर सस्ता सैनिटरी नैपकिन बनाने में सक्षम बनाता है।
सामुदायिक सहायता समूह और स्वयं सहायता समूह भी ग्रामीण भारत में माहवारी के दौरान बेहतर देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। महिलाओं को यह बता रहे हैं कि सेहत के लिए हानिकारक भोजन से माहवारी की समस्याएं बढ़ती हैं इसलिए वे उचित पोषण पर जोर दें। ‘प्रदान’ ने स्थानीय कृषि विभागों से सहयोग करार कर आयरन, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर पौष्टिक फसलों की खेती को बढ़ावा देने का सराहनीय प्रयास किया है। इस एनजीओ ने अपनी पहल का दायरा बढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) से भी सहयोग करार किया है।
पिछले कुछ वर्षों में गैर सरकारी संगठनों / सीएसओ /केंद्र और राज्य सरकारों के कार्मिकों/ समुदाय प्रमुखों, पंचायतों के कार्यकर्ताओं ने मिल कर माहवारी को लेकर सदियों पुरानी मान्यताओं को बदलने, इस जागरूकता के प्रभाव और जरूरत पर खुल कर चर्चा हो इस दिशा में एक साथ काम किया है। सभी चाहते हैं कि समाज माहवारी को महिला की अपवित्रता के रूप में नहीं देखे और महिलाएं अधिक स्वच्छ जीवन शैली अपनाएं। हालाँकि इस दिशा में अभी बहुत काम करना है। महिलाओं की नई-नई चुनौतियों का समाधान करना है और उन्हें इस बारे में ज्ञान और संसाधन उपलब्ध कराना है। माहवारी के दौरान स्वच्छता एक महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है जिसके माध्यम से हम गांव-गांव में अधिक समावेशी एवं समतापूर्ण समाज बना सकते हैं और भारत के शहरों में भी वंचित महिलाओं का जीवन स्तर उठा सकते हैं।(Sarbani Bose, Integrator, PRADAN NGO से बातचीत पर आधारित)Picture Courtesy: Freepik