लाइपस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। World Obesity Day: दुनिया में मोटापे की समस्या को कम करने के लिए हर साल 4 मार्च को वर्ल्ड ओबेसिटी डे मनाया जाता है। इस दिन का मकसद, मोटापे से जुड़े हेल्थ रिस्क, मिथक और बचाव के तरीकों के बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करना है। इस कारण से सेहत से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं। मोटापा कई बीमारियों के जोखिम को कई गुणा तक बढ़ा सकता है। हालांकि, वजन कम करके इनके रिस्क को कम भी किया जा सकता है। आइए जानते हैं, इसकी वजह से किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
मोटापे की वजह से होने वाली बीमारियां-
मोटापे की वजह से कई बीमारियों का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जिनमें कई बीमारियां जानलेवा भी होती हैं। क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक, जब बॉडी कैलोरी बर्न नहीं कर पाती है, तो वह फैट के रूप में शरीर में इकट्ठा होने लगता है, लेकिन जब शरीर में एडीपोड टिश्यू (बॉडी फैट) में और फैट स्टोर करने की जगह नहीं होती है, तब फैट सेल्स बड़े होने लगते हैं, जिस वजह से हार्मोनल असंतुलन और इंफ्लेमेशन (सूजन) बढ़ने लगता है। इन वजहों से बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
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हार्ट डिजीज और स्ट्रोक
मोटापे की वजह से शरीर में सूजन बढ़ने लगती है, जिसका असर हमारे ब्लड वेसल्स पर भी पड़ता है। ब्लड वेसल्स पर दबाव पड़ने की वजह से ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। ब्लड प्रेशर हाई होना दिल के लिए काफी हानिकारक होता है और इस कारण से
हार्ट डिजीज का खतरा बहुत बढ़ जाता है। इसके अलावा, मोटापे की वजह से कोलेस्ट्रॉल लेवल भी बढ़ने लगता है, जो आर्टिरीज को ब्लॉक कर सकता है। इस कारण से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा काफी अधिक रहता है।
डायबिटीज
मोटापे की वजह से ब्लड शुगर लेवल बढ़ने का खतरा औरों की तुलना में काफी अधिक हो जाता है। मोटापे की वजह से शरीर में इंफ्लेमेशन बढ़ जाती है, जो इंसुलिन रेजिस्टिविटी को बढ़ा देता है। इंसुलिन रेजिस्टिविटी बढ़ने की वजह से बॉडी इंसुलिन को ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाती है और शुगर लेवल काफी बढ़ने लगता है। इस वजह से डायबिटीज का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है।
फैटी लिवर
मोटापे की वजह से लिवर में एक्सट्रा फैट इकट्ठा होने लगता है, जिस वजह से लिवर में इंफ्लेमेशन और फैटी लिवर का खतरा काफी बढ़ जाता है। लंबे समय तक इस समस्या का इलाज न होने की वजह से यह
लिवर सिरोसिस की वजह भी बन सकता है। इस कारण से लिवर डैमेज होने लगता है और कैंसर का रूप भी ले सकता है।
आर्थराइटिस
वजन बढ़ने की वजह से जोड़ों पर काफी जोर पड़ता है। ज्यादा दबाव की वजह से हड्डियां घिसने लगती हैं। साथ ही, मोटापे की वजह से जोड़ों में भी सूजन बढ़ने लगती है, जिस कारण से हड्डियों में दर्द होने लगता है। इसे आर्थराइटिस कहते हैं। आमतौर पर यह बढ़ती उम्र के साथ होता है क्योंकि तब हड्डियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है, लेकिन मोटापे की वजह से कम उम्र में भी इसका खतरा काफी बढ़ जाता है।
स्लीप एपनिया
मोटापे में बॉडी का फैट बढ़ जाता है, जो शरीर के हर हिस्से में इकट्ठा होता है। गले में फैट ज्यादा होने की वजह से कई बार सीधा सोने में तकलीफ हो सकती है। इसका कारण है कि फैट की वजह से एयर पाईप ब्लॉक होने लगता है, जिसे स्लीप एपनिया कहते हैं। स्लीप एपनिया में सोते समय बार-बार सांस आनी बंद होने लगती है, जिस कारण से सोने में काफी तकलीफ होने लगती है और नींद पूरी नहीं हो पाती है। इस कारण से दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
गौलबलैडर में पत्थरी
मोटापे की वजह से शरीर मे कोलेस्ट्रॉल बढ़ने लगता है, जो गौल ब्लैडर में इकट्ठा होने लगते हैं। इस कारण से गौलस्टोन्स (Gallstone) की समस्या हो सकती है। इसकी वजह से काफी दर्द होता है और पाचन से जुड़ी समस्याएं भी होने लगती हैं। इसके कारण गौल ब्लैडर से जुड़ी अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं।
गाउट
गाउट आर्थराइटिस का एक प्रकार है, जिसमें जोड़ों में यूरिक एसिड बढ़ने लगता है, जिस कारण से जोड़ों में सूजन और दर्द की समस्या होने लगती है। इस कारण से चलने-फिरने में काफी तकलीफ होने लगती है।
कैंसर
मायो क्लीनिक के मुताबिक, मोटापे की वजह से कई कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, जैसे सर्वाइकल, कोलोन, रेक्टम, ओवरी, ब्रेस्ट, यूटेरस, पैनक्रियाटिक और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है।
डिप्रेशन
मोटापे की वजह से क्लीनिकल डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा काफी बढ़ जाता है। मोटापे के लिए जिम्मेदार फैक्टर्स, जैसे- सेडेंटरी लाइफस्टाइल, अनहेल्दी फूड्स आदि की वजह से डिप्रेशन का जोखिम काफी अधिक बढ़ जाता है।
हाइपरटेंशन
मोटापे की वजह से शरीर में इंफ्लेमेशन बढ़ जाता है, जिस कारण से ब्लड प्रेशर का खतरा काफी बढ़ जाता है। साथ ही, शुगर लेवल और कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की वजह से भी ब्लड प्रेशर बढ़ने का जोखिम बढ़ जाता है। हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को हाइपरटेंशन कहा जाता है। इस कारण से ब्लड वेस्लस पर काफी दबाव पड़ता है और उनके फटने की या क्लॉटिंग का रिस्क भी बढ़ जाता है।
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