तालिबान के खिलाफ सुरों की लड़ाई, संगीत की शक्ति से सत्ता को चुनौती देतीं अफगान महिलाएं
अफगानिस्तान में जब से तालिबान सत्ता में आया है उसने महिलाओं के सभी अधिकारों को कुचलकर रख दिया है। अब वहां महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर न तो चेहरा दिखाने की आजादी है न बोलने की और न गाने की। इस कानून के खिलाफ विरोध (Afghans Protest Against Taliban) करने के लिए महिलाओं ने अब सोशल मीडिया पर संगीत को हथियार बनाया है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। "अगर मैं नहीं हूं, तो तुम कौन हो?" यह सवाल अफगानिस्तान की एक महिला का है, जो तालिबान के दमनकारी शासन के खिलाफ संगीत के जरिए अपना विरोध (Afghan Women's Protest Against Taliban) जता रही है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से, अफगान महिलाओं के जीवन पर अंधेरा छा गया है। उन्हें सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है। लेकिन इन सबके बावजूद, ये महिलाएं हार नहीं मान रही हैं।
संगीत की ताकत
संगीत, जो प्रेम की भाषा है, आज विद्रोह का प्रतीक बन गया है। संगीत अब अफगान महिलाओं के लिए आवाज उठाने का एक माध्यम बन गया है। अगर आप नहीं जानते, तो आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के लगभग सारे अधिकार छीन लिए गए हैं। तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर बोलने, गाने और चेहरा दिखाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इसी कानून के खिलाफ विरोध जताने के लिए संगीत का सहारा लिया जा रहा है।
महिलाएं अपने गीतों के माध्यम से तालिबान के अन्याय के खिलाफ खड़ी हो रही हैं और दुनिया को अपनी पीड़ा दिखा रही हैं। सोशल मीडिया पर, अफगान महिलाएं गाने गाते गुए अपना वीडियो शेयर कर रही हैं, जिनमें वे तालिबान के खिलाफ बोल रही हैं और अपनी आजादी की मांग कर रही हैं। विडियो शेयर करके एक महिला तालिबान से पूछ रही है कि “तुम्हारे बीच सच्चे पुरुष कहां हैं?”
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تو صدای من را عورت بخوان؛ ولی من سرود آزادی خواهم خواند.!#No_to_taliban pic.twitter.com/Fc9VvuopZU
— Taiba Sulaimani ( طیبه سلیمانی) (@Taiba_sulaimani) August 27, 2024
महिलाओं का तालिबान के खिलाफ विद्रोह
महिलाएं धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी शिक्षा का हवाला देते हुए कह रही हैं कि तालिबान को सही शिक्षा की जरूरत है। अफगान महिलाओं का यह संगीतिक विरोध सिर्फ अफगानिस्तान तक ही सीमित नहीं है। अपनी आजादी के लिए आवाज उठाती इन महिलाओं की ये मुहीम अब अफगानिस्तान की सरहद को पार करके दक्षिण एशिया और यूरोप के अन्य हिस्सों तक पहुंच चुका है। दुनिया भर में महिलाएं उनके साथ एकजुटता दिखा रही हैं। वे भी अपने गीतों के माध्यम से अफगान महिलाओं को समर्थन दे रही हैं।डॉ. जहरा, जो पहले अफगानिस्तान में एक डेंटिस्ट थीं, अब जर्मनी में रहती हैं। उन्होंने भी इस अभियान में भाग लिया है। अपने गीत के माध्यम से वे कहती हैं, "यदि मैं नहीं हूं, तो तुम नहीं।" वे यह संदेश देना चाहती हैं कि समाज के निर्माण में महिलाओं का कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है। डॉ. जहरा खुद भी तालिबान का जुल्म सह चुकी हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद उनकी नौकरी चली गई, जिसके खिलाफ उन्होंने महिलाओं को इकट्ठा करके सड़क पर आंदोलन किया, लेकिन उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने देश छोड़ दिया और जर्मनी में रहने लगीं।