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Engineers Day 2024: देश के पहले इंजीनियर थे सर विश्वेश्वरैया, जिनकी बुद्धिमत्ता से टल गया था एक बड़ा रेल हादसा

15 सितंबर को देश में हर साल इंजीनियर्स डे (Engineers Day 2024) मनाया जाता है। इसका श्रेय भारत के महानतम इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया को जाता है जिन्होंने इंजीनियर के क्षेत्र में ऐसी महान उपलब्धियां हासिल की जो इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। आइए इस खास मौके पर आपको बताते हैं कि उनके जीवन से जुड़े एक रोचक किस्से के बारे में।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sat, 14 Sep 2024 04:47 PM (IST)
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सर विश्वेश्वरैया की दूरदर्शिता ने कैसे टाला एक बड़ा रेल हादसा (Image Source: X)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Engineers Day 2024: भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। यह दिन भारत के महानतम इंजीनियर्स में से एक, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को समर्पित है। कर्नाटक के मैसूर जिले के एक छोटे से गांव चिक्काबल्लापुर में 15 सितंबर 1861 को जन्मे विश्वेश्वरैया ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को अपनी इंजीनियरिंग प्रतिभा का लोहा मनवाया।

विश्वेश्वरैया ने कृष्णा राज सागर बांध जैसी विशाल सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण करके भारत के कृषि क्षेत्र को नई ऊंचाइयां दी। उन्होंने जल विद्युत उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने शहरों के नियोजन और शहरी विकास में भी अहम भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया। आइए इस खास मौके पर जानें उनके जीवन से जुड़े एक दिलचस्प किस्से के बारे में।

क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे?

इंजीनियर्स डे सिर्फ एक दिन नहीं है, बल्कि यह इंजीनियरों को समर्पित एक पूरे सप्ताह का जश्न है। इस दिन देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें व्याख्यान, प्रदर्शनियां और पुरस्कार समारोह शामिल हैं। इसका उद्देश्य युवाओं को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित करना और इंजीनियरों के योगदान को पहचानना है। विश्वेश्वरैया ने कहा था, 'एक इंजीनियर का काम सिर्फ मशीनें बनाना नहीं है, बल्कि एक बेहतर समाज का निर्माण करना है।' उनके इस विचार को हम सभी को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।

युवाओं के लिए प्रेरणा बने विश्वेश्वरैया

एक तेलुगु परिवार में जन्मे विश्वेश्वरैया ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की। बचपन से ही उनकी जिज्ञासा और सीखने की ललक देखते बनती थी। वे अक्सर गांव के पुराने कुओं और तालाबों को देखकर सोचते रहते थे कि इनका निर्माण कैसे हुआ होगा।

गांव में शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद, विश्वेश्वरैया ने बैंगलोर से बीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद, इंजीनियरिंग के प्रति उनके जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उस समय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना आसान नहीं था, लेकिन विश्वेश्वरैया ने अपनी मेहनत और लगन से सभी चुनौतियों का सामना किया। पुणे में उन्होंने न केवल इंजीनियरिंग के बुनियादी सिद्धांतों को सीखा, बल्कि कई व्यावहारिक परियोजनाओं में भी भाग लिया।

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कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, विश्वेश्वरैया ने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी (Public Works Department) में नौकरी ज्वाइन की। यहां उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में अहम भूमिका निभाई। एम. विश्वेश्वरैया के देश के प्रति किए गए महान कार्यों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भारत सरकार ने 15 सितंबर 1968 में उनके जन्मदिन को इंजीनियर्स डे के तौर पर मनाने का एलान किया था। यही वजह है कि हर साल उनके जन्मदिन को इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है।

भारत के विकास को दी नई पहचान

डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सिर्फ एक इंजीनियर ही नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी थे जिन्होंने भारत के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनकी कई उपलब्धियां आज भी देश के विकास के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। विश्वेश्वरैया को उनके असाधारण योगदान के लिए 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ब्रिटिश सरकार ने भी उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया था। विश्वेश्वरैया का निधन 14 अप्रैल, 1962 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी हमारे बीच जीवित है। उनके द्वारा बनाए गए बांध, कारखाने और शिक्षण संस्थान आज भी देश के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

पहले ही लगा लिया था रेल हादसे का अनुमान

एक बार डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक अंग्रेजी अधिकारी के साथ ट्रेन में सफर कर रहे थे। अंग्रेज अधिकारी, विश्वेश्वरैया के साधारण कपड़ों और शांत स्वभाव को देखकर उन्हें एक साधारण किसान समझ बैठे। उन्हें यह जानकर बड़ा मजा आ रहा था कि एक प्रतिष्ठित इंजीनियर एक साधारण-सी ट्रेन में सफर कर रहा है। उन्होंने विश्वेश्वरैया का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया, उनके ज्ञान पर सवाल उठाए और उनकी योग्यता पर संदेह किया।

विश्वेश्वरैया ने शांति से उनकी बातें सुनी। उन्हें पता था कि इन लोगों को उनके ज्ञान का महत्व नहीं समझ आएगा। तभी ट्रेन की गति में अचानक बदलाव आया और एक असामान्य आवाज सुनाई दी। विश्वेश्वरैया तुरंत समझ गए कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने अपनी सीट से उठकर चेन खींच दी और ट्रेन रुक गई।

ट्रेन रुकते ही यात्रियों में हड़कंप मच गया। सभी विश्वेश्वरैया को कोसने लगे। गार्ड ने आकर विश्वेश्वरैया से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। विश्वेश्वरैया ने शांति से जवाब दिया, "मैंने चेन खींची है क्योंकि मुझे लगा कि आगे कुछ गड़बड़ है। मुझे लगता है कि करीब 220 मीटर की दूरी पर रेल की पटरी टूटी हुई है।"

गार्ड को विश्वेश्वरैया की बातें अजीब लगीं, लेकिन फिर भी उसने विश्वेश्वरैया के अनुमान की जांच करने के लिए कुछ कदम आगे बढ़ा। कुछ ही देर में उसने देखा कि रेल की पटरी टूटी हुई थी और नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे। गार्ड और अन्य यात्री दंग रह गए।

अंग्रेज अधिकारी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह विश्वेश्वरैया से माफी मांगने लगा। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि ज्ञान और बुद्धिमत्ता हमेशा दिखावटी चीजों में नहीं होती है।

विश्वेश्वरैया क्यों कहलाए कर्नाटक के भागीरथ?

विश्वेश्वरैया ने सिर्फ सिंधु नदी ही नहीं, बल्कि मूसा और इसा नदियों के पानी को भी बांधने के लिए कई योजनाएं बनाईं। इन योजनाओं से सिंचाई की सुविधा बढ़ी और कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। इनके इस अद्भुत कार्य के लिए उन्हें कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। अपनी इन उपलब्धियों के कारण, विश्वेश्वरैया को मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने मैसूर राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कई बांधों, सड़कों और पुलों का निर्माण करवाया और राज्य को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

विश्वेश्वरैया एक ऐसे इंजीनियर थे जिन्होंने सिर्फ तकनीकी ज्ञान का ही प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उन्होंने दूरदर्शिता और नेतृत्व का भी परिचय दिया। उनकी उपलब्धियां आज भी हमें प्रेरित करती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि एक व्यक्ति कितना कुछ कर सकता है।

डॉ. मोक्षगुंडम ने 32 साल की उम्र में सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे तक पानी पहुंचाने के लिए एक प्लान बनाया। वो प्लान सभी इंजीनियरों को पसंद आया। उन्होंने बांध से पानी के बहाव को रोकने के लिए स्टील के दरवाजे बनवाए, जिसकी तारीफ ब्रिटिश अधिकारियों ने भी की। इसे ब्लॉक सिस्टम कहा जाता है, जिसका श्रेय विश्वेश्वरैया को जाता है। इस तकनीक का आज भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी काम को लेकर विश्वेश्वरैया को कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। विश्वेश्वरैया ने मूसा और इसा नाम की दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए थे। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया।

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