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उत्तर प्रदेश की आन-बान शान हैं ये नृत्य, देश ही नहीं विदेशों में भी हैं इसके दीवाने

उत्तर प्रदेश अपनी कई चीजों के साथ कई तरह के नृत्यों के लिए भी मशहूर है जो एक तरह से यहां की संस्कृति को भी दर्शाने का कम करते हैं। लोक नृत्य लोगों के लिए अपनी पारंपरिक संस्कृति को व्यक्त करने और दूसरे लोगों को उससे जुड़ने का मौका देते हैं। उत्तर प्रदेश के लोक नृत्यों में नौटंकी रकुला रासलीला कथक रामलीला ख्याल कजरी और दादरा आदि शामिल हैं।

By Priyanka Singh Edited By: Priyanka Singh Updated: Tue, 04 Jun 2024 12:14 PM (IST)
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उत्तर प्रदेश के मशहूर लोक नृत्य (Pic credit- madhulina.bardhan/shruthi.kathak)

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य हैं, जो लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। बात चाहे ज्ञान-विज्ञान की हो, धर्म-अध्यात्म की हो या फिर गीत-संगीत की हो, यहां की प्रतिभा को उच्च कोटि का दर्जा प्राप्त है। यहां के लोकनृत्यों की सराहना तो देशों-दुनिया में होती हैं। हर क्षेत्र के अपने नृत्य मिल जाएंगे जोकि अलग-अलग त्योहार या अवसरों पर किए जाते हैं। ब्रज का चरकुला, रासलीला, बुंदेलखंड की राई, डंडा-पाई, ख्याल, पूर्वांचल का धोबिया और कजरी नृत्य सरीखे अनेक लोकनृत्य है जिसे देखने के बाद दर्शक दिवाने हो जाते हैं। तभी तो यूपी अपनी इस सांस्कृतिक कला पर नाज करता है।

चरकुला नृत्य

बात जब भी उत्तर प्रदेश की हो तो ब्रज क्षेत्र को भला कैसे भूला जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की जन्मस्थली के रूप में विश्वविख्यात ब्रज क्षेत्र के नृत्य अत्यंत मनमोहक होते हैं। यहां चरकुला नृत्य में मनोरंजन, कला, अध्यात्म और परंपरा का समावेश होता है। इस नृत्य में घूंघट में महिलाएं अपने सिर पर बड़े गोलाकार लकड़ी के पिरामिडों को संतुलित करके भगवान कृष्ण के गीतों पर नृत्य करती हैं। प्रत्येक पिरामिड पर दीपक जलते रहते है। यह विशेष रूप से होली के बाद किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उस दिन राधारानी का जन्म हुआ था। किंवदंती है कि राधारानी की दादी राधा के जन्म की घोषणा के लिए अपने सिर पर चरकुला लेकर घर से बाहर दौडी थीं, तब से चरकुला ने ब्रजभूमि का एक लोकप्रिय नृत्य रूप बना लिया है, जो विभिन्न उत्सवों के दौरान किया जाता है।

रासलीला

रासलीला या कृष्णलीला में युवा और बालक कृष्ण की गतिविधियों का मंचन होता है। जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की इन सारी अठखेलियों को एक धागे में पिरोकर यानी उनको नाटकीय रूप देकर रासलीला खेली जाती है। इसीलिए जन्माष्टमी की तैयारियों में श्रीकृष्ण की रासलीला का आनन्द मथुरा, वृंदावन तक सीमित न रह कर पूरे देश में छा जाता है।

मयूर नृत्य

ब्रज क्षेत्र का मयूर नृत्य भी काफी आक​र्षक होता है। मयूर नृत्य में मोर के पंखों से बनी एक विशेष प्रकार की पोशाक पहनी जाती है। इस नृत्य की थीम भी राधा-कृष्ण के प्रेम पर आधारित होती है। यहां प्रमुख नृत्यों में झूला नृत्य का नाम भी आता हैं। खासतौर पर सावन में किया जाता है, जिसमें बालक और बालिकाएं दोनों भाग लेते हैं। मंदिरों में झूले डालकर भी यह नृत्य किया जाता है।

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कथक

कथक उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है। कथक शब्द का अर्थ कथा को नृत्य रूप में प्रस्तुत करना है। कहा जाता है कि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। कछवा के राजपूतों की राजसभा में जयपुर घराने का, अवध के नवाब की राजसभा में लखनऊ घराने का और वाराणसी की सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ। अपने अपनी विशिष्ट रचनाओं के लिए विख्यात एक कम प्रसिद्ध 'रायगढ़ घराना' भी है।

राई और ख्याल नृत्य

स्वतंत्रता आंदोलन में फिरंगियों को धूल चटाने वाले वीरों की धरती बुंदेलखंड में लोकनृत्यों की बुलंदी देखी जा सकती है। पुत्र जन्मोत्सव पर ख्याल नृत्य और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर राई नृत्य काफी मनमोहक होता है। ख्याल नृत्य में रंगीन कागजों तथा बांसों की मदद से मंदिर बनाकर फिर उसे सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है। राई नृत्य मयूर की भांति किया जाता है। इस दौरान महिलाएं पूरी तरह से घूंघट और परंपरागत आभूषण में रहती हैं।

शौरा नृत्य

बुंदेलखंड का शौरा नृत्य भी काफी लोकप्रिय है, इसे सैरा भी कहते हैं। बुंदेलखंड के कृषक अपनी फसलों को काटते समय खुशी प्रकट करने के उद्देश्य से करते हैं।

पाई डंडा नृत्य

पाई डंडा नृत्य, यह गुजरात के डांडिया नृत्य के समान है जो कि बुंदेलखण्ड के अहीर समुदाय द्वारा किया जाता है। बुंदेलखंड का घोड़ा नृत्य, कार्तिक नृत्य, दिवारी और धुरिया नृत्य भी काफी लोकप्रिय है। देवी नृत्य भी ज्यादातर बुंदेलखण्ड में ही प्रचलित है। इसके अलावा बुंदेलखंड के कई और नृत्य भी लो‍कप्रिय हैं।

धोबिया नृत्य और कजरी

धोबिया नृत्य पूर्वांचल में विशेष तौर पर प्रचलित है। यह नृत्य धोबी समुदाय द्वारा किया जाता है। धोबी जाति द्वारा मृदंग, रणसिंगा, झांझ, डेढ़ताल, घुंघरू, घंटी बजाकर होने वाला यह नृत्य जिस उत्सव में नहीं होता, उस उत्सव को अधूरा माना जाता है।

कजरी

इसी तरह कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। कजरी की उत्पत्ति मिर्जापुर में मानी जाती है। यह प्रमुख रूप से वर्षा ऋतु का लोकगीत है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है।

कठघोड़वा नृत्य

कठघोड़वा नृत्य पूर्वांचल में मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसमें एक नर्तक अन्य नर्तकों के घेरे के अंदर कृत्रिम घोड़ी पर बैठकर नृत्य करता है।

करमा नृत्य

इसके अलावा करमा नृत्य भी काफी लोकप्रिय है जो कि मीरजापुर और सोनभद्र में किया जाता है। इसी तरह मिर्जापुर और सोनभद्र आदि जिलों में चौलर नृत्य अच्छी वर्षा तथा अच्छी फसल की कामना पूर्ति हेतु किया जाता है।

जोगिनी नृत्य

जोगिनी नृत्य विशेषकर रामनवमी के अवसर पर किया जाता है। इसके अंतर्गत पुरुष महिला रूप में नृत्य करते हैं। यह नृत्‍य अवध में किया जाता है। उत्तर प्रदेश का नटवरी नृत्य भी काफी लोकप्रिय है, जो कि अवध और पूर्वांचल में किया जाता है।

उत्‍तर प्रदेश के यह कुछ प्रमुख लोक नृत्‍य हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रहे हैं। इसके अलावा भी कई लोकनृत्य हैं जो कि अलग-अलग क्षेत्रों में किए जाते हैं। इनको बढ़ावा देने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

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