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Hindi Diwas 2024: 65 करोड़ लोगों की पहली भाषा है हिंदी, जानें कैसे देश के विकास में दे रही है बड़ा योगदान

भाषा का राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान होता है इस बात का अंदाजा महात्मा गांधी की कही इस बात से लगाए कि ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है’। हिंदी दिवस (14 सितंबर) के अवसर पर हिंदी की व्यापकता और संचार की शक्ति के बारे में डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने विचार साझा किए। आइए जानें हिंदी के राष्ट्र निर्माण में योगदान और कैसे हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

By Jagran News Edited By: Swati Sharma Updated: Sat, 07 Sep 2024 03:47 PM (IST)
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क्या है हिंदी का महत्व? (Picture Courtesy: Freepik)
नई दिल्ली, डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय। आज भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाली आर्थिकी है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में देश की हैसियत लगातार बढ़ रही है। जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी महत्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में वृद्धि पाती है तो उस राष्ट्र की तमाम चीजें स्वतः महत्वपूर्ण हो जाती हैं। भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। आज विश्वस्तर पर उसकी स्वीकार्यता और व्याप्ति अनुभव की जा सकती है। पहले जिन देशों में हिंदी लगभग न के बराबर थी अब वहां भी उसकी अनुगूंज सुनी जा सकती है।

प्रतियोगी परीक्षाओं में बढ़ा प्रभुत्व आज नई पीढ़ी के लिए हिंदी भारत बोध और राष्ट्रीय अस्मिता का साधन है। हिंदी अब प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अपना प्रभुत्व दिखला रही है। नीट से लेकर संघ लोक सेवा आयोग तक हिंदी भाषा और माध्यम लेकर छात्र परीक्षाएं दे रहे हैं। इन परीक्षाओं में हिंदी और भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या अंग्रेजी से अभी भी कम है लेकिन पास होने वाले छात्रों का औसत अधिक है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत छठी कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। इसे ईमानदारी से लागू करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एम.बी.बी.एस. और इंजीनियरिंग की पढ़ाई को हिंदी में भी शुरू करवा दिया। अब सारे विषय हिंदी एवं भारतीय भाषाओं में पढ़ाए जा सकते हैं। हिंदी अब आइ.आइ.टी. से लेकर आइ.आइ.एम. तक में प्रवेश कर चुकी है।

मानविकी के अलावा विधि, वाणिज्य, विज्ञान, प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में हिंदी में शिक्षण होने लगा है। यह बड़ा बदलाव है। तकनीकी क्षेत्र में प्रभावी कार्य आज का दौर तकनीक का है और तकनीक लगातार सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जा रही है। हिंदी भी नई तकनीक के सहारे ई पेपर, ई जर्नल एवं ई बुक के रूप में वैश्विक स्तर पर पहुंच रही है। अब उपग्रह प्रसारित चैनलों, सिनेमा से लेकर ओ.टी.टी. तक हिंदी का बोलबाला है। हिंदी के इस फैलाव में डिजिटल दुनिया और इंटरनेट मीडिया की सबसे बड़ी भूमिका है। अब हिंदी वायस सर्च क्वेरी 400 प्रतिशत की दर से हर साल बढ़ रही है और इंटरनेट मीडिया हिंदी जानने वालों का सबसे बड़ा पटल बन गया है। गूगल के अनुसार पिछले दस वर्षों में इंटरनेट पर उपलब्ध होने वाली सामग्री हिंदी में 94 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। भाषाई इंटरफेस की वजह से इस समय जो तकनीकी सुविधा अंग्रेजी में उपलब्ध है, वह हिंदी में भी उपलब्ध है। अंग्रेजी की तुलना में इंटरनेट मीडिया पर हिंदी ज्यादा लोकप्रिय है। भारत निकट भविष्य में विश्व का सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोक्ता देश बनने जा रहा है जिसका सबसे प्रभावी माध्यम हिंदी रहने वाली है। अब भाषाओं का प्रशिक्षण भी ई-लर्निंग के माध्यम से संभव है।

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65 करोड़ लोगों की पहली भाषा

विश्व में व्यापक प्रसार आज हिंदी संपूर्ण विश्व में 65 करोड़ लोगों की पहली भाषा और 50 करोड़ लोगों की दूसरी और तीसरी भाषा है। आज की हिंदी अपने जिस वैभव के साथ विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है, वह अनेक बोलियों से मिलकर बनी है। उसका वर्तमान रूप इन्हीं से निर्मित हुआ है। हिंदी के विकास में इन बोलियों के अलावा देश भर के संतों, कवियों, भक्तों और साहित्यकारों की विशेष भूमिका रही है। हिंदी भारत की सांस्कृतिक एकता का मजबूत आधार बन गई है। भारतीय राज्यों में यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब, कश्मीर तथा पूर्वोत्तर के राज्यों और अधिकांश केंद्र शासित प्रदेशों में द्वितीय भाषा के रूप में व्यवहार की जाती है। इसी प्रकार नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत, इराक, फीजी, मारीशस, थाईलैंड, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गयाना जैसे देशों में यह दूसरी एवं तीसरी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। यह शेष विश्व में लगभग 20 करोड़ लोगों द्वारा चौथी, पांचवीं और विदेशी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। इस तरह संपूर्ण विश्व में 135 करोड़ लोग किसी- न- किसी रूप में हिंदी को बोल या समझ लेते हैं।

बढ़ती शक्ति का उद्घोष

हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि विश्व के जितने भी विकसित राष्ट्र हैं, उन सबने अपनी भाषा में ही विकास को प्राप्त किया है। यह बात अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, इजरायल और चीन तक समान रूप से देखी जा सकती है। इजरायल जैसे छोटे से राष्ट्र ने हिब्रू में उत्कृष्ट तथा मौलिक शोधकार्य करके अब तक 12 नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए हैं। ये सारे देश अपनी भाषाओं के विकास पर बड़ी धनराशि खर्च करते हैं। इन देशों की सरकारें ऐसी योजनाएं प्रस्तुत करतीं हैं कि उनकी भाषा और साहित्य के प्रति आकर्षण बढ़े और विश्व समुदाय की उन्मुखता उनकी ओर बनी रहे।

हम भारत सरकार से भी यही अपेक्षा रखते हैं। वर्तमान सरकार में राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर अनेक मंत्रालय हिंदी में अपना कार्य कर रहे हैं। आज हिंदी भारत के बाहर फीजी एवं संयुक्त अरब अमीरात में आधिकारिक भाषा बन गई है। संयुक्त अरब अमीरात ने तो न्यायालयों में हिंदी के प्रयोग की अनुमति दे दी है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपना एक्स हैंडल और वेबसाइट हिंदी में आरंभ कर दिया है। यह रेडियो पर एक घंटे का हिंदी कार्यक्रम प्रसारित करता है।

दो वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार के प्रयासों से हिंदी, उर्दू एवं बांग्ला तीन भारतीय भाषाओं में कामकाज की सुविधा दे दी। भले ही अभी तक इन्हें आधिकारिक भाषा का दर्जा न मिला हो लेकिन इनमें सारा कामकाज सम्पन्न हो सकता है। इसके पहले यह दुर्लभ था। यह भी बडा कारण है कि हिंदी का वर्तमान गतिशील और भविष्य आश्वस्त करने वाला है!

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हिंदीतर राज्यों से उठी थी हिंदी के लिए आवाज

केशवचंद्र सेन से लेकर लोकमान्य तिलक तक, ब्रिटिश शासनकाल में बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों के विद्वानों- नेताओं ने लहराया था हिंदी का ध्वज…

आधुनिक काल के अनेक विचारकों, राजनेताओं एवं संस्थानों ने हिंदी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में विकसित होने के योग्य बताया-बनाया है। स्वाधीनता आंदोलन के समय हिंदी देश के लिए संपर्क भाषा बनी। माना जाता है कि सर्वप्रथम बांग्लाभाषी केशवचंद्र सेन ने कहा था कि;भारत की संपर्क भाषा हिंदी बन सकती है। यह भी विचारणीय है कि केशवचंद्र सेन ब्रह्म समाज के संस्थापकों में से एक थे और अंग्रेजी पर उनका अद्भुत अधिकार था। वे जब अंग्रेजी में भाषण देते थे तो लंदन में उन्हें सुनने के लिए अंग्रेजों की भीड़ से सभागार भर जाते थे। ऐसे व्यक्तित्व ने सर्वप्रथम हिंदी के राष्ट्रीय महत्व को समझा और 1875 में ही घोषणा कर दी थी कि हिंदी में भावी भारत की संपर्क भाषा बनने की ताकत है। यही विचार हिंदी की मूल ऊर्जा बना।

माना जाता है कि केशवचंद्र सेन ने ही स्वामी दयानंद सरस्वती को ‘सत्यार्थ प्रकाश’ हिंदी में लिखने के लिए कहा और यह बात सब जानते हैं कि हिंदी के विकास में सत्यार्थ प्रकाश एवं आर्य समाज की भूमिका कितनी बड़ी है। स्वामी जी की मातृभाषा गुजराती थी। हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने का पहला सुझाव 19वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध गुजराती कवि नर्मदालाल शंकर दवे ने 1880 में दिया था।

उन्हें गुजरात ‘नर्मद कवि’ की संज्ञा से भी जानता है। हिंदी के विकास में गुजराती भाषियों की युगांतरकारी भूमिका रही है। इन्हीं के कारण वह स्वाधीनता आंदोलन की प्रमुख एवं आधिकारिक भाषा बनी। स्वामी दयानंद सरस्वती एवं नर्मद कवि के बाद प्रकारांतर में अगला बड़ा नाम गुजराती भाषी महात्मा गांधी का आता है। वो बहुभाषी थे। उनकी मातृभाषा गुजराती, शिक्षा की भाषा अंग्रेजी तथा हृदय और जनसंवाद की भाषा हिंदी थी। उन्हें यह बात अखर रही थी कि जिस भारत में हजारों वर्षों से समृद्ध भाषाएं गतिशील रही हैं, वहां पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बने। फलस्वरूप उन्होंने घोषणा की, ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। हिंदी हृदय की भाषा है और हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।’ उनका स्पष्ट अभिमत था कि अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही समझता हो।

हिंदी इस दृष्टि से सर्वथा उपयुक्त है। राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है। हिंदी की शक्ति को स्वाधीनता आंदोलन के कठिन संघर्ष के दिनों में सर्वप्रथम महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पहचाना था। उन्होंने बंग-भंग के वर्ष 1905 में वाराणसी की यात्रा की और नागरी प्रचारिणी सभा की एक सभा को भी संबोधित किया। हिंदी के विकास में काशी की नागरी प्रचारिणी सभा का अप्रतिम योगदान रहा है। उसी नागरी प्रचारिणी सभा में तिलक ने 1905 में कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी ही देश की संपर्क और राजभाषा हो सकती है’।

इसके बाद महाराष्ट्र के नेताओं, साहित्यकारों, हिंदी प्रचार संस्थाओं और सिनेमा ने हिंदी के विकास में ऐतिहासिक कार्य किया। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों से लेकर राजनेताओं तक ने हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त किया। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर देने वालों में सुभाषचन्द्र बोस से लेकर सी. राजागोपालाचारी तक रहे हैं। स्वाधीन भारत में संविधान सभा ने डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति के प्रविधान के रूप में सर्वसम्मति से 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया। तबसे हिंदी ने अनेक रुकावटों के बावजूद लगातार विकास किया है।

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