चपाती आंदोलन ने हिला कर रख दी थी ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें, रोटी का नाम सुनते ही खौफजदा हो उठते थे अंग्रेज
आजादी की राह में चपाती आंदोलन (Chapati Movement) अंग्रेजों के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया था। 1857 में जब भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा था उसी वक्त इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए लोगों को एकजुट करने के मकसद से रोटी का गजब इस्तेमाल किया गया था। आइए आपको बताते हैं इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Chapati Movement In Indian History: पहली बार 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य सर्जन डॉ. गिल्बर्ट हैडो ने चपाती आंदोलन (Chapati Movement significance) का जिक्र किया था। बता दें, कि ये आंदोलन ऐसा था जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ाकर रख दी थी (Roti Fear Among British)। उसी वक्त हैडो ने इसे जरूरी समझकर अपनी बहन को खत लिखकर इस बारे में सूचित किया था।
गिल्बर्ट ने अपने खत में लिखा था कि, "वर्तमान में पूरे भारत में एक रहस्यमय आंदोलन चल रहा है। वो क्या है इसके बारे में कोई नहीं जानता। उसके पीछे की वजहों को आज तक तलाशा नहीं गया है। ये कोई धार्मिक आंदोलन है या कोई गुप्त षड्यंत्र। इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता... कुछ पता है तो बस ये कि इसे ‘चपाती आंदोलन’ कहा जा रहा है।"
आजादी रोटी नहीं, मगर दोनों में कोई वैर नहीं...
मथुरा से शुरू हुआ यह आंदोलन लोगों को क्रांतिकारियों के अगले कदम के बारे में पहले ही सूचना पहुंचाने का काम करता था। संदेश लिखी चपातियों से भरा टोकरा दूर-दूर तक भेजा जाता था, जिससे लोगों को इस बात की जानकारी मिलती थी कि आंदोलन अब शुरू हो चुका है। उस वक्त फतेहपुर के कलेक्टर रहे जेडब्ल्यू शेरर ने अपनी 'डेली लाइफ ड्यूरिंग द इंडियन म्यूटिनी' में लिखा है- चपाती आंदोलन के पीछे का उद्देश्य रहस्यमय बेचैनी का माहौल बनाना था, यह प्रयोग भारतीय आंदोलनकारियों के लिए काफी हद तक सफल रहा था।
इस आंदोलन पर बने लोकगीतों ने भी लोगों को आजादी की लड़ाई में हिस्सा के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' अपनी मशहूर कविता 'रोटी और स्वाधीनता' में लिखते हैं कि, "आजादी रोटी नहीं, मगर दोनों में कोई वैर नहीं।"
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