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नारी शक्ति के व्यापक योगदान की महत्ता

छोटे-छोटे कदम ही भविष्य में इतिहास रचने के परिचायक बनते हैं। आज के परिवेश में केंद्र सरकार ने घर-घर में पड़ी मानसिक बेड़ियों को धीरे-धीरे अपनी नारीत्व योजनाओं के माध्यम से तोड़कर सशक्त और समृद्धि की मिसाल के रूप में खड़ा कर दिया है। गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार महिलाओं की त्रि-सेवा टुकड़ी भी कर्तव्य पथ पर मार्च करती दिखी।

By Manu Tyagi Edited By: Ruhee Parvez Updated: Thu, 15 Feb 2024 01:53 PM (IST)
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केंद्र सरकार ने घर-घर में पड़ी मानसिक बेड़ियों को धीरे-धीरे अपनी नारीत्व योजनाओं के माध्यम से तोड़ा है।

मनु त्यागी, नई दिल्ली। महादेवी या आदिशक्ति को इस संसार की सृजनशक्ति माना जाता है। ऐसी शक्ति जो सारे संसार को जोड़ती है। पूरी सृष्टि को संचालित और नियंत्रित करती है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत अंतरिम बजट में भी नारी शक्ति की महत्ता और अर्थव्यवस्था में उनके व्यापक योगदान को दर्शाया गया है। इतना ही नहीं, समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के माध्यम से देवभूमि उत्तराखंड ने नारी को वह प्रबल पहचान दी है जिसके सुखद परिणाम की अनुभूति बहुत जल्द पूरा देश कर सकता है

अधिकांश आधुनिक भारतीय रूपक प्राचीन ग्रंथों को मात्र कहानियों के रूप में देखते हैं। दुर्गा सप्तशती का एक चरित्र महिषासुर का इतिहास उनके लिए अप्रासंगिक हो जाता है, जब उन्हें पता चलता है कि शक्तिशाली राक्षस, दैत्य, जिसे ब्रह्मा ने अमरता का वरदान दिया था, अंततः इतना शक्तिशाली हो जाता है कि वह दैवीय शक्तियों को ललकारता है जो उसे रोकने में असमर्थ हैं और अंततः देवी द्वारा परास्त हो जाता है। उनके लिए सबसे आश्चर्यजनक पहलू ‘एक महिला योद्धा’ को उस युग में स्वीकार्यता मिलना है। आज यही स्त्री प्रभुता व प्रबलता के समानांतर डटकर खड़ी हो रही है।

‘महिला फाइटर’ के रूप में ताकत का लोहा मनवा रही है। हाल ही में एक फिल्म रिलीज हुई है- तेजस। इस फिल्म में एक संवाद है : पाकिस्तान से अपने जवानों को छुड़ाकर लाने के लिए दो लड़कियां चुनी जाती हैं, घबराई हुई दोनों महिला जवान आफिया और तेजस आपस में बात करती हैं। आफिया, तेजस से यही कहती है कि यदि मिशन पर कुछ हो गया तो लोग कहेंगे कि इस मिशन के लिए महिला जवानों की जगह पुरुष जवानों को चुना होता, तब ऐसा नहीं होता। इस पर तेजस उसका आत्मविश्वास जगाते हुए कहती है, ऐसा कुछ नहीं होगा। हम ऐसी मिसाल पेश करेंगे कि अगली बार सब गर्व से कहेंगे कि अच्छा किया, इसके लिए महिला जवानों को चुना। उनकी यही दृढ़ता उन्हें मिशन पर ले जाती है। वह न केवल आतंकवादी को मारने और अपने जवानों को सुरक्षित बचाकर लाने में कामयाब होती हैं, बल्कि उनका यह पुरुषार्थ प्रभुता की पहचान भी बनता है।

वस्तुत: कोई भी परिपाटी चुटकियों में या चुटकी बजाकर छूमंतर नहीं हो सकती। छोटे-छोटे कदम ही भविष्य में इतिहास रचने के परिचायक बनते हैं। आज के परिवेश में केंद्र सरकार ने घर-घर में पड़ी मानसिक बेड़ियों को धीरे-धीरे अपनी नारीत्व योजनाओं के माध्यम से तोड़कर सशक्त और समृद्धि की मिसाल के रूप में खड़ा कर दिया है। गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार महिलाओं की त्रि-सेवा टुकड़ी भी कर्तव्य पथ पर मार्च करती दिखी। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के दस्ते में महिलाकर्मी भी शामिल रहीं। इतना ही नहीं, अग्निवीर योजना में 48 अग्निवीरों ने शौर्य का प्रदर्शन किया, जिसका आरंभ अभी दो वर्ष पूर्व ही किया गया है। वहीं, फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर अतिथि के तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ शामिल रहीं स्क्वाड्रन लीडर सुमिता यादव ने भी इस परेड में हिस्सा लिया। स्क्वाड्रन लीडर रश्मि ठाकुर ने गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय वायुसेना की मार्चिंग टुकड़ी का नेतृत्व किया। यह सब देश के सशक्त होने, गौरवान्वित होने का परिचायक नहीं तो क्या है?

यूसीसी के अधिकार : यह सर्वविदित सत्य है कि जब भी महिलाएं नेतृत्व की भूमिका में होती हैं तो सामाजिक मुद्दों पर गंभीरता से विचार करती हैं। उनके दृष्टिकोण की व्यापकता, रचनात्मकता और समस्या समाधान की क्षमता नई धार और नई दिशा देती है। हम आज प्रभु श्रीराम की मर्यादाओं को आत्मसात करने को पीढ़ी में जागृति लाने के प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह भी सर्वविदित है कि प्रभु श्रीराम भी यदि मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने हैं तो मां सीता के साथ होने से ही बने, उनकी वह ‘मर्यादा’ सीता ही हैं। जब समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी में महिलाओं को तलाक के लिए सभी धर्मों का एक कानून, गोद लेने के लिए सभी धर्मों का एक कानून, संपत्ति बंटवारे में लड़की का समान अधिकार भी सभी पंथों में समान, सभी पंथों में विवाह की आयु लड़की के लिए 18 वर्ष और एक पति पत्नी का नियम, बहुपत्नी प्रथा का अंत जैसी शक्तियां प्राप्त होंगी तो उस समाज की परिकल्पना आज की कुरीतियों को इतिहास में विसंगतियों के रूप में ही याद रखेगी।

समान नागरिक संहिता के तहत नारी को दिव्य शक्ति के रूप में दिए गए ये अधिकार/ हथियार उसी भांति अनुभूति करा रहे हैं जिस प्रकार दुर्गा सप्तशती में देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा दुर्गा को शक्तिशाली शतरूपा का वरदान देते हैं और उन्हें अस्त्र-शस्त्र शक्तियों से प्रबल बनाते हैं। उसी भांति ही नारी की प्रभुता को बढ़ाने वाले ये अधिकार उसे उस पड़ाव पर लाकर खड़ा कर सकेंगे, जहां घर से समाज तक विभिन्न बुराइयों और विसंगतियों व अपराधों से वह मौन रहकर जूझती रही है। और यह अधिकार सभी पंथों की बेटियों को एक ही समान देखता है। यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है। लेकिन विपक्ष से नवाजे गए राजनीतिक दल कुछ करने के लिए विरोध करना है, के रूप में इस पर आपत्ति जता रहे हैं, धार्मिक खतरों का हवाला देकर संवेदनशील बना रहे हैं। ऐसा विरोध जताने वाले निश्चित ही यह भूले बैठे हैं कि केंद्र की इसी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति दिलाई।

और मुस्लिम महिला आबादी ने इसकी खुलकर सराहना ही नहीं की, इसका दम पिछले लोकसभा चुनाव के मतदान में भी सभी ने देखा था। बीते दिनों जब यूसीसी लाने की शुरुआत हुई थी तो अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने इसे एक प्रकार का झांसा बताया था। अमर्त्य सेन की पुस्तक ‘द कंट्री आफ फर्स्ट बायज’ में बताते हैं कि स्त्रियों को परिवारों में बराबरी का अधिकार न मिलना, बच्चियों के कुपोषण, अशिक्षा, शोषण और आर्थिक पिछड़ेपन का बड़ा कारण बनता है। बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियां भी संपत्ति के बंटवारे में भेदभाव से जुड़ी हैं। आर्थिकी तक को इससे कितने नुकसान पहुंचते हैं, इसका भी हवाला दिया है। अब इन विरोध करने वालों को या आस्था या धार्मिकता की दूरबीन से देखने वालों को समझना होगा कि जिन विडंबनाओं पर पुस्तकों में चिंतन किया जा रहा है आज समानता की इस पहल से ये सब परेशानियां ही तो खत्म करने की पहल की जा रही है। ऐसे में विरोध करने वालों को दूरदृष्टि से समान नागरिक संहिता के परिणाम देखने की आवश्यकता है जिससे संपन्नता और समृद्धि के द्वार खुलते हैं। देश की आर्थिकी को नए आयाम तक ले जाने के सुखद संकेत दिखते हैं।

गांव से शहर तक बदलाव की बयार : हम इतिहास उठाकर देखेंगे तो उसकी यात्रा में हम महसूस करेंगे कि हर देश का एक कालखंड आता है, वह दौर आता है जब वह देश तेजी से तरक्की करता है। पूरा विश्व उसकी शक्ति को नमन करता है। देश की नारी शक्ति भी उस कालखंड का वही अध्याय बन रही है। बन रही है से अधिक उचित यहां केंद्र की वर्तमान सरकार द्वारा उस तरह से गढ़ी जा रही है, कहना होगा। एक दशक में नारी के सशक्त होने की जड़ों में जाएंगे तो हमें एक बार के लिए पुस्तक के पिछले उन पन्नों को भी पलटना होगा, जब स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घर-घर शौचालय के माध्यम से सीधे महिलाओं की एक बड़ी समस्या को, उनकी तकलीफ को उठाया था और विपक्ष ने इसकी खिल्ली उड़ाई थी। याद है न, एक वह स्वतंत्रता दिवस? और उस पहल ने आज गांवों की ऐसी तस्वीर बदली कि आज गांव-गांव की नारी का नारा ही बदल गया। बदलाव की नींव, सशक्त बनाने की ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति होती है, तभी गांव-गांव तक प्रधानमंत्री आवास जैसी योजनाएं हर किसी को छत का अधिकार देती हैं। निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग तक हर किसी को छत मिलना सीधे महिला वर्ग को अपने घर की चाभी हाथ में थमाकर उसके आत्मविश्वास को, गौरव को बढ़ाना बदलाव नहीं तो क्या है।

अब तो इस बदलाव की सीढ़ियों को और आगे बढ़ाने के लिए इस बार यानी वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में लक्ष्य और बड़े कर दिए गए हैं। झुग्गी-झोपड़ी, चाल और अनधिकृत कालोनियों में रहने वालों को सभी को अपना मकान मिलेगा। इसका एक पड़ाव पूरा करने के बाद इस बार के बजट में इसके लक्ष्य को तीन करोड़ और बढ़ा दिया गया। घर, मकान छत की चिंता सब करते हैं, लेकिन महिलाओं से घर का जुड़ाव किस रूप में होता है, घर की चाभी लक्ष्मीरूपेण कही व माने जाने वाली नारी के ही हाथों में होती है, यह तो हमारी संस्कृति में सर्वविदित है। अंतरिम बजट की चौथी जाति नारी इसलिए भी है, क्योंकि उसे लखपति दीदी के रूप में तीन करोड़ महिलाओं को स्वावलंबी भी बनाया गया। अब इसका लक्ष्य भी एक करोड़ और बढ़ा दिया गया। यहां आत्मनिर्भर के रूप में बड़ी संख्या में वे महिला उद्यमी भी हैं जो मुद्रा योजना से लोन लेकर अपने हुनर से हुंकार भर रही हैं। यहां ये सब सुफल योजनाएं ही तो इस तरक्की के नए आयाम गढ़ने का रास्ता बन रही हैं।

मतदान में होगी निर्णायक भूमिका

अब बात अधिकारों की हुई तो मतदान के अधिकार में ये शक्ति कैसे पीछे छूट सकती है। बीते एक दशक में मतदान के बदलते ग्राफ इसकी गवाही भी दे रहे हैं। महिलाओं के लिए निर्णायक राजनीति करने वाले और सत्ता की चाह रखने वाले भी इसे समझ चुके हैं। इसलिए अब दिखावटी योजनाओं का दौर बदला है। महिलाओं के नाम पर केवल घोषणाएं नहीं हो रही हैं, उन्हें धरातल पर उतारा भी जा रहा है या नहीं इसकी बानगी ही मतदान करता है। मतदान को लेकर पूर्व में भी जागरूकता अभियान चलाए जाते थे, अब भी उस दिशा में काम हुआ, लेकिन अब मत का अधिकार और योजनाओं का लाभ घर तक पहुंचने वाली महिलाएं समझ पा रही हैं, यही कारण है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में मतदान करने के लिए पुरुषों से अधिक महिला मतदाताएं बढ़ी हैं।

लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव यानी वर्ष 2019 की तुलना में लगभग सात करोड़ अधिक मतदाता हिस्सा लेंगे। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक बढ़ी है। पिछले रिकार्ड को देखें तो कई चुनावों में महिला मतदाताओं का वोट प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है। इनमें लगभग तीन करोड़ पुरुष तो चार करोड़ महिला मतदाता हैं। हाल ही में आई अंतिम मतदाता सूची में इस बार 2.63 करोड़ नए युवा मतदाताओं को भी जोड़ा गया है। इनमें भी महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से करीब 15 प्रतिशत अधिक है, तो अब बताइए कि यह बदलाव नहीं तो क्या है?

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