भारत के अनमोल रतन और उद्यमिता के संत, पढ़ें कैसा था पद्मविभूषण रतन टाटा का जीवन
पद्मविभूषण रतन टाटा भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक थे। 9 अक्टूबर की रात को उनका स्वर्गवास हो गया। इनका जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं है। अक्सर अपने संबोधन के जरिए युवाओं का मनोबल बढ़ाने और बेजुबान जानवरों से असीम प्यार करने वाले Padma Vibhusan Ratan Tata के जीवन से जुड़ी कुछ बातें ऐसी हैं जो दर्शाती हैं कि क्यों वो लोगों के चहीते थे।
जागरण न्यूज, नई दिल्ली। जीवन और व्यवसाय में हर स्तर पर मानवीयता और नैतिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता एक पंक्ति में परिचय है रतन नवल टाटा का। वे भारत के लिए जिए और अपने जीवन दर्शन से बन गए इसके अनमोल रतन, डा. चंदन शर्मा का स्मृति आलेख…
जीवन में आगे बढ़ने के लिए उतार-चढ़ाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ईसीजी में भी एक सीधी रेखा का मतलब हैकि हम जीवित नहीं हैं। रतन टाटा अपने संबोधन में अक्सर यह वाक्य कहा करते थे। यह दर्शन उनके जीवन में
ताउम्र दिखा भी। उन्होंने एक ट्रेनी से टाटा संस के चेयरमैन तक का सफर तय किया। सफलता, असफलता सेपरे उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण में लगा दिया। व्यापार करने वालों के लिए आम धारणा है कि
धंधा करने वाला व्यक्ति सबसे पहले अपना फायदा देखता है और उसके लिए कुछ भी कर सकता है।रतन नवल टाटा ठीक इसके विपरीत सोचते थे। उन्होंने अपने जीवन और व्यवसाय में हर स्तर पर मानवीयता को
सर्वोच्च प्राथमिकता दी। यही वजह है कि बुधवार (नौ अक्टूबर) रात उनके निधन के बाद से इंटरनेट मीडिया केतमाम प्लेटफार्म पर भारत के बेशकीमती रतन को श्रद्धासुमन अर्पित करने की होड़ लग गई। क्या आम औरक्या खास, हर कोई दुखी है। हाल के वर्षों में ऐसा आदर और सम्मान कम ही लोगों को मिला है।यह भी पढ़ें: यहां पढ़ें Padma Vibhushan Ratan Tata की 5 सबसे महंगी चीजों की लिस्ट
टाटा समूह के कर्मचारी तो उन्हें भगवान ही मानते थे। चेयरमैन होने के बाद जब भी वह जमशेदपुर आते, अपनेसाथ काम करने वाले कर्मियों से मिलने पहुंच जाते थे। जूनियर कर्मियों के नाम भी उनको मुंहजुबानी याद रहतेथे। सबके अपने किस्से हैं। सिंहभूम चेंबर आफ कामर्स के पूर्व महासचिव भरत वसानी कहते हैं- तीन बार उनसेमुलाकात का मौका मिला। उनकी सरलता व विनम्रता बेमिसाल थी। रतन टाटा पहली बार जमशेदपुर 1962 में
कालेज की छुट्टी में आए थे, तब उन्होंने कंपनी ज्वाइन भी नहीं की थी। वहीं आखिरी बार तीन मार्च, 2021 को।जेआरडी टाटा की जयंती पर संबोधन के दौरान वे भावुक हो गए थे। कहा था, इस बार तो आ गया, अगली बारकब आऊंगा, पता नहीं। इसके बाद भी इंटरनेट मीडिया पर उनकी पोस्ट से जमशेदपुर का लगाव दिखता रहताथा। इस गुरुवार को जमशेदपुर शहर में मातमी सन्नाटा रहा, हर कोई अपने भगवान को याद कर लेना चाहता
था।वसानी याद कर कहते हैं- 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में टाटा फाइनेंस की हालत बहुत खराब थी। मेरेपिता ने उनकी एक जमा योजना में 20,000 रुपये का निवेश किया था। उस समय हमारे लिए यह रकम मायनेरखती थी, लेकिन रतन टाटा ने निर्णय लिया कि कंपनी के समापन से पहले सभी जमाकर्ताओं को भुगतान करदिया जाएगा। 2008 की बड़ी मंदी के दौरान अन्य कंपनियां अपने वेंडर्स के प्रति प्रतिबद्धताओं का अनादर कर
रही थीं। वहीं एक वेंडर होने के नाते मैंने व्यक्तिगत रूप से रतन टाटा के फैसले का प्रभाव देखा। टाटा स्टील नेसभी प्रतिबद्धताओं का सम्मान किया था। कोरोना काल में पूरे देश ने देखा कि टाटा समूह ने अपना खजानाकैसे मानवता के लिए खोल दिया। रतन टाटा नहीं रहे, किंतु उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को राह दिखातारहेगा!