Sumitranandan Pant: कैसे गोसाईं दत्त बने सुमित्रानंदन पंत, जानें उनके जीवन से जुड़ी ऐसी ही कई रोचक बातें
हिंदी साहित्य के प्रमुख छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को हुआ था। अपनी कालजयी कविता संग्रहों से अमर हो जाने वाले Sumitranandan Pant को साहित्य जगत से जुड़े कई पुरस्कार मिले हैं। इस आर्टिकल में हम उनके जीवन से जुड़ी बेहद रोचक बातों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे। आइए जानें कैसा था ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ सुमित्रानंदन पंत का जीवन।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Sumitranandan Pant Birth Anniversary: हिंदी साहित्य की बात करें, तो इसके कुछ अमर लेखकों में एक नाम सुमित्रानंदन पंत का भी लिया जाएगा। छायावाद शैली के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन भी उनकी रचनाओं की तरह ही प्रेरणादायक रहा है। कम उम्र से ही कविताओं की ओर रुझान और पहाड़ों के प्रति उनका अटूट प्रेम उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। आइए जानते हैं ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ सुमित्रानंदन पंत के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
क्यों सुमित्रानंदन पंत ने बदला था अपना नाम?
छायावाद कविताओं में अपनी कई कालजयी रचनाओं के लिए विख्यात सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अलमोड़ा के कौसानी में हुआ था। छायावाद के जिस प्रमुख स्तंभ को आप आज सुमित्रानंदन पंत के नाम से जानते हैं, उनका नाम बचपन में कुछ और था। बाल्यावस्था में इन्हें 'गोसाईं दत्त' के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन इससे उन्हें गोसाईं तुलसीदास का स्मरण होता था, जिनका जन्म काफी अभावों में बीता था। वे नहीं चाहते थे कि उनके साथ भी ऐसा कुछ हो। इसलिए उन्होंने आगे चलकर अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।
जन्म के कुछ ही घंटों के बाद अपनी माता खो देने के कारण, इनका लालन-पालन इनकी दादी ने ही किया। उन्हें सजने-संवरने का खूब शौक था। इसलिए वे बचपन में भी तरह-तरह के कोट, टोपी, टाई आदि पहना करते थे। सजने-संवरने के प्रति उनके प्रेम को आप उनकी कई तस्वीरों में देख सकते हैं। एक साक्षात्कार में भी वे इस बारे में बात कर चुके हैं कि अगर पत्नी होती, तो उसे खूब संवारता, लेकिन पत्नी है नहीं। इसलिए खुद को संवारता रहता हूं।
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क्यों 'प्रकृति के सुकुमार कवि' कहलाए?
बचपन से ही सुमित्रानंदन पंत का रुझान कविताओं की ओर खूब था। जब यह चौथी कक्षा में थे, तभी से इन्होंने कविताएं लिखनी शुरू की और ऐसे मिला हिंदी साहित्य को उसका एक प्रमुख कवि। छायावाद शैली में लिखने वाले सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि, उन्हें देखन और उनकी कविताओं को पढ़ने के बाद आप भी कहेंगे कि यह नाम इन्हीं के लिए बना है।
क्यों नहीं किया विवाह?
वे ताउम्र अविवाहित रहें। जिसका कारण भी वे एक साक्षात्कार में यह बता चुके हैं कि पहाड़ों पर रहते हुए, आपका स्त्री की ओर आकर्षित होना काफी मुश्किल है। हालांकि, उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, लेकिन उनकी कविताओं में ऐसा सौंदर्य और प्रेमबोध आपको देखने को मिलेगा कि आप इनकी रचनाओं के कायल हो जाएंगे।
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उनकी प्रमुख रचनाएं
‘मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे’ जैसी इनकी कई रचनाओं में प्रकृति और मानवीय भावनाओं का अनोखा सौंदर्यबोध देखने को मिलता है। इन्हें नदियों और पहाड़ों से अत्यधिक प्रेम था। प्रकृति के प्रति अपने इसी प्रेम के कारण, उन्होंने अपनी कई कविताओं में ऐसा मार्मिक चित्रण किया है कि आप उन्हें पढ़कर भाव-विभोर हो जाएंगे।
इनकी रचनाओं को पढ़कर ही आप समझ पाएंगे कि क्यों इन्हें छायावाद का प्रमुख सतंभ माना जाता है। इनकी कविता ‘याद’ की कुछ पंक्तिया याद आती हैं, जिसमें वे कहते हैं-
बिदा हो गई सांझ, विनत मुख पर झीना आंचल धर,
मेरे एकाकी आंगन में मौन मधुर स्मृतियां भर!
वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर,
नव असाढ़ के मेघों से घिर रहा बराबर अंबर!
ऐसी ही इनकी रचनाएं हैं, जो मानवीय भावनाओं और प्रकृति के सौंदर्य की उधेर-बुन का एक अनोखा संगम हैं। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में वीणा, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, उत्तरा, युगपथ, चिदंबरा, कला व बूढ़ा चांद, गीतहंस, युगांत जैसी कई रचनाएं शामिल हैं। इनमें से कुछ रचनाएं, जैसे पल्लव, चिदंबरा और कला व बूढ़ा चांद सुमित्रानंदन पंत की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं मानी जाती हैं।
कई पुरस्कार से नवाजा गया
इन रचनाओं के लिए इन्हें कई पुरस्कार भी मिले। 'कला व बूढ़ा चांद' काव्य संग्रह के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, 'चिदंबरा' के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।सुमित्रानंदन पंत ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जाने वाले पहले हिंदी साहित्यकार थे, जिनमें पद्म भूषण पुरस्कार भी शामिल है। इनके अलावा भी उन्हें कई तमाम पुरस्कार मिले।
समुत्रिानंदन पंत की रचनावलियों को अगर आप पढ़ेंगे, तो आप पाएंगे कि वे सिर्फ प्रकृति से प्रेरित हो कर रचनाएं नहीं लिखते थे, बल्कि उनकी कई रचनाएं मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा और कुछ अध्यात्मिकता से भी प्रभावित हैं। अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की दुनिया और लोगों के दिल में सदा-सदा के लिए अमर होने वाले सुमित्रानंदन पंत ने 28 दिसंबर 1977 में दुनिया को अलविदा कहा।
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