Koh-i-noor: आखिर क्या है कोहिनूर से जुड़ी श्राप की कहानी और इसका दिलचस्प इतिहास!
कोहिनूर हीरा अपने आकार और खूबसूरती के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। जब से भारत में इसकी खोज हुई तब से यह एक शासक से दूसरे के पास पहुंचता रहा। फिर चाहे फारसी हों मुगल अफगानिस्तान या फिर पंजाब। आखिर में यह ब्रिटेन के पास आया और आज तक वहीं है। कोहिनूर भले ही दुनियाभर में मशहूर जरूर है लेकिन इसके साथ श्राप की कहानी भी जुड़ी है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कोहिनूर हीरा दुनियाभर में अपने बड़े आकार और कट के लिए मशहूर है। ऐसा कहा जाता है कि मूल रूप से यह लगभग 793 कैरेट का था और अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है। कोहिनूर के बड़े आकार की वजह से इसे एक समय में दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था। कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के शाही ताज का हिस्सा है, जो मौजूदा समय में किंग चार्ल्स तृतीय और महारानी कॉन्सोर्ट कैमिला की विरासत का हिस्सा है।
पिछली कुछ शताब्दियों में कोहिनूर हीरा एक शासक से दूसरे शासक के पास पहुंचा है। दक्षिण भारत का यह हीरा पहले मुगल शासकों के पास पहुंचा, फिर अफगानिस्तान से पंजाब और अब ब्रिटेन के शाही परिवार के पास है।फ़ारसी भाषा में कोहिनूर का मतलब होता है रोशनी का पहाड़ (Mountain of light)। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में मशहूर यह हीरा सिर्फ महिलाओं को ही रास आता है, लेकिन अगर किसी पुरुष के पास ये चला जाता है तो उसे कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और किस्मत उससे रूठ जाती है। हाल ही में शाही पैलेस की ओर से बताया गया कि किंग चार्ल्स के एक तरह के कैंसर से पीड़ित होने का पता चला है। जिसके बाद से कोहिनूर से जुड़ा श्राप एक बार फिर चर्चा में आ गया है। तो आइए जानते हैं कोहिनूर से जुड़े बैड लक के बारे में।
कोहिनूर का पहला मालिक कौन था?
ऐसा कहा जाता है कि कोहिनूर न तो कभी बेचा गया और न ही खरीदा। इसे या तो तोहफे में दिया गया या फिर युद्ध में जीता गया। बीते 800 सालों से कोहिनूर एक राजा से दूसरे राजा के पास घूमता रहता है। जब से इसकी खोज हुई है, तब से इसकी कहानी रोमांच से भरी हुई है।ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, कोहिनूर गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश में है और दुनिया की सबसे प्राचीन खानों में से एक है। इसके बाद यह खिलजी शासकों के पास पहुंच गया, जिनसे मुगलों ने इसे छीन लिया। फिर ईरानी शासक नादिर शाह ने दिल्ली को लूटा और मुगलों से तख्त-ए-ताऊस के साथ कोहिनूर भी छीनकर भारत से बाहर ले गया। फिर कई सालों तक कोहिनूर भारत के बाहर ही रहा। जिसके बाद 1813 में सिख महाराजा रणजीत सिंह ने अफगान दुर्रानी राजवंश को हराया और इसे फिर भारत वापस ले आए। लेकिन इसके बाद भी कोहिनूर ज्यादा समय भारत में नहीं रह सका। 1839 में जैसे ही अंग्रेजों को राजा रणजीत सिंह के निधन की खबर मिली, उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर कोहिनूर को इंग्लैंड लाने पर जोर डालना शुरू कर दिया। 1849 में अंग्रेजों ने रणजीत सिंह की पत्नी रानी जिंदन को जेल में डाल दिया और उनके 11 साल के बेटे से जबरदस्ती लाहौर की संधि पर हस्ताक्षर करवाए। यानी आखिर में कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लगा और आज तक उनके ताज की शान बढ़ा रहा है।