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क्या सच में ‘सोना तपकर बन जाता है कुंदन’? जानें कितनी सच है यह मिसाल

धातु के रूप में स्वर्ण की कई विशेषताएं हैं। जब यह आग में तपाया जाता है तो इसकी कीमत और नाम दोनों ही बदल जाते हैं। तभी तो ‘सोना तपकर कुंदन’ की मिसाल दी जाती है। इस कला की शुरुआत 16वीं शताब्दी में राजस्थान और गुजरात के राजपूत दरबारों में हुई थी। आइए पढ़ते हैं दक्षिण एशिया में कुंदन के आभूषण इतिहास संरक्षण और बनावट पर आलेख

By Jagran News Edited By: Harshita Saxena Updated: Mon, 28 Oct 2024 05:31 PM (IST)
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इसलिए आग में तपता है सोना और बदल जाता है इसका नाम
नई दिल्ली, श्रेय मौर्य। कुंदन रत्न-जड़ाऊ तकनीक एक अनोखी दक्षिण एशियाई आभूषण परंपरा है, जिसमें हार, झुमके जैसे आभूषणों एवं चम्मच, दर्पण जैसी उपयोगी वस्तुओं को सजाने के लिए बारीक पीटी हुई पन्नी के रूप में (जिसे कुंदन कहते हैं) शुद्ध 24 कैरेट सोने का उपयोग किया जाता है। इस कला की शुरुआत 16वीं शताब्दी में राजस्थान और गुजरात के राजपूत दरबारों में हुई थी, लेकिन इसको मुगलों और बाद में हैदराबाद के निजामों के बीच बहुत संरक्षण मिला। आज अपने जटिल डिजाइनों में शताब्दियों की राजसी विरासत को समेटे हुए कुंदन के आभूषण निजी विरासत की बेशकीमती वस्तु बन गए हैं, जिन्हें अक्सर दुल्हन के जोड़े में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंप दिया जाता है।

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हल्के हाथों से भारी काम

कुंदन तकनीक में आभूषण की आधार सेटिंग या घाट, पहले 22-कैरेट सोने में बनाई जाती है, जिसमें प्रत्येक रत्न के लिए गुहाएं आरक्षित होती हैं। ये गुहाएं सुरमई यानी लाख और सुरमा के मिश्रण से भरी होती हैं, जिसे गर्म कोयले की मदद से पिघलाया जाता है। रत्न का प्रत्येक टुकड़ा-आमतौर पर पोल्की (बिना कटे, बिना पालिश किए हीरे), पन्ना, माणिक और नीलम को नाजुक ढंग से लाख पर रखा जाता है और धीरे से दबाया जाता है।इसके साथ ही, गर्म कोयले के इस्तेमाल से लाख को फिर से पिघलाया जाता है, जिससे इसे विस्तार करने और रत्न को आराम से समायोजित करने में सहायता मिलती है।

रत्नों के आसपास अतिरिक्त सुरमई को एक बारीक छेनी का उपयोग करके सावधानीपूर्वक हटा दिया जाता है, जिससे रत्न और सेटिंग के बीच एक महीन अंतर बन जाता है। इसके बाद मीनाकारी का काम होता है, जहां सोने की उत्कीर्ण सतह को विभिन्न रंगीन मीनाओं से भरा जाता है। अंत में, कुंदन के टुकड़ों को किनारों पर जोड़ा जाता है और छेनी का उपयोग करके मोड़ा जाता है, जिससे एक कील जैसी आकृति बन जाती है जो रत्न को मजबूती से सुरक्षित रखती है। कुंदन की परतें तब तक जोड़ी जाती हैं जब तक कि रत्न और सेटिंग के बीच का अंतर सोने से भरकर सील न हो जाए।

सबकी अपनी जिम्मेदारी

परंपरागत रूप से, विशिष्ट शिल्पकारों को आभूषण बनाने की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। उदाहरण के लिए, डिजाइन बनाने के लिए जिम्मेदार चितेरिया थे, घरिया उत्कीर्णन में शामिल थे और सुनार अपनी सोने की उत्कृष्ट फ्रेमिंग के लिए जाने जाते थे। हालांकि, व्यावसायीकरण के आगमन और बाजार की बढ़ती मांग के साथ कुछ समझौते किए गए। अब ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां एक ही कारीगर तीनों भूमिकाएं निभाता है।

समझौतों के बावजूद, यह परिष्कृत तकनीक अभी भी कारीगर को नाजुक आधारों की एक शृंखला-जिसमें तामचीनी, जेड और राक क्रिस्टल शामिल हैं-को लगभग किसी भी वांछित पैटर्न में विभिन्न रत्नों के साथ कुशलतापूर्वक संलग्न करने की अनुमति देती है। रत्नों के नरम-गोल किनारे चमकदार सुनहरे फ्रेम के साथ जुड़ जाते हैं, जो उन्हें ढंकता है और संभालता है, जिससे वह पहनने वाले की त्वचा पर चमकते हैं!

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