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Khudiram Bose: सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले भारतीय क्रांतिकारी, बेबाक शब्दों से ब्रिटिश जज के उड़ा दिए थे होश

आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में ही आजादी के आंदोलन में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। जी हां हम बात कर रहे हैं क्रांतिकारी खुदीराम बोस (Khudiram Bose) की जिन्हें महज 18 साल 8 महीने और 8 दिन की उम्र में 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई थी।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Fri, 09 Aug 2024 03:31 PM (IST)
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Khudiram Bose: 18 साल उम्र में शहीद होने वाले भारतीय क्रांतिकारी (Image Source: Freepik)

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। खुदीराम बोस (Khudiram Bose) को आजादी की लड़ाई में फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी (Freedom Fighter) माना जाता है। उनका जन्म बंगाल में मिदनापुर के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। महज 9वीं कक्षा की पढ़ाई के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था। इसके बाद वे रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् के पर्चे बांटने में बड़ी भूमिका निभाई। माता-पिता की मृत्यु के बाद बड़ी बहन ने ही खुदीराम का पालन-पोषण किया। बता दें, 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस ने सत्‍येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की थी।

जज की हत्या करने का बनाया प्लान

18 अप्रैल 1908 को खुदीराम और उनका एक साथी मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए मुजफ्फरपुर निकल पड़े। दोनों ने मिलकर तय किया कि किंग्सफोर्ड जब बग्घी से वापस आएगा, तभी बम फेंक देंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही, यानी जब बग्घी किंग्सफोर्ड के घर पहुंची तो दोनों ने बम फेंक दिया, लेकिन जज की जान बच गई। जिस बग्घी पर खुदीराम ने बम फेंका उसमें दो महिलाएं सवार थीं, जिनमें से एक की इस हमले में मौत हो गई। इसी घटना के चलते खुदीराम बोस को 1 मई 1908 को गिरफ्तार कर लिया गया था। बता दें, हत्या के इस मुकदमे के बाद अदालत ने खुदीराम को फांसी की सजा सुनाई।

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जज से बोले- आपको भी बम बनाना सिखा दूं?

जज कॉर्नडॉफ की अदालत सुनवाई के दौरान जब खुदीराम से सवाल किया गया कि क्‍या तुम फांसी की सजा का मतलब जानते हो? इस पर उन्होंने कहा कि इस सजा और मुझे बचाने के लिए मेरे वकील साहब की दलील दोनों का मतलब अच्छी तरह से जानता हूं। मेरे वकील साहब ने कहा है कि मैं अभी कम उम्र का हूं। इस उम्र में बम नहीं बना सकता। जज साहब मेरी आपसे गुजारिश है कि आप खुद मेरे साथ चलें। मैं आपको भी बम बनाना सिखा दूंगा। अदालत ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाने के साथ ऊपर की अदालत में अपील का वक्‍त भी दिया। हालांकि, ऊपरी अदालतों ने मुजफ्फरपुर की अदालत के फैसले पर ही मुहर लगाई। ऐसे में, 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई।

कैसे पड़ा खुदीराम बोस का नाम?

खुदीराम बोस के जन्म से पहले उनके दो भाइयों की बीमारी की चलते मृत्यु हो गई थी। ऐसे में उनके डरे हुए माता-पिता ने अपने तीसरे बेटे की जान बचाने के लिए एक टोटका अपनाया, जिसमें बड़ी बहन ने चावल के बदले खुदीराम को खरीद लिया। बंगाल में चावल को खुदी कहा जाता था, यही वजह रही कि उनका नाम खुदीराम पड़ गया। देखा जाए तो धोती पहनने वाले खुदीराम कम उम्र में ही देश में अपनी छाप छोड़ गए। उनकी शहादत के बाद बड़े स्तर पर धोती पहनने का चलन चल पड़ा। बता दें कि बंगाल के कई बुनकर आज भी खुदीराम लिखी धोतियां बनाया तैयार करते है।

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