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Odissi Dance: ओडिशा के मंदिरों में हुई थी ओडिसी नृत्य की शुरुआत, जानें इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बात

भारतीय शास्त्रीय नृत्य में ओडिसी नृत्य का खास स्थान है। इसकी शुरुआत ओडिशा में मंदिरों में हुई थी। भगवान कृष्ण के जीवन और अन्य पौराणिक कहानियों को इस नृत्य के जरिए दृशाया जाता है। इस नृत्य से जुड़ी ऐसी ही कुछ बातों के बारे में इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले हैं। आइए जानते हैं क्या है ओडिसी नृत्य की खासियत।

By Swati Sharma Edited By: Swati Sharma Updated: Sun, 14 Apr 2024 03:02 PM (IST)
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ओडिसी नृत्य में अभिनय का खास स्थान होता है
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। नृत्य या डांस (Dance) कला का एक ऐसा रूप है, जिसके जरिए अपनी भावनाओं को प्रकट करना काफी खूबसूरत, लेकिन बेहद मुश्किल काम है। यही वजह है कि इस कला में निपुण होने में सालों लग जाते हैं। भारत में नृत्य कला का उद्गम प्राचीन काल में हुआ था। अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में नृत्य को अलग-अलग ढंग और वेशभूषा की मदद से प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य के इन रूपों को शास्त्रीय नृत्य (Folk Dance) कहा जाता है। शास्त्रीय नृत्य का एक अहम प्रकार है ओडिसी नृत्य (Odissi)। आज इस आर्टिकल में हम आपको नृत्य कला की इस शैली के बारे में बताने वाले हैं। आइए जानते हैं, ओडिसी नृत्य से जुड़ी कुछ अहम बातें।

कैसे हुई शुरुआत?

जैसा कि इसके नाम से समझा सकता है, ओडिसी नृत्य कला की शुरुआत, ओडिशा राज्य में मंदिरों में हुई थी। यह नृत्य कला इतनी प्राचीन है कि इसला उल्लेख छठवीं से लेकर नौवीं शताब्दी में शिलालेखों में भी पाया जाता है। इस नृत्य की शुरुआत प्राचीन समय में मंदिरों में हुई थी। तब से लेकर आजतक यह नृत्य शैली जीवित है और शास्त्रीय नृत्य की सबसे पुरानी शैलियों में से एक है।

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अभिनय की अहम भूमिका

ओडिशा के स्थानीय मंदिर के शिलालेखों में इस नृत्य शैली का वर्णन मिलता है। विश्व प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर में भी इस ओडिसी नृत्य का उल्लेख मिलता है। इस नृत्य में अभिनय की बेहद खास भूमिका होती है। इसलिए इस नृत्य में त्रिभंग पर खास ध्यान दिया जाता है। त्रिभंग एक ऐसी मुद्रा होती है, जिसमें शरीर को तीन अलग-अलग भागों में बांटा जाता है। सिर, शरीर का मध्य भाग और पैर को अलग-अलग दिशाओं में मोड़ा जाता है। इससे उत्तपन होने वाली पोजिशन को त्रिभंग कहा जाता है।

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भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाएं

इस नृत्य कला में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं को दृशाया जाता है। ओडिसी नृत्य में भी चेहरे की भाव-भंगिमा और हाथ-पैरों की मुद्रा भरत नाट्यम के समान ही होती है। इस नृत्य शैली में चेहरे के हाव-भाव और अलग-अलग एक्सप्रेशन की मदद से पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत किया जाता है। अलग-अलग दृश्य के लिए अलग-अलग भंगिमाओं का प्रयोग किया जाता है, ताकि दर्शक उस दृश्य से खुद को जोड़ पाएं।

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खास प्रकार की साड़ी पहनी जाती है

हर शास्त्रीय नृत्य की तरह, ओडिसी नृत्य के लिए भी खास प्रकार के कपड़े, गहने और शृंगार किया जाता है। महिलाओं को इस नृत्य के लिए सिल्क से बनी पारंपरिक साड़ी को एक खास अंदाज में पहनना होता है। इस साड़ी को बोमकली या संबलपुरी साड़ी के नाम से जाना जाता है।

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गहने और शृंगार पर खास ध्यान

साथ ही, चांदी के गहने पहने जाते हैं, जिसमें कमरबंध, पायल, बाजूबंद, माथापट्टी, हार आदि को शामिल किया जाता है, जिन्हें नृत्यांगनाएं सिर से पैर तक धारण करती हैं। इस नृत्य में भाव-भंगिमा को प्रस्तुत करने के लिए शृंगार पर खास ध्यान दिया जाता है। हाथ-पैरों पर आलता, बिंदी, काजल आदि की मदद से मुद्रा और हाव-भाव को निखारने में मदद मिलती है। इसलिए ऐसा किया जाता है।

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इस नृत्य के लिए पुरुषों को भी अपने परिधान का खास ख्याल रखना पड़ता है। ओडिसी नृत्य में पुरुष एक विशेष प्रकार की धोती पहनते हैं और कमर पर एक बेल्ट बांधेते हैं।

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Picture Courtesy: Instagram/odissidance