Move to Jagran APP

क्या आप जानते हैं किस देश ने बच्चों पर शारीरिक हिंसा के खिलाफ बनाया था सबसे पहले कानून

बच्चों की परवरिश के करते समय कई बातों का ख्याल रखना जरूरी होता है। एक जरूरी बात यह भी है कि उनके मन में अपने अभिभावक या टीचर के खिलाफ कोई डर न हो। लेकिन बच्चों को शारीरिक सजा देने से उन पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते है। इसलिए इसके खिलाफ कानून भी बने हैं। आइए जानें कहां यह कानून सबसे पहले लागू हुआ था।

By Swati Sharma Edited By: Swati Sharma Updated: Fri, 21 Jun 2024 02:14 PM (IST)
Hero Image
इस देश ने बनाया था बच्चों पर शारीरिक सजा के खिलाफ कानून (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बच्चों के बेहतर विकास के लिए जरूरी होता है कि उन्हें प्यार भरा माहौल मिले। उन्हें अपनी बात सामने रखने में कोई डर महसूस न हो और वे अपने माता-पिता और टीचर्स पर भरोसा कर पाएं। लेकिन वहीं, अगर बच्चों को हर बात पर डांटा जाए या उनकी पिटाई की जाए, तो उनके भीतर डर बैठ जाता है और वे ज्यादा आक्रामक स्वाभाव के भी हो जाते हैं। इसलिए बच्चों के बेहतर विकास के लिए कई देशों में उन्हें शारीरिक सजा (Corporal Punishment) देने पर मनाही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह कौन-सा सबसे पहला देश था, जिसने ऐसा कानून बनाया था। आइए जानें।

किस देश ने बनाया सबसे पहले लागू किया यह कानून?

बच्चों पर शारीरिक सजा के खिलाफ कानून सबसे पहले स्वीडन ने बनाया था। इस कानून को 1979 में बनाया गया था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जब इस कानून को बनाया गया था, उससे पहले 53 प्रतिशत लोग इस कानून के खिलाफ थे। लेकिन इस कानून को पारित करने के कुछ सालों बाद लोगों के विचार में काफी परिवर्तन हुआ और जो लोग इस कानून के खिलाफ थे, उनकी संख्या 53 प्रतिशत से घटकर महज 11 प्रतिशत बच गई थी। स्वीडन के इस कानून से अन्य कई देशों ने भी प्रेरणा ली और इस कानून को पारित किया।

parenting tips

(Picture Courtesy: Freepik)

यह भी पढ़ें: नौकरी छोड़ने का बना लिया है मन, तो ऐसे रखें बॉस के सामने अपना डिसीजन

इन देशों में भी है यह कानून

साल 2024 तक लगभग 65 से ज्यादा देशों ने भी बच्चों पर शारीरिक सजा के खिलाफ कानून बनाया। इस कानून के मुताबिक, सिर्फ स्कूलों में ही नहीं, बल्कि घरों में और केयर सेंटरों में भी इस कानून के कारण बच्चों को शारीरिक सजा नहीं दी जा सकती है। इन देशों में स्वीडन के अलावा, फिनलैंड, ऑस्ट्रिया, यूरोप के कई देश और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं।

क्यों जरूरी है यह कानून?

आपको बता दें कि इस कानून के पीछे कई वैज्ञानिक अध्ययन भी शामिल हैं। इनके मुताबिक, जिन बच्चों को मारा-पीटा जाता है या शारीरिक सजा दी जाती है, उनका स्वाभाव अधिक आक्रामक हो जाता है। वे बड़ों की बात मानना छोड़ देते हैं और जिद्दी स्वाभाव के हो जाते हैं। कई बार अपना आक्रोश दर्शाने के लिए वे असामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होने लगते हैं। इसके कारण बच्चों के कोमल मन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ सकता है कि उनके माता-पिता से उनके रिश्ते जीवनभर के लिए बिगड़ सकते हैं। इसलिए बच्चों पर शारीरिक सजा के खिलाफ कानून उनके विकास में अहम भूमिका निभा सकती है।

भारत में भी 2009 में राइट ऑफ चिल्ड्रन टु फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट के तहत बच्चों पर शारीरिक सजा देने की मनाही है। इसका उलंघन करने वाले को कानून दंड भी मिल सकता है। इसलिए बच्चों के साथ कठोरता बरतने की एक सीमा है, ताकि बच्चों को सही बात के बारे में समझाया जा सके, लेकिन उनके मन में कोई नकारात्मकता का भाव न उपजे।

यह भी पढ़ें: क्या आप भी ज्यादा समय तक नहीं कर पाते एक ही काम पर फोकस, तो इन आसान तरीकों से बढ़ाएं Concentration Power