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Lifestyle News: आर्टिफिशियल वायुमंडल से तैयार होंगे फसल के नये किस्म के पौधे, देश में पहली बार लैब हुई स्थापित

किसी भी फसल की नई किस्म तैयार करके किसानों तक पहुंचाने में कृषि विज्ञानियों को दस से पंद्रह वर्ष लग जाते हैं लेकिन अब तीन से पांच वर्ष में नई किस्में तैयार की जा सकेंगी। ऐसा संभव होगा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में स्थापित स्पीड एक्सल ब्रीडिंग लैब के जरिये। स्पीड ब्रीडिंग कम समय में नई किस्में विकसित करने की एक आधुनिक तकनीक है।

By Jagran News Edited By: Paras PandeyUpdated: Sat, 13 Jan 2024 06:30 AM (IST)
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कृत्रिम प्रकाश,हवा व पानी से तैयार होंगी किस्में

जागरण संवाददाता, लुधियाना। किसी भी फसल की नई किस्म तैयार करके किसानों तक पहुंचाने में कृषि विज्ञानियों को दस से पंद्रह वर्ष लग जाते हैं, लेकिन अब तीन से पांच वर्ष में नई किस्में तैयार की जा सकेंगी। ऐसा संभव होगा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में स्थापित स्पीड एक्सल ब्रीडिंग लैब के जरिये।

स्पीड ब्रीडिंग कम समय में नई किस्में विकसित करने की एक आधुनिक तकनीक है। विज्ञानी लैब में लाइट, स्पेक्ट्रम लाइट (सतरंगी लाइट), नमी, कार्बनडाइक्साइड के जरिये दिन व रात की विधि को मैनीपुलेट करके कृत्रिम रूप से तैयार प्रकाश, हवा, पानी से नई किस्में बनाएंगे। वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने सोमवार को इस सेंटर का उदघाटन किया। 

कंट्रोल चैंबरों में 40 हजार पौधों पर किया जा सकता है शोध

उन्होंने कहा कि स्पीड ब्रीडिंग भविष्य में कृषि उत्पादकता बढ़ाने और बढ़ती वैश्विक आबादी को खिलाने में मदद कर सकती है। देश में पहली बार किसी विश्वविद्यालय में इस तरह की लैब स्थापित की गई हैं।

करीब 541.87 वर्ग मीटर में बनाई गई इस लैब में आठ कंट्रोल चैंबरों में 40 हजार पौधों पर शोध की जा सकती है। पीएयू के वीसी डॅा.सतबीर सिंह गोसल ने नई ब्रीडिंग सुविधाओं को खेती के सफर का मील का पत्थर कहा। 

पीएयू के स्कूल आफ बायोटेक्नोलाजी की निदेशक डॅा.प्रवीण छुनेजा कहती हैं कि भारत सरकार के बायोटेक्नोलाजी विभाग की मदद से लैब को स्थापित किया गया है।

इस पर करीब पांच करोड़ रुपये की लागत आई है। यह लैब भविष्य की खेती के लिए विज्ञानियों और किसानों के लिए नए रास्ते खोलेगी। इस लैब का लाभ उन विज्ञानियों को मिलेगा, जो विभिन्न फसलों की किस्में तैयार करते हैं।

वर्तमान में ऐसे करते हैं किस्में तैयार 

डॅा.प्रवीण छुनेजा ने बताया, अभी जब हम किस्म तैयार करते हैं तो पहले छह से सात वर्ष तो डेवलपमेंट टाइम होता है। फिर अलग-अलग किस्मों से क्रास करते हैं। फिर अलग-अलग जनरेशन लेकर लाइन तैयार करते हैं और फिर टेस्टिंग करते हैं।

पहले विश्वविद्यालय स्तर, फिर छोटे किसान, फिर बढ़े किसान और फिर आखिर में राष्ट्रीय स्तर पर टेस्टिंग होती है। इस टेस्टिंग के दौरान जो भी किस्म या लाइन सबसे बेहतर होती है, आगे जाकर उसे एक किस्म के तौर पर रिलीज करते हैं। इसमें दस से 15 वर्ष का समय लग जाता है।

लैब में गेहूं को दिसंबर में दिया अक्टूबर-नवंबर वाला मौसम  

डॅा.प्रवीण छुनेजा ने कहा कि आम तौर पर गेहूं की बिजाई के बाद करीब 145 से 150 दिन में फसल तैयार हो जाती है, लेकिन इस लैब में हम 60 दिन में ही गेहूं की फसल को तैयार कर सकते हैं। इसके लिए गेहूं को 22 घंटे का दिन और दो घंटे की रात देते हैं।

इस लैब में हमने 12 दिसंबर को गेहूं लगाया था, जो अब एक हथेली के साइज से अधिक बड़ा हो चुका है। पांच दिसंबर को मटर रोपे थे। उस पर भी फूल आने शुरू हो गए हैं। गेहूं, मटर, चने की कटाई 60 से 65 दिन में हो सकेगी। फसलों को न खेत चाहिए, न हवा-पानी।