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सिर्फ हार स्वीकारना ही नहीं, इसपर विजय पाना भी है जरूरी; Olympic खिलाड़ियों से सीखें जीवन में आगे बढ़ने के गुण

पेरिस ओलंपिक (Olympic Games Paris 2024) खत्म होने के बाद कहीं खुशी है तो कहीं हार पर मंथन चल रहा है! हार मिले या जीत इतिहास गवाह है कि विजेताओं की सबसे बड़ी खासियत है लगातार अपने बेहतर प्रदर्शन की कोशिश और आखिर तक हार न मानने का हौसला। इसी मुद्दे पर आपके सामने पेश है महिला खिलाड़ियों व मनोविज्ञानी से बातचीत पर आधारित सीमा झा की खास रिपोर्ट।

By Jagran News Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sun, 18 Aug 2024 02:59 PM (IST)
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Olympic Games Paris 2024: ओलंपिक खिलाड़ियों से सीखें जीवन में आगे बढ़ने के गुण (Image Source: X)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। उस सुबह मेरी फाइट थी, लेकिन मैट पर जाते ही अगले कुछ क्षण बाद लगा जैसे अंधेरा छा गया। लगा जैसे धंस रही हूं जमीन में। मेरे कोच आए, उन्होंने समझाने की कोशिश की, लेकिन मैंने स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया। कुछ अलग अहसास था, किंतु वह क्या था, यह नहीं कह सकती। हार का दंश गहरा था। रुंधे हुए गले से कहती हैं दिल्ली निवासी जूडो खिलाड़ी तूलिका मान। भावनाओं के समंदर को शब्दों में प्रस्तुत करना आसान नहीं था उनके लिए। तूलिका इस वर्ष पेरिस ओलिंपिक में जूडो में पदक की बड़ी उम्मीद बनकर गई थीं, पर एलिमिनेशन राउंड में क्यूबा की प्रतिद्वंद्वी से हार के बाद पदक के लिए उनकी आगे की राह थम गई। वह कहती हैं कि कैसे पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया तो दुनिया जीत लेने का पहाड़-सा हौसला और ऊर्जा भर गई भीतर। उन्होंने 78 किलोग्राम वर्ग में पेरिस ओलिंपिक के लिए महाद्वीपीय कोटा हासिल किया था। तूलिका के अनुसार, वह अभी खाली महसूस कर रही हैं, पर पहले मिली हुई जीत उन्हें आश्वस्त कर रही है कि वह एक बार फिर शानदार वापसी करेंगी। विजेताओं की वास्तविक पहचान यही है, हर हार के बाद वापसी का हौसला, जिद और जुनून।

सीखो और आगे बढ़ो

इस संदर्भ में नई दिल्ली की मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रचना खन्ना सिंह कहती हैं कि खिलाड़ियों की जीवनशैली अलग होती है। वे अनुशासन के पक्के होते हैं। चाहे कैसा भी मौसम हो वे अपने नियमित अभ्यास से समझौता नहीं करते। ध्यान देने वाली बात यह है कि खानपान के साथ-साथ मानसिक सेहत सही रखना भी बहुत जरूरी होता है। हर हार पर कैसे विजय पानी है और जीत की कोई गारंटी नहीं है, खिलाड़ी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि वे विचलित नहीं होते हार के बाद। जैसा कि तुलिका कहती हैं कि मैं इस हार के बाद पहली बार नकारात्मकता के जाल में स्वयं को जकड़ा हुआ महसूस कर रही हूं। मुझे पहली बार बहुत अलग अहसास हो रहा है, लेकिन मैं किताबें पढ़कर प्रेरणा लेती हूं। इस समय मैं मेंटल हेल्थ से जुड़ी किताबें पढ़ रही हूं। चर्चित फुटबाल खिलाड़ी लियोन मैसी का जीवन मेरी प्रेरणा हैं। मैं मेसी के प्रेरक किस्सों और कथनों को अपने काफी करीब पाती हूं। इस बारे में मुक्केबाज नीतू घनघस कहती हैं कि मुझे किताबें, फिल्में नहीं, बल्कि मुक्केबाज मैरी काम का जुनून हौसला देता है। हमारे कोच सिखाते हैं कि कैसे लक्ष्य को पाने व पदक जीतने के लिए विजुलाइजेशन करते रहना है। रात को सोने से पूर्व और जागने के बाद कल्पना में भी स्वयं को जीतते हुए ही देखना है। हमें हर हाल में मस्तक ऊंचा रखना है और स्वयं को हारता हुआ नहीं, बल्कि जीतता हुआ महसूस करते रहना है। मन में हार से उपजे दंश को जगह नहीं बनाने देना है साथ ही आलोचनाओं से उपजे ईंधन की आग को सकारात्मक मोड़ देकर उसे अपनी ताकत बनाना है।

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आलोचना तो होगी ही

बीते वर्ष चीन में संपन्न एशियाई खेलों में एथलीट नीरज चोपड़ा ने जब जैवलिन को आसमान में उछाला तो पूरे देश की उम्मीदें जैसे चांद तक पहुंच गईं। वह स्वर्ण पदक लेकर आए थे और इस बार ओलंपिक में भी पदक लाए। हालांकि इस वर्ष कसक रह गई सोना न जीत सकने की। नीरज चोपड़ा के साथ दूसरे भारतीय खिलाड़ियों ने भी पदक जीते और इतिहास बनाया, पर जिनकी उम्मीदें धराशाई हुईं उनके मन में क्या चल रहा होगा? इस पर डॉ. रचना खन्ना सिंह कहती हैं कि खिलाड़ियों की सबसे विशेष बात यह होती है कि उनके भीतर कठिन परिस्थितियों से उबरने का जज्बा होता है साथ ही एक लचीलापन होता है। इसलिए वे कठिन परिस्थितियों के बीच अधिक समय तक नहीं रुकते। इस बारे में मुक्केबाज नीतू घनघस कहती हैं कि खिलाड़ी हर हाल में दोबारा उठ खड़े होने का साहस रखते हैं, क्योंकि उनके पास यही इकलौता विकल्प होता है।

नीतू घनघस कहती हैं कि हमारे आंसू जरूर बहते हैं, लेकिन हार मिलने के बाद भी हमारा मन नहीं हारता। जैसे कि तुलिका मान ने फाइट हारने के बाद तुरंत स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया और खूब रोईं। उन्होंने किसी का कोई फोन नहीं उठाया और स्वयं को मन के हवाले कर दिया। अगले दिन जब उनकी फ्लाइट थी तभी वह कमरे से बाहर आईं। हालांकि अब वह भरसक कोशिश कर रही हैं कि अपनी लड़ाई सशक्त कैसे करनी है। तुलिका कहती हैं, उस दिन हमारे कोच यशपाल सोलंकी ने मुझे बहुत समझाने का प्रयास किया, पर वह यह जानते थे कि ऐसे क्षणों में सबसे ज्यादा जरूरी होता है स्वयं का साथ। हार के बाद लोगों का काम है कहना, आलोचना करना और समीक्षा करना, जबकि हमारा काम होता है स्वयं को अगले मुकाबले के लिए अच्छी तरह से तैयार करना, उम्मीद बनाए रखना साथ ही लक्ष्य पर पकड़ ढीली न पड़ने देना।

आगे बढ़ना एकमात्र लक्ष्य

डॉ. रचना खन्ना सिंह कहती हैं कि शारीरिक रूप से फिट रहने के साथ-साथ खिलाड़ियों को मानसिक रूप से भी मजबूत बने रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मानसिक मजबूती यानी किसी भी स्थिति में स्वयं को हारा हुआ महसूस नहीं होने देना और इसके लिए वे निरंतर प्रशिक्षित होते रहते हैं। यही कारण है कि कई बार खिलाड़ी दबाव में आकर भी बेहतर प्रदर्शन कर जाते हैं। उन्हें मालूम होता है कि मेहनत करना हमारे हाथ में है। सफलता के लिए कोई एक कारक नहीं होता। इस बारे में नीतू घनघस कहती हैं कि इस बार ओलिंपिक में कई ऐसे खिलाड़ी रहे जो पदक तक पहुंच गए, लेकिन उन्हें हारना का सामना करना पड़ा। पहलवान विनेश फोगाट इसका बेहतर उदाहरण हैं। उन्होंने भावुक होकर संन्यास की भी घोषणा कर दी। परिवार वालों ने भी माना कि खिलाड़ी अक्सर ऐसा भावनाओं में आकर कर जाते हैं, पर वे उन्हें वापसी के लिए समझाएंगे। बता दें कि नीतू घनघस ने भी कई उतार चढ़ाव देखे हैं। हालांकि उन्होंने वर्ष 2022 में राष्ट्रमंडल खेलों और वर्ष 2023 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते हैं। अब उनका लक्ष्य विश्व चैंपियनशिप और वर्ष 2028 में लास एंजिलिस में होने वाले ओलंपिक पर है। नीतू कहती हैं कि कई बार जीतने के लिए मैंने कई विषमताएं, निराशा देखी है, लेकिन हमेशा आगे देखना और आगे बढ़ना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए।

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