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बच्चों को अंधेरी गलियों में धकेल रहा है सोशल मीडिया, एक्सपर्ट से जानें कैसे दिखाएं उन्हें सही राह

आस्ट्रेलिया ने इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को 16 साल से कम उम्र के यूजर्स के लिए प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। न समस्या नई है और न ही यह विचार। तेजी से बढ़ते डिजिटल फुटप्रिंट में बच्चों के नन्हे कदम कब अंधेरी गलियों (social media side effects) में पहुंच जाते हैं कोई जान नहीं पाता। इसलिए जरूरी है लगाम। जानें इंटरनेट की असुरक्षित दुनिया कैसे है बच्चों के लिए खतरनाक।

By Jagran News Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 25 Nov 2024 03:13 PM (IST)
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बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डालती है सोशल मीडिया (Picture Courtesy: Freepik)
नई दिल्ली। Social Media Side Effects: आस्ट्रेलिया सरकार द्वारा 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इंटरनेट मीडिया प्रतिबंधित करने का फैसला निश्चित रूप से महत्वपूर्ण कदम है। इसने दुनियाभर में इस मुद्दे पर चर्चा को फिर से जगा दिया है। भारत में भी यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या हमें भी इसी तरह का कदम उठाना चाहिए? आस्ट्रेलिया का फैसला निश्चित रूप से विचारणीय है, लेकिन भारत में भी स्थानीय परिस्थितियों और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक समाधान ढूंढना होगा।

प्रतिबंध आसान समाधान है, लेकिन यह दीर्घकालिक नहीं है। क्योंकि किशोरों और नवयुवाओं के बीच इंटरनेट मीडिया की बढ़ती उपस्थिति दोहरे रूप में काम करती है, जो भले ही उन्हें कई सौ किलोमीटर दूर मौजूद लोगों से जोड़ रही है मगर कहीं न कहीं ऐसे जोखिमों के संपर्क में लाती है जो उनके विकास को प्रभावित कर सकते हैं। आस्ट्रेलिया की तरह भारत में इसी तरह की नीति को लागू करने के विचार पर गहराई से मंथन की आवश्यकता है। भारत अपनी विशाल युवा जनसंख्या के साथ 16 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के लिए इंटरनेट मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के संभावित लाभों पर विचार कर रहा है।

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रील पर स्क्राल होती पीढ़ी

शोध बताते हैं कि किशोरों के अत्यधिक इंटरनेट मीडिया उपयोग और उनकी नींद में बाधा, चिंता और अवसाद की बढ़ती दरों के बीच गहरा संबंध है। वे अभी अपनी पहचान विकसित कर रहे हैं और इंटरनेट मीडिया के फालोअर्स के लाइक्स और कमेंट्स के प्रति अत्यधिक सतर्क रहते हैं, जिससे वे इंटरनेट मीडिया के नकारात्मक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो रहे हैं।

इंस्टाग्राम, फेसबुक और स्नैपचैट जैसे प्लेटफार्म की फिल्टर वाली दुनिया किशोरों में आत्म-संदेह को बढ़ा रही है, जहां किशोर लगातार अपनी तुलना इन चमकती रील्स से करते हैं और स्वयं पर सवाल उठाने लगते हैं। इसी तरह साइबरबुलिंग इंटरनेट मीडिया की एक बड़ी समस्या बन चुकी है। आनलाइन प्लेटफार्म पर होने वाले निगेटिव कमेंट और ट्रोलिंग की बारिश के विनाशकारी परिणाम हो जाते हैं, जो लोगों को अवसाद से लेकर आत्महत्या तक की तरफ धकेल देते हैं।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि जब तक हमारे किशोर भावनात्मक रूप से मजबूत व समझदार न हो जाएं, तब तक इंटरनेट मीडिया तक पहुंच को सीमित करना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

नजरअंदाज न करें जोखिम

इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म मुख्य रूप से उपयोगकर्ता का डाटा एकत्र करके लाभ कमाते हैं। यह अक्सर संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग करते हैं, जिसे किशोर ठीक से नहीं समझते, जिससे वे गोपनीयता के उल्लंघनों और संभावित शोषण के लिए उच्च जोखिम पर होते हैं। इसके अलावा कच्ची उम्र होने के बावजूद यौन सामग्री से लेकर हिंसा जैसी अनुपयुक्त सामग्री के प्रति उनका व्यापक एक्सपोजर होता है। 16 वर्ष से कम उम्र के बालकों के लिए इंटरनेट मीडिया पर प्रतिबंध उनके व्यक्तिगत डाटा के संग्रह और दुरुपयोग से उन्हें बचाएगा।

दूसरी तरफ इंटरनेट मीडिया पर पूर्ण प्रतिबंध डिजिटल साक्षरता को बाधित कर सकता है। आधुनिक समय में डिजिटल साक्षरता एक महत्वपूर्ण कौशल है। इसलिए पूर्ण प्रतिबंध लागू करने के बजाय सूक्ष्म दृष्टिकोण लागू करना होगा, जो इंटरनेट मीडिया की निगरानी और मार्गदर्शित पहुंच के बीच से गुजरता है। ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि किशोरों की डिजिटल पहुंच को कैसे सुरक्षित किया जाए, न कि इंटरनेट मीडिया कंपनियों के हितों पर।

माता-पिता स्मार्टफोन के उपयोग की सीमाएं निर्धारित करने या उनकी गतिविधि की निगरानी करने के साथ ही किशोरों को डिजिटल साक्षरता संसाधनों को समझने की अनुमति देते हुए सुरक्षित पहुंच प्रदान कर सकते है। इसी तरह स्कूलों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इसके लिए इंटरनेट मीडिया से जुड़ी साक्षरता पर नए पाठ्यक्रम लागू करते हुए इंटरनेट मीडिया के लाभ-हानियों के बारे में शिक्षित करने, व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा करने और हानिकारक सामग्री की पहचान करने के सबक सिखाने चाहिए। इसके साथ ही सरकार इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों पर सामग्री के लिए आयु-आधारित प्रतिबंध अनिवार्य करे।

16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए इंटरनेट मीडिया पर नियंत्रण रखना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन स्क्रीन के सामने अधिक समय बिताने, साइबरबुलिंग और व्यक्तिगत जानकारी लीक होने जैसे खतरों के मुकाबले इसके लाभ बहुत सीमित हैं। उम्र का सत्यापन, माता-पिता की निगरानी और डिजिटल साक्षरता पर जोर देकर भारत अपने भविष्य के लिए एक सुरक्षित और जिम्मेदार आनलाइन माहौल तैयार कर सकता है। हमें बच्चों को डिजिटल दुनिया के लिए तैयार करना होगा और सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से इंटरनेट मीडिया का उपयोग करने के लिए सिखाना होगा!

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