कैनवास पर क्यों पड़े खून के छींटे?
19वीं शताब्दी में कोलकाता के बदलते समाज में पैदा हुई कालीघाट चित्र शैली उन पटुआओं यानी चित्रकारों में काफी लोकप्रिय थी जो कालीघाट मंदिर के आस-पास काम करते थे। चमकीले रंगों और कुशल ब्रश स्ट्रोक से बने इन चित्रों की लिथोग्राफ का इस्तेमाल करके प्रतिकृति करना आसान था जिसके कारण इनका बड़े पैमाने पर चित्रण और विस्तृत परिसंचरण हो सका।
नई दिल्ली। कालीघाट की चित्रकला शैली में आखिर क्यों सजे रंग हत्या के? मैप अकादमी की पल्लवी सुराना से जानिए कि वह क्या वजह थी कि एक नृशंस अपराध से जुड़ी घटना और उस पर चले मुकदमे को दर्शाया गया कई चित्रों में..
वर्ष 1873 में एक सनसनीखेज अपराध ने तत्कालीन कलकत्ता (अब कोलकाता) को हिलाकर रख दिया था। इस अपराध पर जो मुकदमा चला, वह बहुत प्रसिद्ध हुआ। उस पर कई लेख लिखे गए और वह सामाजिक चर्चा का विषय भी बना। तारकेश्वर मर्डर केस के नाम से पहचाने जाने वाले इस मुकदमे में सवर्ण बंगाली पुरुष नबीनचंद्र बनर्जी शामिल था। उसके ऊपर आरोप था कि उसने अपनी 16 साल की पत्नी एलोकेशी की हत्या की थी, क्योंकि उसका तारकेश्वर के शिव मंदिर के महंत के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। इस मामले में समाज की रुचि किस हद तक बढ़ गई थी, उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस अपराध से जुड़ी घटनाओं, इसके ऊपर चले मुकदमे और उसके नतीजे में मिली सजा को कालीघाट के कई चित्रों में दर्शाया गया है।
स्मृति में दी जाती थी प्रतिकृति
19वीं शताब्दी में कोलकाता के बदलते समाज में पैदा हुई कालीघाट चित्र शैली उन पटुआओं (चित्रकारों) में काफी लोकप्रिय थी, जो कालीघाट मंदिर के आस-पास काम करते थे। चमकीले रंगों और कुशल ब्रश स्ट्रोक से बने इन चित्रों की लिथोग्राफ का इस्तेमाल करके प्रतिकृति करना आसान था, जिसके कारण इनका बड़े पैमाने पर चित्रण और विस्तृत परिसंचरण हो सका। हालांकि इनमें मूल तौर पर हिंदू धर्म से संबंधित चित्र होते थे और इन्हें काली मंदिर पर आने वाले भक्तों को स्मृति चिन्ह के रूप में देने के लिए बनाया जाता था। फिर समय के साथ इनमें अन्य धार्मिक परंपराओं और सामाजिक-राजनीतिक विवरणों को भी शामिल कर लिया गया। इन चित्रों में संस्कृति से लेकर खेल जैसे विषयों तक की विस्तृत शृंखला दिखने लगी-जाहिर है कि इस तरह की हत्या के मामले भी चित्रकला के इन विषयों में शामिल थे।
तथ्य में कल्पना का तड़का
तारकेश्वर मामले पर बने कालीघाट चित्रों में सिर्फ मुकदमे की वास्तविक घटनाएं ही नहीं दर्शाई गईं, बल्कि बहुत से चित्र अर्ध-काल्पनिक अतिशयोक्ति के सहारे इस शैली की व्यावसायिक लोकप्रियता बढ़ाने के लिए भी बनाए गए थे। एक विशेष तौर पर स्पष्ट चित्र में नबीनचंद्र और एलोकेशी को फ्रेम के बीच में दर्शाया गया है- एलोकेशी का कटा हुआ सिर एक तरफ गिर रहा है और उसके काले बाल बिखर रहे हैं, जबकि उसका पति मछली काटने वाला चाकू पकड़े बिना किसी भय के उसके बगल में खड़ा है। दूसरे चित्रों में अपराध से पहले की घटनाओं को दर्शाया गया है- एलोकेशी अपने मां-बाप के कहने पर महंत से बच्चा पैदा करने में मदद करने वाली दवाइयां लेने मंदिर जाती है। एलोकेशी और महंत एक-दूसरे के करीब आते हैं और महंत हाथी पर सवार है। उनके प्रेम संबंध को दर्शाते एक चित्र में एलोकेशी महंत को पान दे रही है, क्योंकि पान को कामोद्दीपक माना जाता था। एक अन्य चित्र में नबीनचंद्र को अपनी सजा की शुरुआत में जेल में जेलर से मिलते दिखाया गया है।
रुचि की मिलती जानकारी
ये चित्र 19वीं शताब्दी के कोलकाता की सामाजिक दुनिया के बारे में रोमांचक जानकारी प्रदान करते हैं। जानकारी प्रसारित करने, समकालीन घटनाओं को रिकार्ड करने और सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणी करने में कालीघाट चित्रों की अहम भूमिका रही है। इन चित्रों से हमें मालूम पड़ता है कि तब के समाज ने इस तरह की त्रासदी भरी घटना पर क्या प्रतिक्रिया दी होगी। एलोकेशी को दर्शाने के तरीकों से ये सवाल भी उठते हैं कि औरतों के साथ कैसा सलूक किया जाता होगा, जो अपनी परिस्थितियों का शिकार हुई होंगी। कई चित्रों में उसे पूरी व्यभिचारिणी की तरह दर्शाया गया है तो कई चित्रों में उसे भोली-भाली लड़की की तरह दर्शाया गया है, जिसका महंत ने फायदा उठाया, लेकिन इस सबसे ज्यादा इन चित्रों से हमें मालूम पड़ता है कि वर्तमान समय की तरह उस वक्त भी लोगों को ऐसे समाचारों में बेहद रुचि थी।