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युद्ध में अपने घोड़े को हाथी की नकली सूंड क्यों पहनाते थे Maharana Pratap, वजह जान आप भी करेंगे चतुराई की तारीफ

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के घोड़े चेतक की बहादुरी के किस्से तो सभी ने सुने होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि चेतक एक साधारण घोड़ा नहीं था? युद्ध के मैदान में चेतक एक योद्धा की तरह लड़ता था और उसके मुंह पर बंधी हाथी की नकली सूंड उसे एक भयानक रूप देती थी। मुगलों से जंग के दौरान यह सूंड शत्रुओं के लिए एक बड़ा खतरा बन जाती थी।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Updated: Sat, 21 Sep 2024 07:19 PM (IST)
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अपने घोड़े चेतक को हाथी की नकली सूंड क्यों पहनाते थे महाराणा प्रताप? (Image Source: X)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की वीरता के किस्से तो आपने जरूर सुने होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके घोड़े चेतक की बहादुरी के भी कई किस्से प्रचलित हैं? चेतक की लंबी छलांगें तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि युद्ध के मैदान में चेतक को एक अनोखा हथियार दिया जाता था? जी हां, महाराणा प्रताप जब भी चेतक को युद्ध के मैदान में लेकर जाते थे, तो उसके मुंह पर एक हाथी की नकली सूंड (Fake Elephant Trunk) बांधी जाती थी! यह सुनकर आपको हैरानी हो रही होगी, लेकिन ऐसा करने के पीछे एक खास वजह थी। आइए इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।

जो लोग घोड़ों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, उनके लिए यह जानना जरूरी है कि घोड़े भी कुत्तों की तरह अलग-अलग नस्लों के होते हैं। सभी घोड़े एक जैसे नहीं दिखते और ना ही एक जैसे काम करते हैं। दुनिया में 320 से ज्यादा तरह के घोड़े हैं और हर नस्ल के घोड़े को अलग-अलग कामों के लिए पाला जाता है। मारवाड़ी या मलानी भारत के मारवाड़ या जोधपुर क्षेत्र से आने वाली घोड़ों की एक ऐसी ही दुर्लभ नस्ल है, जो अपनी दुर्लभता और विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती है। इन घोड़ों के कान अंदर की ओर मुड़े होते हैं जो इन्हें रेगिस्तानी गर्मी का सामना करने की अद्भुत क्षमता देते हैं। युद्ध में इनकी वीरता, वफादारी और बहादुरी के किस्से इतिहास की किताबों में अक्सर देखने को मिलते हैं।

मारवाड़ी घोड़े और राजपूतों की युद्धनीति

मारवाड़ी घोड़े की प्रसिद्धि में राजपूतों का अहम योगदान रहा है। राजपूत योद्धा अपनी रणनीतियों के लिए प्रसिद्ध थे। युद्ध के मैदान में वे मारवाड़ी घोड़ों का उपयोग एक अनोखे तरीके से करते थे, जिसने उन्हें युद्ध में एक बड़ा फायदा दिलाया।

वे मारवाड़ी घोड़ों पर नकली हाथी की सूंड लगवा देते थे। दूर से देखने पर ये घोड़े छोटे हाथियों की तरह लगते थे। हाथियों के प्रति आम भय के कारण, दुश्मन सैनिक इन घोड़ों पर सवार राजपूतों पर हमला करने से हिचकिचाते थे। वे सोचते थे कि ये हाथी हैं और हाथी पर सवार राजपूत उनके लिए कोई खतरा नहीं हैं। इस तरह, राजपूतों को दुश्मनों पर हमला करने का मौका मिल जाता था और वे युद्ध में विजय प्राप्त करते थे।

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दुश्मन नहीं समझ पाते थे राजपूतों की चतुराई

घोड़े अपनी ताकत दिखाते हुए अपने पिछले पैरों पर खड़े हो जाते थे। उनके आगे के पैर हाथी के सिर पर रख देने से, वे एक तरह से हाथी की पीठ पर सवार हो जाते थे। यह स्थिति सवार को दुश्मन पर सीधा हमला करने का सुनहरा मौका देती थी। सवार अपने भाले या तलवार से सामने वाले पर प्रहार कर उसे घायल कर सकता था या उसे घोड़े से अलग कर सकता था। यह रणनीति अक्सर युद्ध का रुख बदलने में सफल साबित होती थी।

हल्दीघाटी का युद्ध

सन 1576 में लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध, भारतीय इतिहास के उन निर्णायक युद्धों में से एक है जिसने राजपूतों के साहस और मुगल साम्राज्य के अजेय होने के मिथक को चुनौती दी थी। यह युद्ध सिर्फ दो सेनाओं के बीच टकराव नहीं था, बल्कि यह स्वतंत्रता और गौरव की रक्षा के लिए एक संघर्ष था।

महाराणा प्रताप और मुगल साम्राज्य का टकराव

महाराणा प्रताप, मेवाड़ के शासक थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के अधीन आने से इनकार कर दिया था। अकबर ने अपने विशाल साम्राज्य का विस्तार करने के लिए मेवाड़ पर आक्रमण किया और इसी संघर्ष में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ, जिसमें महाराणा प्रताप ने अपनी छोटी-सी सेना के साथ मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया।

चेतक और महाराणा प्रताप की जोड़ी

इस युद्ध में महाराणा प्रताप के वफादार घोड़े चेतक की वीरता ने सभी को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया। युद्ध के उग्र रूप में फंसे चेतक पर एक हाथी ने हमला कर दिया और उसके एक पैर को काट डाला। घायल होने के बावजूद चेतक ने महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का बीड़ा उठाया। घायल अवस्था में भी उसने महाराणा प्रताप को अपने भाई शक्ति सिंह के घोड़े तक पहुंचाया। चेतक की यह वीरता आज भी भारतीय इतिहास की सबसे प्रसिद्ध गाथाओं में से एक है।

हालांकि, राजपूत इस युद्ध में विजयी नहीं हुए, लेकिन चेतक की वीरता ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। चेतक की निष्ठा और साहस ने यह सिद्ध कर दिया कि एक वफादार साथी कितना जरूरी होता है। चेतक की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप ने उसके लिए एक समाधि बनवाई और उसकी याद में एक मेला भी आयोजित किया जाता है।

क्या विलुप्त होने की कगार पर हैं मारवाड़ी घोड़े?

मारवाड़ी घोड़ा जो कभी राजपूतों का गौरव और युद्ध का प्रतीक था, आज एक संकट में है। अंग्रेजी शासन के आगमन के साथ मारवाड़ी घोड़े की किस्मत बदल गई। अंग्रेज अपनी नस्लों के घोड़ों को भारत लाए जो शक्ति और गति में मारवाड़ी घोड़ों से श्रेष्ठ माने जाते थे। इससे मारवाड़ी घोड़ों की लोकप्रियता में कमी आई और उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया।

भारत की आजादी के बाद भी मारवाड़ी घोड़ों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। आर्थिक तंगी के कारण लोग इन घोड़ों को पालने में असमर्थ हो गए। कई घोड़ों को छोड़ दिया गया, कुछ को मार दिया गया और कुछ का इस्तेमाल अन्य कामों के लिए किया जाने लगा।

हाल के वर्षों में, पर्यटन उद्योग के विकास के साथ मारवाड़ी घोड़ों की लोकप्रियता में कुछ हद तक वृद्धि हुई है। लोग अब इन घोड़ों की सुंदरता और इतिहास को देखने के लिए आकर्षित होते हैं, लेकिन चूंकि यह पर्यटन उद्योग पर निर्भर करता है ऐसे में इसे स्थायी लोकप्रियता नहीं समझा जा सकता है।

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