विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे हनीक्रीपर पक्षी, अब मच्छरों से बचाई जाएगी इनकी जान
हवाई में हनीक्रीपर नाम के खास पक्षी पाए जाते हैं जो अपनी खास चोंच के लिए जाने जाते हैं। लेकिन ये पक्षी तेजी से विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसके पीछे की वजह जानकर शायद आप भी हैरान रह जाएंगे। इसलिए अपनी इन्हें बचाने के लिए एक खास प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है जिसमें मच्छरों की मदद ली जा रही है। आइए जानें इस बारे में सबकुछ।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Why Honeycreeper Birds are Extincting: हनीक्रीपर पक्षी अमेरिका के हवाई में पाया जाने वाले छोटी आकार के पक्षी हैं, जो पक्षियों के फिंच परिवार से आते हैं। ये रंग-बिरंगी पक्षियां अपनी चोंच के लिए खास आकार के लिए जाने जाते हैं। हमारी इकोलॉजी में इन पक्षियों का महत्वपूर्ण योगदान है। ये फूलों को पॉलिनेट करने में, बीचों को फैलाते हैं और कीड़ों को खाते हैं, जो पर्यावरण के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन अब ये पक्षियां विलुप्त होने लगी हैं।
(Picture Courtesy: Freepik)
33 प्रजातियां हो गईं विलुप्त
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन पक्षियों की 50 में से 33 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। पर्यावरण में होते बदलाव के साथ-साथ एक बड़ा कारण इन पक्षियों की विलुप्ति के पीछे मच्छर हैं। दरअसल, मच्छरों के कारण फैलने वाले एवियन मलेरिया की वजह से इन पक्षियों की तेजी से मौत हो रही है।
क्यों हो रहे हैं विलुप्त?
मच्छरों द्वारा फैलाए जाने वाले एवियन मलेरिया की वजह से इन पक्षियों की तेजी से मौत होनी शुरू हो गई। 1800 के दशक में मच्छरों ने इस मलेरिया का आतंक फैलाना शुरू किया। हनीक्रीपर्स को इस बीमारी से कोई प्राकृतिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है, जिसके कारण मलेरिया की वजह से उनकी मौत होनी शुरू हो गई। इनकी प्रतिरक्षा भी इस बीमारी के खिलाफ बिल्कुल न के बराबर है। इसलिए ये सिर्फ एक मच्छर के काटने भर से भी मर सकते हैं। इसके कारण तेजी से इनकी मौत होने लगी और अब ये विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं।
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कैसे करेंगे इनका संरक्षण?
इसलिए इन पक्षियों को बचाने की जरूरत है। क्योंकि ये इकोलॉजी में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। यूएस नेशनल पार्क सर्विस, हवाई राज्य और माउई फॉरेस्ट बर्ड ने इन्कमपेटिबल इन्सेक्ट टेक्निक (आईआईटी) ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसमें मच्छरों की मदद से ही अब इन पक्षियों को विलुप्ति से बचाने की कोशिश करेंगे। आपको बता दें कि यहां नर मच्छरों को लााया जा रहा है। नर मच्छरों में एक खास बैक्टीरिया पाया जाता है, जिसका नाम वोलबाकिया है। ये बैक्टीरिया जन्म नियंत्रण में मदद करते हैं। इससे वहां के मच्छरों की आबादी को कम करने में मदद मिलेगी और हनीक्रीपर्स की मौत कम होगी।
मच्छर ही बचाएंगे जान
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि यहां हर हफ्ते 2.5 लाख मच्छर छोड़े जाएं और अब तर वहां एक करोड़ मच्छर छोड़े जा चुके हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल और भी कई देश सफलतापूर्वक कर सकते हैं। कैलिफोर्निया और फ्लोरिडा में भी अभी यह कार्यक्रम चल रहा है। इतना ही नहीं, हनोई में जो हनीक्रीपर पक्षी रहते हैं, वे चार हजार से पांच हजार की ऊंचाई पर रहते हैं, क्योंकि वहां मच्छर जिंदा नहीं रह पाते हैं। लेकिन जलवायु में परिवर्तन की वजह से मच्छर तेजी से बढ़ने लगे हैं और इसके कारण हनीक्रीपर पक्षियों पर खतरा और बढ़ गया है।
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