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Work From Home ने कैसे बदल दिया काम करने का तरीका? Life Coach ने बताया दिमाग पर भी छोड़ रहा है गहरा प्रभाव

वर्क फ्राम होम (Work From Home) मतलब घर से दफ्तर का काम। महामारी के दौर में सामने आई यह मजबूरी आज कारपोरेट ट्रेंड है। लाइफ कोच और साइकोथेरेपिस्ट चांदनी टग्नैत बता रही हैं कि सिर्फ पांच साल में इस चलन ने बदल दी है हमारी जिंदगी कामकाज की आदत और छोड़ रहा है मन पर गहरा प्रभाव... आइए जानते हैं।

By Seema Jha Edited By: Nikhil Pawar Updated: Mon, 04 Nov 2024 08:50 PM (IST)
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लाइफ कोच की नजर से समझें Work From Home का कल्चर (Image Source: Freepik)
सीमा झा, नई दिल्ली। डिजिटल मार्केटिंग मैनेजर सोनिया ने कभी नहीं सोचा था कि वह घर पर रहकर इतने लंबे समय तक आफिस का काम कर सकेंगी। बिस्तर पर बिखरी फाइलें, लैपटाप और मोबाइल के उलझे तारों के बीच चलती दिनचर्या उनकी अस्त-व्यस्त जिंदगी की कहानी कहती है। कभी वर्क फ्राम होम अच्छा लगता था पर अब यह सिर्फ एक आदत है। ऐसी आदत जिसने बीते समय की यादों को धुंधला कर दिया है। साथ में उस मोटी दीवार को भी कर दिया है कमजोर जिसे कभी उन्होंने घर व दफ्तर के काम के बीच खड़ा कर रखा था।

सेल्स टीम में काम करने वाले सौरभ के अनुसार, उन्हें हर दिन पहले जैसा ही लगता है। छह माह पूर्व ही कंपनी ने वर्क फ्राम होम की बाध्यता तो खत्म कर दी है पर वे आज भी वर्क फ्राम होम कर रहे हैं। सुबह उठते हैं, कामकाजी पत्नी की मदद करते हैं, बच्चे को स्कूल भेजते हैं और घर के एक अस्थायी कार्यालय में काम करने चले जाते हैं। इस तरह दिन भर घर-दफ्तर के बीच तालमेल बिठाते हुए शाम तक थककर बिस्तर पर गिर जाते हैं। सौरभ कहते हैं, व्यक्तिगत व पेशेवर सीमाएं जिन्हें संभालना कभी कठिन जान पड़ता था अब खत्म हो गई हैं। हम चल रहे हैं वक्त के साथ, जी रहे हैं नौकरी में!

चाय का ठेला और वो ठहाके

वर्क फ्राम होम ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया है। इसने आफिस के कामकाज को ही नहीं कर्मचारियों व उच्चाधिकारियों के व्यवहार में भी बदलाव ला दिया है। कार्यस्थल पर सहयोगियो के साथ बांडिंग भले ही पहले जैसी हो पर दफ्तर की इमारत के बाहर चाय की टपड़ी या ठेले पर लगने वाले ठहाके कम सुने जाते हैं। हाइब्रिड मोड में दफ्तर हो या वापस आफिस आकर काम करने लगे हों लोग, पुरानी कार्यसंस्कृति की यादें आंखों में चमक लाने के लिए काफी हैं। सहकर्मियों के बीच होने वाली नोंकझोंक, उच्चाधिकारी की कड़ी नजर, डांट या चेतावनी आदि यादों में स्थायी डेरा जमा चुके हैं।

साथ रहकर भी वक्त नहीं

बैंककर्मी निखिल वर्क फ्राम होम से खुश हैं तो चिंतित भी। कभी अचानक मीटिंग का काल तो कभी क्लाइंट की शिकायत के निपटारे में वह बच्चों के साथ समय बिताना अक्सर मिस कर देते हैं। रीतिका जो एक ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर हैं, उनकी समस्या और गंभीर है। वे कहती हैं कि यह वर्क फ्राम होम ही है जिसके कारण उनके और पति के बीच मतभेद पैदा हो गए हैं। दोनों घर से काम करते हैं पर उनकी प्राथमिकताएं अलग हो गयी हैं। साथ हैं पर प्रेम से अधिक रिश्ते में तनाव बढ़ रहा है। दोनों के काम के शेड्यूल का अलग होना इसका बड़ा कारण है। पहले वे घर की जिम्मेदारियां साथ निभाते थे, अब यह नहीं हो पाता इसलिए छोटी छोटी बातों पर झगड़ा रोज की बात हो गयी है।

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मन की कमान आपके हाथ

लाकडाउन के समय जब लंबे समय तक घर में रहना पड़ा, तो एक-दूसरे की जो कमजोरियां पहले छुप जाती थीं वह छुपाना कठिन हो गया। छोटी-छोटी बातों पर बहस होने लगी। यह समय के साथ कम जरूर हुआ पर एक बदलाव के साथ। अब सभी अपने लिए एक कोना चाहने लगे। घर पर अपना एक अलग कमरा हो, इसकी चाहत बच्चों को भी होने लगी। वर्क फ्राम होम के कारण यह एक स्थायी इच्छा बनती जा रही है। इसमें बदलाव किसी को मंजूर नहीं। कंटेंट राइटर राघव बताते हैं कि पहले वह आफिस जाकर अपने काम पर बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित कर पाते थे। आफिस का माहौल, सहकर्मियों से बातचीत और काम के बाद सोशल टाइम उन्हें फ्रेश कर देता था। पर अब परिवार में सबके साथ भी अकेलापन महसूस करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी 'सोशल बबल' से कट गए हैं। यदि आपको ऐसा महसूस होता है तो मन की कमान अपने हाथ लें, यदि परेशानी अधिक बढ़ जाए तो अपने लिए स्वयं पहल करें!

कितना अच्छा है ऑफिस से काम

इन दिनों कामकाज और निजी जीवन के बीच संतुलन की बहस छिड़ी हुई है। इसी संदर्भ में एक हालिया अध्ययन पर खूब चर्चा हो रही है। दरअसल, अमेरिका की एक रिसर्च संस्था सैपियंस लैब द्वारा हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्क फ्राम होम के बजाय आफिस से काम मानसिक सेहत के लिए अच्छा है। यह अध्ययन समयानुकूल है और एक बड़ा सच भी। सहयोगियों से बातचीत से घर की परेशानी साझा हो जाती है, गुस्सा निकल जाता है। स्वमूल्यांकन का समय मिलता है। यह संस्कृति वर्क फ्राम होम के कारण कम हो रही है।

ऐसे कम करें वर्क फ्राम होम के नकारात्मक प्रभाव

  • काम का समय और निजी काम के लिए समय सारणी बनाएं।
  • काम के लिए घर पर अलग जगह तय करें।
  • छोटे-छोटे अंतराल पर ब्रेक लेना न भूलें।
  • नियमित योग व कसरत का समय निकालना चाहिए।
  • परिवार व सहकर्मियों से खुलकर बात करें। चिंताएं साझा करें।
  • काम बांटने की आवश्यकता पड़े तो झिझकें नहीं। सपोर्ट सिस्टम बनाएं।
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