World Photography Day 2024: देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट, जिनके कैमरे में कैद हुईं कई ऐतिहासिक घटनाएं
क्या आप देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट को जानते हैं? अगर नहीं तो आइए आज विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day 2024) के मौके पर जानते हैं होमी व्यारावाला के बारे में जिन्होंने पुरुष प्रधान माने जाने वाले इस पेशे में अपना कदम रखकर देश-दुनिया में खूब नाम कमाया। आइए आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। World Photography Day 2024: एक वक्त था जब फोटोग्राफी को पुरुषों का पेशा माना जाता था और इसमें महिलाओं की भागीदारी न के बराबर थी, लेकिन एक महिला ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए नई राह खुल गई। होमी व्यारावाला ने मुंबई के एक दैनिक समाचार पत्र के लिए फोटो खींचना शुरू किया और इसे अपना पेशा बना लिया। होमी ने सिर्फ इस क्षेत्र में कदम ही नहीं रखा बल्कि अपने कैमरे में कई ऐतिहासिक घटनाओं को कैद करने का काम भी किया। आइए आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
एक तस्वीर के बदले मिलता था 1 रुपया
देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला की पहली तस्वीर बॉम्बे में पिकनिक पार्टी में ली गई महिलाओं की एक तस्वीर थी, जिसे 1930 में बॉम्बे क्रॉनिकल्स पत्रिका में छापा गया था। उस वक्त होमी को एक तस्वीर के बदले एक रुपया मिला करता था। दूसरे विश्व युद्ध यानी साल 1942 की बात की जाए, तो इस दौरान व्यारावाला ब्रिटिश इन्फॉर्मेशन सर्विस से बतौर फोटो जर्नलिस्ट जुड़ीं। वहीं, पति के निधन के बाद साल 1970 में होमी ने फोटोग्राफी से संन्यास ले लिया।यह भी पढ़ें- Chhatrapati Shivaji Maharaj के एक ही वार से धराशायी हो गया था अफजल खान, दिलचस्प है 'वाघ नख' की पूरी कहानी
पहले ध्वजारोहण की ली तस्वीर
आजाद भारत में लाल किले पर हुए देश के पहले ध्वजारोहण की तस्वीर भी होमी ने ही ली थी। महात्मा गांधी, पं. नेहरू की अंतिम यात्रा की तस्वीरें और भारत से लॉर्ड माउंटबेटन की वापसी जैसे ईवेंट्स की तस्वीरें भी होमी ने अपने कैमरे में कैद की थीं। एक इंटरव्यू में होमी ने इस बात का भी खुलासा किया था कि नेहरू की मृत्यु होने के बाद वे फोटोग्राफरों से चेहरा छिपाकर रोई भी थीं।क्यों डीएलडी-13 के नाम से फेमस हुईं थी होमी?
होमी व्यारावाला द्वारा खींची गई ज्यादातर तस्वीरें डीएलडी-13 के नाम से मशहूर हुई। दरअसल, यह होमी की पहली गाड़ी का नंबर था, जिसे उन्होंने अपना उपनाम बनाया था। अपने कैमरे में कैद सभी यादों को होमी ने दिल्ली स्थित अल-काजी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स को भेंट कर दिया था। इसके बाद साल 2010 में उन्होंने आधुनिक कला संग्रहालय मुंबई ने इस फाउंडेशन के साथ मिलकर उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई थी। होमी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से साल 2010 में ही लाइफ टाइम अचीवमेंट का अवार्ड भी दिया गया था। यही नहीं, इसके एक साल बाद साल 2011 में होमी को पद्म भूषण से भी नवाजा गया। वहीं, होमी का निधन साल 2012 में हो गया, जिस वक्त उनकी उम्र 92 वर्ष थी।
यह भी पढ़ें- सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले भारतीय क्रांतिकारी, बेबाक शब्दों से ब्रिटिश जज के उड़ा दिए थे होश