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जलियांवाला बाग हत्याकांड की 104वीं बरसी, जानें क्या था रोलेट एक्ट?

Jallianwala Bagh Massacre Day 2023 इस साल देश जलियांवाला बाग की 104वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है। साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हज़ारों लोग मारे गए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के आंकड़ें में सिर्फ 379 की हत्या दर्ज की गई।

By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Wed, 12 Apr 2023 04:15 PM (IST)
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Jallianwala Bagh Massacre Day 2023: ऐसा है जलियांवाला बाग हत्याकांड का दर्दनाक इतिहास...
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Jallianwala Bagh Massacre Day 2023: जलियांवाला बाग में हुआ हादसा भारत की स्वतंत्रता के इतिहास से जुड़ा एक ऐसा दिन था, जिसका जश्न नहीं मनाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह इतिहास का काला दिन है जो सिर्फ दर्दनाक और दुखद यादों से भरा हुआ है। रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में भाग लेने के लिए हजारों की संख्या में लोग उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए थे, जिसने वास्तव में नागरिक अधिकारों पर अंकुश लगाया था, जिसमें उनकी आवाज को दबाने और पुलिस बल को अधिक शक्ति देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल थी।

क्या था जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग हत्याकांड, को अमृतसर हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है, जो ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में 13 अप्रैल, 1919 को घटी एक दुखद घटना थी। यह ब्रिटिश कोलोनियल शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के सबसे काले दिनों में से एक था। इस नरसंहार की शुरुआत रोलेट एक्ट के साथ शुरू हुई, जो 1919 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित एक दमनकारी कानून था, जिसने उन्हें बिना मुकदमे के राजद्रोह के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति को कैद करने की अनुमति दी थी। इस अधिनियम की वजह से पंजाब सहित पूरे भारत में विरोध शुरू हुआ।

अमृतसर में, जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारियों का एक समूह इकट्ठा हुआ था। यह एक सार्वजनिक बाग था, जहां गिरफ्तार किए गए दो प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं की रिहाई की मांग करने के लिए और रोलेट एक्ट के खिलाफ शांति से विरोध किया जा रहा था। यहां पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे भी मौजूद थे।

जनरल रेजिनल्ड डायर के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सरकार ने विरोध को अपने अधिकार के लिए खतरे के रूप में देखा और कार्रवाई करने का फैसला किया। 13 अप्रैल, 1919 को डायर और उसके सैनिकों ने जलियांवाला बाग में प्रवेश किया और भीड़ को फंसाने के लिए एकमात्र निकास को अवरुद्ध कर दिया।

बिना किसी चेतावनी के, डायर ने अपने सैनिकों को निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। लगभग दस मिनट तक गोलीबारी जारी रही, जब तक कि सैनिकों के गोला-बारूद खत्म नहीं हो गए। अंत में, लगभग 400 से 1,000 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए।

भगत सिंह पर कुछ ऐसा हुआ था इसका असर

जलियांवाला बाग हत्‍याकांड का भगत सिंह पर गहरा असर पड़ा था। बताया जाता है कि जब भगत सिंह को इस हत्‍याकांड की सूचना मिली तो वह अपने स्‍कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।

असहयोग आंदोलन की हुई शुरुआत

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद पूरे भारत में आक्रोश फैल गया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। महात्मा गांधी जिन्होंने पहले विश्व युद्ध-1 में ब्रिटिश राज का समर्थन किया था, उन्होंने भी औपनिवेशिक सरकार के साथ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया। नरसंहार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि इसने ब्रिटिश शासन की क्रूरता और भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

डायर को देना पड़ा था इस्तीफा

इस नरसंहार की दुनियाभर में आलोचना हुई। दबाव में आकर भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने साल 191 में जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर दिया गया। उन्हें कर्नल बना दिया गया और साथ ही ब्रिटेन वापस भेज दिया गया था। हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्‍याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। बाद में दबाव में ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्‍ताव पारित किया। 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा। साल 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेम्रेज से मृत्यु हो गई।

Picture Courtesy: Instagram