Azadi Ka Amrit Mahotsav: ... जब अदालत में घुसकर जज को ललकारा इन छात्राओं ने
Azadi Ka Amrit Mahotsav लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा हम जज साहब को आठ दिन की मोहलत देती हैं। वे इस्तीफा देकर बाहर आ जाएं और देशभक्तों का साथ दें वरना आप सब उन्हें सबक सिखाइए।
नई दिल्ली, फीचर डेस्क। 1942 के भारत छोड़ा आंदोलन में दक्षिण भारत के छात्र-छात्राएं भी पीछे नहीं थे, बल्कि कहीं-कहीं तो उन्होंने आगे बढ़कर अद्भुत कारनामे कर दिखाए थे, जैसे-पुलिसवालों की टोपियां उतरवाकर उन्हें जबरन गांधी टोपी पहनाना, स्टेशन मास्टरों से कागजात छीनकर स्टेशनों पर कब्जा कर लेना, गाडिय़ों का आवागमन रोक देना आदि। धारवाड़ की दो स्कूली छात्राओं हेमलता और गुणवती ने भी 23 अक्टूबर, 1942 को अदालत में घुसकर ऐसा ही एक साहसी कारनामा कर दिखाया था। दोनों छात्राएं जिला अदालत में घुस गईं। एक ने उपस्थित लोगों को संबोधित करना शुरू किया, जबकि दूसरी जज की सीट पर ही तिरंगा झंडा फहराने लगी। उन्होंने जज को इस्तीफा देने या इसका परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दे दी। लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'हम जज साहब को आठ दिन की मोहलत देती हैं। वे इस्तीफा देकर बाहर आ जाएं और देशभक्तों का साथ दें, वरना आप सब उन्हें सबक सिखाइए। नहीं तो इन्हें सबक सिखाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का साथ दीजिए।
जाहिर है, इस धमकी के बाद पुलिस सक्रिय हो गई। पुलिस ने जैसे ही भीतर प्रवेश किया, गुणवती भागने में सफल हो गई, पर हेमलता पकड़ में आ गई। कम उम्र का होने के कारण उसे एक महीने की जेल की सजा या पचास रुपये जुर्माने का हुक्म दिया गया। हेमलता ने जुर्माना भरने के बजाय जेल जाना पसंद किया, जैसा कि उन दिनों क्रांतिकारी करते थे। हेमलता के जेल जाने के बाद गुणवती को अपने वहां से भाग जाने पर आत्मग्लानि हुई। उसे लगा कि देश के लिए जेल जाने के अवसर को उसने गंवा दिया। इसलिए गुणवती कुछ दिन बाद अकेले ही उसी अदालत में घुस गई। वहां जाकर उसने उसी कृत्य को पुन: दोहराया। तिरंगा फहराया और जज को धमकी दी। उसने पुलिस को गिरफ्तारी दी। दोबारा यह घटना होने पर गुणवती को हेमलता से दोगुनी सजा सुनाई गई। सौ रुपये जुर्माना या तीन महीने की कड़ी कैद। उसने जुर्माने के बजाय खुशी-खुशी तीन महीने के लिए जेल जाना पसंद किया। इस बार सजा कड़ी कैद की थी, फिर भी उन्हें इस बात का मलाल रहा कि अन्य जगहों पर पकड़े गए अपने साथी लड़कों से उन्हें कम सजा दी गई।
-प्रभात प्रकाशन की पुस्तक 'क्रांतिकारी किशोर' से साभार संपादित अंश