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दशहरा विशेष में जानिए आदिनाट्यकार की नजर से पुरुषोत्तम नायक-श्रीराम का चित्रण

प्रतिमानाटक में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के बहुआयामी व्यक्तित्व वनगमन रावण वध और उनके अयोध्या में राज्याभिषेक के दौरान घटी घटनाओं चित्रण है। असत्य पर सत्य की विजय के पर्व विजयदशमी पर नाटककार भास रचित प्रतिमानाटक की विशेष झलक।

By Aarti TiwariEdited By: Updated: Sat, 01 Oct 2022 07:02 PM (IST)
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संस्कृत के प्रथम नाट्यकार भास रचित 'प्रतिमानाटक' अपनी विशिष्‍टताओं के लिए है खास
 डा. विनोद कुमार शर्मा। शाजापुर, मध्य प्रदेश

संस्कृत के प्रथम नाट्यकार भास ने तेरह रूपकों की रचना की थी। इनमें से 'प्रतिमानाटक' का विशेष महत्व है। सात अंकों में निबद्ध इस नाटक की कथा रामायण से ली गई है।

श्रीराम के पावन चरित्र के प्रति जन-जन के हृदय में अटूट श्रद्धा का भाव रहा है। आदिकाव्य रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि के अनुसार राम महाबली, धैर्यवान, बुद्धिमान, नीतिज्ञ, प्रजापालक, धर्मज्ञ, सत्यप्रर्तिज्ञ, साधु, लोकप्रिय वाक्पटु, प्रतिभासंपन्न, प्रियदर्शन गुणों से युक्त हैं। राम की उक्त विशेषताओं ने उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में स्थापित किया, किंतु भास के 'प्रतिमानाटक' में राम को आदर्श पुत्र, भाई, पति, नृपति और शौर्य के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने रामायण में वर्णित राम की चारित्रिक विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए 'प्रतिमानाटक' में ऐसी विशेषताओं को भी उद्घाटित किया है जो पुरातन कवियों की सूक्ष्मदृष्टि से ओझल रही है।

'प्रतिमानाटक' में राम के गुणों की सूची से सहजता, भोलापन, विकारहीनता और पितृभक्ति को मुख्यत: रेखांकित किया गया है। अचानक राज्याभिषेक के रुक जाने पर राम सहज भोलेपन से कहते हैं, 'नगाड़ों का बजना प्रारंभ हो जाने पर, गुरुजनों के तथा मेरे आसनों पर आरूढ़ हो जाने पर, कलशों से तीर्थजल गिराए जाने पर भी राजा ने मुझे विदा कर दिया। मेरे धैर्य को देखकर लोग विस्मित हो गए। पुत्र यदि पिता के वचनों का पालन करता है तो हे लोगों! इसमें आश्चर्य की क्या बात है?' निर्विकार राम का भोलापन उनके इस कथन से भी व्यक्त होता है-'अभिषेक के अवसर पर शत्रुघ्न और लक्ष्मण ने कलश उठा लिया और रोते हुए राजा ने स्वयं छत्र को पकड़ लिया। उस समय घबराई हुई मंथरा ने राजा के कान में कुछ कहा और मैं राजा नहीं बना।'

महाकवि भास के राम महासागर की भांति गंभीर तथा उदारहृदय हैं। भरत के राज्याभिषेक का समाचार पाकर जब लक्ष्मण धनुष उठा लेते हैं तब राम उन्हें समझाते हैं-'चाहे भरत राजा हों या हम, ये दोनों बातें समान हैं। यदि तुम्हें धनुष धारण करने पर गर्व है तो राजा भरत की रक्षा करो। मुझसे सत्यपालन की अपेक्षा रखने वाले अपने पिता पर मैं धनुष नहीं उठा सकता। अपने ही वचनरूपी धन को लेने वाली माता पर बाण नहीं चला सकता। निर्दोष अनुज भरत को मैं नहीं मार सकता। बताओ कि इन तीन पापों में से, क्रोध से भरे हुए तुम्हें कौन-सा पाप अच्छा लग रहा है'- किं रोषणाय रुचिरं त्रिषु पातकेषु।

राम सत्यप्रतिज्ञ, जितक्रोध, विमत्सर तथा गुरुसेवक हैं। नाटक में दशरथ राम की उपमा सूर्य से, लक्ष्मण की दिवस से तथा सीता की उपमा छाया से करते हैं।

महाकवि भास के नायक राम का गुणगान मित्र ही नहीं शत्रु भी करते हैं। सीताहरण के लिए पर्णकुटी में आए हुए रावण ने राम के गुणों का वर्णन इन शब्दों में किया है-राम के लिए बल, पराक्रम, पौरुष और वेग आश्चर्यजनक है। 'राम' इन थोड़े अक्षरों से समस्त संसार व्याप्त हो रहा है-अहो बलमहो वीर्यमहो सत्त्वमहो जव:।

राम इत्यक्षरैरल्पै: स्थाने व्याप्तमिदं जगत्।।

श्रीराम जन-जन को अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। उनके वनगमन के बाद अयोध्या की जो दशा हुई उसका चित्रण 'प्रतिमानाटक' में इस प्रकार किया गया है-गजराजों ने चारा खाने की अभिलाषा छोड़ दी। अश्रुपूरित नेत्रों वाले घोड़ों ने हिनहिनाना छोड़ दिया है। नगरवासियों ने भोजन की वार्ता ही छोड़ दी है और अत्यंत दीनमुख होकर वे उच्चस्वर में क्रंदन कर रहे हैं। ये सब उसी दिशा की ओर देख रहे हैं जिस दिशा से पत्नी और अनुज सहित राम गए हैं। जब सुमन्त्र भरत से राज्याभिषेक के लिए आग्रह करते हैं तब भरत उत्तर देते हैं,'मैं वहां जाऊंगा जहां वे लक्ष्मण से प्रेम करने वाले राम हैं। उनके बिना अयोध्या, अयोध्या नहीं है। जहां राम हैं वहीं अयोध्या हैÓ-रायोध्या तं विनायोध्या सायोध्या यत्र राघव:।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि नाटककार भास ने 'प्रतिमानाटक' में राम को आदर्श महानायक और महामानव के रूप में प्रस्तुत किया है। इस प्रकार भास ने राम के विषय में महामुनि वाल्मीकि की अवधारणा को ही संरक्षित तथा समृद्ध करने का महनीय कार्य किया है।

संस्कृत साहित्य के नाटककार भास

कवि भास का उल्लेख संस्कृत भाषा के प्रमुख नाटककारों में होता है। महाकवि कालिदास ने भी नाटककार भास की चर्चा की है। 20वीं सदी में अनंतशयन संस्कृत ग्रंथावली में भास कृत नाटकों को प्रकाशित किया गया। भास के नाटकों में स्वप्नवासवदत्ता, प्रतिज्ञा यौगंधरायण, दरिद्र चारु दत्त, अविमारक, प्रतिमानाटक, अभिषेक, बालचरित, पंचरात्र, मध्यमाव्यायोग, दूतवाक्य, दूतघटोत्कच, कर्णभार, उरुभंग उपलब्ध हैं।