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तपस्या भाव से फिल्में देखता- राणा डग्गुबाती

रात नौ-साढे़ नौ बजे तक ही बाहर रहने की इजाजत मिलती थी। तब जाकर हमें सिनेमा का ज्ञान हो सका।

By Srishti VermaEdited By: Updated: Sat, 25 Mar 2017 11:18 AM (IST)
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तपस्या भाव से फिल्में देखता- राणा डग्गुबाती
जो लोकप्रियता ‘गब्बर सिंह’ ने अमजद खान को दिलाई थी, तकरीबन उतनी ही ‘भल्लादेव’ से राणा डग्गुबाती को हासिल हुई। राणा डग्गुबाती का ताल्लुक फिल्मी परिवार से रहा है। उनके शब्दों में,‘मेरी पैदाइश तमिलनाडु की है। हमारा परिवार फिल्में बनाने के लिए आंध्र प्रदेश आ गया था। मेरे दादाजी और पिताजी स्थापित निर्माता रहे हैं। मेरी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई। ’ घर के बेसमेंट में एडिटिंग रूम था।

मुझे याद है। मैं छठी क्लास में था,जब बच्चे खेल-कूद में समय व्यतीत करते थे, जबकि मैं फिल्म की एडिटिंग की बारीकियां सीखने में लगा रहता था। मेरा दिल उसी काम में लगने लगा था। 11वीं तक आते-आते, मैं साउंड मिक्सिंग करना सीख चुका था। रोजाना दुनियाभर की फिल्में देखा करता। घर के लॉन में शूटिंग हुआ करती थी। मेरा भी ब्रेकफास्ट सेट पर होता। उन दिनों मैं कॉलेज से लौटकर सेट पर ही रहता था। इस तरह फिल्मों से मेरा काफी एक्सपोजर रहा। वहां मौजूद कैमरा, कॉस्ट्यूम, लोग सब मुझ में ऊर्जा का संचार करते थे।

वह आदत मुझ में आज भी बरकरार है। दोस्तों की बात करें, तो सभी समान विचारधारा वाले थे। फिल्म बफ नहीं थे, पर मैंने उन्हें भी फिल्मी कीड़ा बना दिया। राणा बताते हैं, ‘शरारतों में मेरा कभी दिल नहीं लगा। मैं तपस्या भाव से फिल्में देखता। तब हैदराबाद के एक कॉम्प्लेक्स में 4 स्क्रीन थे। दोस्तों के साथ हर संडे यह लक्ष्य रहता था कि तीन-चार फिल्में देखनी हैं। नाश्ते से लेकर लंच और डिनर वहीं होते। उन दिनों थिएटर में सुबह साढे़ सात बजे से ही पहला शो शुरू हो जाता था। हमें रात नौ-साढे़ नौ बजे तक ही बाहर रहने की इजाजत मिलती थी। तब जाकर हमें सिनेमा का ज्ञान हो सका। ’

-अमित कर्ण

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