Global Parents Day : बनी रहे उनकी स्नेहिल छांव, हरकदम साथ देने के लिए आइए जताएं उनका आभार
Global Day of Parents 2022 दोस्तो माता-पिता के स्नेह का ऐसा बंधन है कि हम खुश होते हैं तो हमारे साथ वे भी खिलखिलाते हैं और जब उदास होते हैं तो उनका चेहरा भी मलिन हो जाता है। हम गलतियां करें तो वे बन जाते हैं हमारे शिक्षक।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 27 May 2022 02:26 PM (IST)
सीमा झा। 'बार-बार खाने के लिए क्यों आवाज लगा रही हो। मुझे नहीं खाना।' अपना पैर पटकते हुए चैतन्य जितनी तेजी से अपने कमरे से निकला, उसी गति से वह वापस चला गया। मां जरा सी घबराई, लेकिन उन्होंने चैतन्य से कहा, 'खाने पर गुस्सा नहीं निकालते। आओ मुझे बताओ क्या हुआ, बात तो करो।' चैतन्य को उनकी बातों से जैसे कोई फर्क नहीं पड़ा। एक घंटे बाद मां ने देखा कि उनके वाट्सएप पर चैतन्य का एक सुंदर-सा संदेश लिखकर मां को सारी लिखा था।
यह देखते ही मां चैतन्य के पास गईं और उसके गालों पर हल्की सी थपकी लगा दी। इस स्नेहिल स्पर्श से चैतन्य का चेहरा पहले की तरह खिल उठा। ऐसी मीठी तकरार तो रोज की बात होती है घर में। क्या आपने ध्यान दिया है कि माता-पिता पढ़ लेते हैं आपका चेहरा। जैसे वे कोई माइंड रीडर हों। वे आपको कभी अकेला नहीं होने देते क्योंकि जितना आपको उनकी जरूरत है, उन्हें भी चाहिए केवल आपकी खुशी। किसी सुपरमैन सी शक्ति हो जैसे, वे हर वक्त आपके जीवन में आई मुश्किलों से दो-दो हाथ करने में जुटे होते हैं। यूं तो हर दिन है उनके नाम, पर कुछ दिन ऐसे भी होते हैं जब हम उनका खुलकर आभार कर सकते हैं।
ग्लोबल पैरेंट्स डे 2022: इस दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 17 जून, 2012 को की गयी थी। इस दिन को मनाने के लिए माता-पिता के प्रति अपनत्व का एहसास कराएं। उन्हें बताएं यह सुंदर जीवन देने के लिए आप उनके कृतज्ञ हैं। ग्लोबल पैरेंट्स डे के लिए इस बार की थीम है-दुनिया भर में बच्चों के प्रति माता-पिता के संघर्षों और बलिदानों का समर्थन।
बनाएं नई मिसाल: तमिलनाडु के शतरंज खिलाड़ी प्रज्ञानानंद इन दिनों बटोर रहे हैं सुर्खियां। मध्यमवर्गीय परिवार का यह किशोर विश्व शतरंज चैंपियन कार्लसन को हराने के बाद अपने करियर के अगले पड़ाव पर है। पिता रमेश बाबू पोलियो से ग्रस्त रहे हैं और तमिलनाडु कोआपरेटिव बैंक में नौकरी करते हैं। उनके मुताबिक, घर में उनकी बड़ी बहन शतरंज मास्टर रही हैं लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि प्रज्ञानानंद में भी इतनी ही प्रतिभा मौजूद है। वह सोचते थे कि दोनो को शतरंज में आगे ले जाना आर्थिक दिक्कतों के कारण संभव नहीं, पर किशोर बेटे ने ऐसी मिसाल कायम कर दी कि आज माता-पिता के पूरा देश गदगद हैं।
गत वर्ष की आइएएस टापर: अपाला मिश्रा कहती हैं, 'यदि बच्चा खुद उदाहरण बना रहा है तो मां बाप को कोई दिक्कत नहीं होती उसका साथ देने में।' खुद अपाला के मुताबिक, उन्होंने सोच लिया था कि वह तब तक शादी नहीं करेंगी जब तक कि आइएएस की परीक्षा बेहतर रैंक से उत्तीर्ण न कर लें। इस आत्मविश्वास को माता-पिता ने पसंद किया और उन पर पूरा भरोसा किया। परिणाम सबके सामने है। हाल ही में आइएसएफ जूनियर वर्ल्ड कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली शूटर मनु भाकर की मां सुमेधा भाकर भी कहती हैं, 'बच्चे को पता है कि उसका लक्ष्य क्या है, उसकी पसंद क्या है, कैसे आगे बढ़ना है, ऐसे में अभिभावक की चिंता कम हो जाती है। हालांकि वे लगातार बच्चे के साथ होते हैं। मनु के साथ भी ऐसा ही है।' सुमेधा भाकर के अनुसार, हम सभी को समझना है कि केवल मां-बाप ही नहीं बच्चे भी सिखाते हैं बहुत कुछ।
हरकदम साथ है हमारा: सायना नेहवाल और पीवी सिंधु के बाद के बाद इंटरनेट पर ज्यादातर लोग अदिति भट्ट का नाम का खोजते हैं। इस उभरती खिलाड़ी के भीतर कभी हार न मानने की जिद भरी है उनके पिता ने, जो बैंककर्मी होने के साथ-साथ फुटबाल खिलाड़ी भी रहे। पर जब अदिति ने करियर के लिए बैडमिंटन को चुना तो पिता के साथ मां भी उनके साथ कदमताल कर ही हैं। अदिति की मां पूनम भट्ट बताती हैं, ' आसान नहीं रहा है यह सफर। जब अदिति छह साल की थी, तभी से उसने बैडमिंटन थाम लिया और खुद को साबित किया है। थामस कप में गत वर्ष उसका चयन हुआ था। वह भारत के लिए अब तक कई अंतरराष्ट्रीय पदक ले चुकी है। लेकिन हमें तो उसके साथ अभी लंबा सफर तय करना है।'
पिता बने मेंटर: जुइ केसकर को इस वर्ष नवाचार के क्षेत्र में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार मिला है। वह इसे संभव करने में अपने पिता का योगदान सर्वोपरि मानती हैं। वह कहती हैं, 'लंबे समय तक यूट्यूब और अन्य वेबसाइट को खंगालकर रिसर्च के बाद जब वह कभी-कभी थकान महसूस करती थीं तो पिता अचानक उन्हें नई ऊर्जा से भर देते थे।' जुई केसकर के मुताबिक, कोरोना महामारी के दौर में पिता घर से दूर जर्मनी में थे और वह घर पर लगातार पर्किंसन बीमारी को दूर करने की डिवाइस बनाने में जुटी थीं। पर पिता ने उन्हें यह दूरी कभी महसूस नहीं होने दी। वे समझ जाते थे कि अदिति को अभी किस चीज की सबसे अधिक जरूरत है।
ये गोल्ड माता पिता के नाम: विश्व मुक्केबाजी की नई चैंपियन निकहत जरीन अपनी जीत का श्रेय माता-पिता को देते हुए बताती हैं कि कैसे वह जब भी अपनी मां को फोन करती थीं तो वह नमाज पढ़ रही होती थीं। उनकी दुआ आज कुबूल हो गयी। अपने पिता का भी आभार व्यक्त करते हुए निकहत ने एक साक्षात्कार में बताया कि कैसे बुरे वक्त में जब सारी दुनिया उनके खिलाफ थी और वह ट्विटर पर ट्रोल हो रही थीं तो पिता चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे। उनके मुताबिक, हर मां-बाप को बच्चों के लिए ऐसी ही सपोर्ट की जरूरत है।
बीएचयू आइएमएस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. संजय गुप्ता ने बताया कि बच्चे को समझना है कि अभिभावक आपको कच्ची मिट्टी से ठोस व्यक्तित्व बनाने में अहम भूमिका में होते हैं। यदि वे डांटते भी हैं तो वह आपके फायदे के लिए ही है। यदि आग में जाना मना है तो मां-बाप ही मना करेंगे। आपको अपनी बात उनसे साझा करनी चाहिए। अभिभावक समझ लें कि बच्चे गलती करें तो उस समय उन्हें सपोर्ट करें और अगले दिन समझाएं। सपोर्ट और समझ को एक साथ न दें। उन्हें समझाएं कि वे उनके लिए कितने मूल्यवान हैं।
हार मानने की जिद: बैडमिंटन खिलाड़ी अदिति भट्ट की मां पूनम भट्ट ने बताया कि अक्सर पैरेंट्स धैर्य खो देते हैं जो कि बच्चे के लिए मुश्किलें खड़ी कर देता है। बच्चा हताश हो जाए, हिम्मत हार जाए, उस वक्त भी अभिभावक को डटकर खड़ा रहना होगा। यही वह चीज है जो बच्चों के लिए सबसे बड़ा सहयोग होगा।प्यार जो जंजीर है जिससे माता-पिता अपने बच्चों से बंधे रहते हैं-अब्राहम लिंकन