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Hindi Diwas 2021: क्या हिन्दी दिवस मनाने से सच में हिन्दी भाषा की पहचान बढ़ी है? जानिए एक्सपर्ट से सच्चाई

Hindi Diwas 2021विशेषज्ञ के मुताबिक हिन्दी दिवस सिर्फ कुछ स्कूलों और सरकारी कार्यालयों तक सिमट कर रह गया है जहां एक हफ्ते को हिन्दी पखवाड़े का नाम देकर उत्सव का रूप दे दिया जाता है जबकि सरकारी से लेकर प्राइवेट दफ्तरों में हमारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी है।

By Shahina NoorEdited By: Updated: Tue, 14 Sep 2021 09:00 AM (IST)
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प्रोफेसर राजेंद्र गौतम ने कहा कि हिन्दी दिवस औपचारिकता बनकर रह गया है।
नई दिल्ली, शाहीना नूर। हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की पहचान है, जिसे देश में सबसे ज्यादा बोला जाता है। हमारे देश में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है, राष्ट्रभाषा के प्रचार और प्रसार के लिए ही 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी के प्रचार के लिए तत्कालीन भारतीय सरकार ने 14 सितंबर 1949 से हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। भारत में ज्यादातर क्षेत्रों में हिन्दी बोली जाती है इसलिए केन्द्र सरकार की कामकाज की भाषा हिन्दी होनी चाहिए।

अब सवाल यह उठता है कि हिन्दी दिवस मनाने से राष्ट्रभाषा का प्रचार और प्रसार बढ़ा है क्या? अगर बढ़ा है तो गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक सब ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग की थी, लेकिन आज तक यह संविधान की भाषा क्यों नहीं बन सकी? ऐसे बहुत सारे सवाल है जिनका जवाब साहित्यकार और शिक्षाविद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर राजेंद्र गौतम दे रहे हैं कि क्या सच में हिन्दी दिवस मनाने से हिन्दी भाषा की पहचान बढ़ी है।

हिन्दी दिवस औपचारिकता बनकर रह गया है:

राजेंद्र गौतम के मुताबिक हिन्दी दिवस सिर्फ कुछ स्कूलों और सरकारी कार्यालयों तक सिमट कर रह गया है जहां एक हफ्ते को हिन्दी पखवाड़े का नाम देकर उत्सव का रूप दे दिया जाता है। सरकारी से लेकर प्राइवेट दफ्तरों में हमारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी है, और हम राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार की बात करते हैं। जहां एक ओर देश हिन्दी भक्त होने का दावा कर रहा है वहीं दूसरी तरफ हिन्दी को दरकिनार भी कर रहा है।

हिन्दी को संविधान में राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है:

हिन्दी के प्रचार-प्रसार की बात करते हैं लेकिन हिन्दी बोलने और हिन्दी में अपनी बात रखने पर दूसरे को नीची निगाह से देखाते हैं। प्रशासनिक सेवाओं में हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाले विद्धार्थी जानते हैं कि उनका चयन हिन्दी भाषा से मुश्किल से होगा, इसलिए वो दिन-रात अंग्रेजी को समझने और पढ़ने में लगाते हैं। हिन्दी भाषा पर एक सीमा तर गर्व किया जा सकता है क्योंकि उसे देश में ही दर्जा नहीं दिया जा रहा। आज़ादी के दौर में गांधी जी ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दे दिया था लेकिन उनके बाद परिस्थितियां काफी बदल गई। उस समय हिन्दी को राष्ट्रीय एकता के रूप में देखा जाता था, लेकिन आज हिन्दी से रूतबे को दिक्कत होती है।

हिन्दी के साथ प्रांतीय भाषाओं को विकसित करना भी जरूरी:

प्रोफेसर राजेंद्र ने बताया कि इस समय हिन्दी के साथ ही अन्य प्रांतीय भाषाओं को भी विकसित करने की जरूरत है। कुछ जगहों पर हिन्दी ने अपना मुकाम बनाया है। कामकाज को बढ़ाने के लिए अरूणाचल प्रदेश और अंडोमान निकोबार में हिन्दी भाषा का चलन बड़ा है। तामिल आज भी हिन्दी का विरोध करते हैं।

हिन्दी भाषा को अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल से बिगाड़ा जा रहा है:

हिन्दी के साथ चार अंग्रेजी के शब्दों को जोड़ कर हिन्दी के स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। जब हमारे पास हिन्दी में प्रचालित शब्द मौजूद है तो उसके साथ पुस्तक की जगह बुक का इस्तेमाल करके हिन्दी को खराब किया जा रहा है। हिन्दी में उपलब्ध शब्दों को छोड़कर अंग्रेजी के शब्दों का चलन गलत है।

हिन्दी को सर्वमान्य बनाने के लिए क्या करें:

  • प्रोफेसर राजेंद्र के मुताबिक जनसामान्य के मन में हिन्दी के प्रति सम्मान का भाव होना बहुत जरूरी है। हिन्दी को वर्ग भेद के रूप में देखा जाता है, इस नजरिए को बदलना बेहद जरूरी है।
  • हिन्दी को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करना चाहिए। भारत सरकार का वैज्ञानिक और शब्दावली आयोग है जिसने शब्दों की उपलब्धता की मौजूदगी के लिए शब्दावली तैयार की है। भारत सरकार की करोड़ों रूपयों की इन योजनाओं का उपयोग करके अन्य विषयों की पढ़ाई भी हिन्दी में की जा सकती है। जरूरी नहीं है कि विज्ञान की पढ़ाई अंग्रेजी में आसान और हिन्दी में मुश्किल होती है यह गलत धारणा है।
  • हिन्दी दिवस को मनाने का मकसद हिन्दी को सम्मान देना है, इसे पढ़े-लिखों की भाषा के रूप में स्वीकार करना जरूरी है। अगर पढ़े लिखे वर्ग में हिन्दी के लिए सम्मान नहीं है तो इस भाषा को राष्ट्रभाषा बनाना मुश्किल होगा।