Mango : क्या आप जानते हैं इस फल के खास से 'आम' बनने की कहानी?
Mango Day आम जिसे हम फलों का राजा कहकर बुलाते हैं एक अद्भुत फल है। आज इसका दिन है। इसदिन पर आइये जानते हैं कि अपने स्वाद और गुणों से लोगों के दिलों पर राज करने वाले आम का इतिहास क्या है। इसकी उत्पत्ति कहां हुई और समय के साथ इसकी अलग-अलग वैरायटी कैसे आती गई। यह भी जानेंगें कि आम का नाम आम कैसे पड़ा।
By Ritu ShawEdited By: Ritu ShawUpdated: Sat, 22 Jul 2023 07:55 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। National Mango Day: आम भारतीय खेती का सबसे महत्वपूर्ण और पसंदीदा भाग है। यह सदियों से लोगों की पहली पसंद बना हुआ है और आज भी इसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ ही जाता है। आम की वैरायटीज भी हैं, जिसके जरिए इसने अलग-अलग लोगों के बीच अपनी पैठ बना रखी है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि भारतीयों के दिलों पर राज करने वाला आम भारत का है भी या नहीं? आज के आर्टिकल में हम यही जानेंगे कि आम का इतिहास क्या है और इसके पैदावार की शुरुआत कहां से हुई।
'आम' का इतिहास क्या है?जानकारी के मुताबिक हजारों साल पहले पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में आम की पैदावार हुई थी, जहां से यह दक्षिण भारत आया। आम को सबसे पहला नाम 'आम्र-फल' दिया गया था। इसे प्रारंभिक वैदिक साहित्य में 'रसाला' और 'सहकार' के रूप में भी संदर्भित किया गया है, जिसका जिक्र बृहदारण्यक उपनिषद और पुराणों में भी मिलता है। इसमें आम के पेड़ों की कटाई की निंदा की गई है। वहीं, दक्षिण भारत पहुंचने पर इस फल का नाम तमिल में अनुवाद करके 'आम-काय' रख दिया गया, जो बोलचाल की भाषा में बदलकर धीरे-धीरे 'मामकाय' बन गया। मलयाली लोगों ने इसे आगे चलकर 'मांगा' के नाम में बदल दिया। केरल पहुंचने पर पुर्तगाली इस फल से मोहित हो गए और उन्होंने इसे आम के रूप में दुनिया के सामने पेश किया।
सिंहासन और आम के बीच संबंधप्राचीन भारत में, शासकों ने प्रख्यात लोगों को उपाधी देने के लिए आम की किस्मों के नाम का इस्तेमाल किया गया, जैसे वैशाली की प्रसिद्ध वैश्या, को आम्र पाली नाम दिया गया। आम का पेड़ प्रेम के देवता, मन्मथ से भी जुड़ा था और इसके फूलों को हिंदू नंद राजाओं द्वारा भगवान का तीर माना जाता था। नंद शासन के दौरान ही सिकंदर भारत आया और पोरस के साथ युद्ध किया, जो आज भी इतिहास की दुनिया में काफी चर्चित है। इसके बाद जब वह ग्रीस वापस लौटने लगा, तो अपने साथ अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट फल ले गया।
आम और बुद्ध के बीच संबंधसमय बदलता गया, लेकिन आम के प्रति प्रेम और सम्मान में कोई कमी नहीं आई। गौतम बुद्ध के समय काल में आम ने और लोकप्रियता हासिल की। बौद्ध धर्म के उदय के साथ, आम इस धर्म के अनुयायियों के बीच आस्था और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करने लगा। बौद्ध शासकों ने आमों को एक उपहार के रूप में आदान-प्रदान करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं कूटनीति के लिए भी आम का इस्तेमाल किया जाने लगा। इस समयकाल के दौरान, बौद्ध भिक्षु जहां भी जाते थे अपने साथ आम ले जाते थे, जिससे यह फल लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया।
समृद्धि का प्रतीक बना आमप्राचीन भारत के शुरुआती लेखक-यात्री मेगस्थनीज और ह्सियुन-त्सांग ने लिखा है कि कैसे प्राचीन भारतीय राजा, विशेष रूप से मौर्य, आम को समृद्धि के प्रतीक के रूप मानते थे और सड़कों और राजमार्गों के किनारे आम के पेड़ लगाते थे। इसके अलावा इन्होंने फल के अविश्वसनीय स्वाद के बारे में भी लिखा, जिससे आम भारत के बाहर भी खूब लोकप्रिय हुआ। मुंडा आदिवासियों और स्वामी चक्रधर के दत्तराय संप्रदाय ने भी इस फल को प्राचीन भारत के जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मुगलों के बीच आम की दीवानगीसमय और आगे बढ़ा और भारत की जमीन ने नए शासक देखे। अब समय था मुगल काल का और अलाउद्दीन खिलजी आम का पहला संरक्षक बना। उसने अपने सिवामा किले में एक भव्य दावत दी, जिसके मेन्यू में अलग-अलग तरह के आमों के अलावा कुछ भी नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि लोदी ने बाबर को आम से परिचित कराया, यह फल उसे इतना पसंद आया कि इसने उसे न केवल राणा सांगा का सामना करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि भारत में अपने साम्राज्य की नींव रखने के लिए भी प्रेरित किया।
इसके अलावा आम का एक और किस्सा है, जो आम के प्रति मुगलों का प्रेम दर्शाता है। कहते हैं कि भारत से काबुल भागते समय, हुमायूं ने आमों की अच्छी खासी खेप अपने पास जमा कर ली थी। वहीं, अकबर ने दरभंगा के पास विशाल लक्खी बाग बनवाया, जिसमें एक लाख से अधिक आम के पेड़ उगे थे। माना जाता है कि तोतापुरी, रटौल और केसर सहित महंगे आमों की शुरुआत यहीं से हुई। इसके अलावा शाहजहां का आमों के प्रति प्रेम इतना गहरा था कि उसने अपने ही बेटे औरंगज़ेब को सज़ा दी और घर में नज़रबंद कर दिया क्योंकि उसने महल के सारे आम अपने पास रख लिए थे। ये आम ही थे, जो औरंगजेब ने फारस के शाह अब्बास को सिंहासन की लड़ाई में उसका समर्थन हासिल करने के लिए भेजे थे।
आम पन्ना की शुरुआतआम के प्रति अपार प्रेम रखने वाले मुगलों के शासनकाल में ही आमपन्ना का आविष्कार हुआ। जहांगीर और शाहजहां ने आम पन्ना, आम का लौज़ और आम का मीठा पुलाव जैसी अनूठी डिशेज का इजाद करने के लिए अपने खानसामा (रसोइये) को ईनाम दिया। वहीं, नूरजहां ने अपनी प्रसिद्ध वाइन बनाने के लिए आम और गुलाब के मिश्रण का इ्स्तेमाल किया। पीले-सुनहरे चौसा आमों की भी एक कहानी है। कहते हैं कि जब शेर शाह सूरी ने हुमायूं पर जीत हासिल की तब उसका जश्न मनाने के लिए इस आम को पेश किया गया था। वहीं, दशहरी आम का जन्म रोहिल्ला सरदारों के कारण माना जाता है।
मराठा और आम के बीच संबंधमराठों के पेशवा, रघुनाथ पेशवा ने मराठा वर्चस्व के संकेत के रूप में 1 करोड़ आम के पेड़ लगाए। लोककथाओं के मुताबिक इन्हीं पेड़ों में से एक का फल, अल्फांसो निकला, जो आमों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।अंग्रेजों ने छीन लिया आम का वर्चस्वयूरोपीय लोगों के आने के बाद आम का वर्चस्व काफी प्रभावित हुआ और यह एक साम्राज्य निर्माता से केवल एक फल बनकर रह गया। इसका कारण यह माना जाता है कि चूंकि अंग्रेज कूटनीति के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते थे इसलिए आम की शाही ठाठ भी धीरे-धीरे कम हो गई। हालांकि, आम अब भी भारतीयों के मन में बसा हुआ है। अहमदाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, दिल्ली और गोवा में मैंगो फेस्टिवल मनाया जाता है, जिसकी वजह से यह एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में भी पहचाना जाता है।