Paneer History: आपका पसंदीदा पनीर आखिर कैसे पहुंचा भारत?
Paneer Origin पनीर को पूरे भारत में काफी चाव से खाया जाता है। एक ऐसा फूड आइटम है जिसे देश के किसी भी कोने में पाया जा सकता है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के हर हिस्से में पनीर का अलग स्वाद चखने को मिलता है।
By Ritu ShawEdited By: Ritu ShawUpdated: Tue, 23 May 2023 03:51 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Paneer: पनीर, एक ऐसा फूड आइटम जिसका नाम सुनकर एक नहीं बल्कि कई तरह की डिशेज याद आ जाती हैं। भारत में कोई भी फंक्शन मानो पनीर के बिना अधूरा सा लगता है। लगभग हर भारतीय को ऐसा लगता है कि प्लेट में पनीर से बनी एक डिश तो होनी ही चाहिए तभी वो अपनी मील को स्पेशल मानते हैं।
मटर पनीर से लेकर शाही पनीर, कढ़ाई पनीर, चिली पनीर और पनीर नू शाक तक भारत में आपको एक पनीर के कई रूप और स्वाद देखने और चखने को मिल जाएंगे। पनीर और भारतीयों का रिश्ता कुछ इस कदर जुड़ चुका है, जिसे कभी अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन ये रिश्ता हमेशा ऐसा नहीं था क्योंकि पनीर हमेशा से भारत में मौजूद नहीं था। जी हां। पनीर भारतीय फूड आइटम नहीं है।
हो सकता है कि इसे जानकर आपको थोड़ा आश्चर्य हुआ हो, लेकिन यह सच है। आज भारत में भले ही पनीर के अनगिनत डिशेज बनते हैं लेकिन पनीर खुद भारत का नहीं है। इस आर्टिकल में आज यही जानने की कोशिश करेंगे कि ये विदेशी मेहमान भारत कब और कैसे आया क्योंकि आज ये इस कदर यहां रच बस गया है, जैसे इसका जन्म यहीं हुआ हो।
पनीर का इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि क्योंकि भारत में गाय को एक पवित्र जीव के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इनसे मिलने वाले दूध को जानबूझकर फाड़ने का रिवाज नहीं रहा। दूध में खट्टे के इस्तेमाल को अपवित्र और अशुभ माना जाता है। इसके अलावा वेदों में दूध से बनने वाले मक्खन, दही और घी के कई सबूत मिलते हैं, लेकिन पनीर का जिक्र कहीं नहीं मिलता।
अफगान-ईरानी रिश्ता
कुछ थ्योरीज के मुताबिक भारत में पनीर ईरान और अफगानिस्तान के व्यापारी लेकर आए, जो यहां 16वीं शताब्दी में मसालों की खोज में आए थे। ऐसा हमारा नहीं बल्कि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान का कहना है कि पनीर भारत में अफगान और ईरानी लोगों द्वारा लाया गया था। उस समय बकरी या भेड़ के दूध से पनीर बनाया जाता था, जिसे तब तबरीज़ कहा जाता था।पुर्तगाली-बंगाली रिश्ता
वहीं कुछ थ्योरीज इस बात पर जोर देती हैं कि बंगाल में रहने वाले पुर्तगालियों ने 17वीं शताब्दी में स्थानीय लोगों को साइट्रिक एसिड का इस्तेमाल करके दूध को फाड़ना सिखाया। वे अपने देश से ताजा पनीर लाए थे, फिर उन्होंने बंगालियों को एसिड के जरिए दूध फाड़ने की टेकनीक सिखाई, जिसके बाद से भारत में दूध को न फाड़ने की सदियों से चली आ रही परंपरा टूटी। इस तरह बंगालियों ने पनीर/छेना बनाना सीखा। आज वहां छेना से बनने वाली मिठाई 'रसगुल्ला' दुनियाभर में मशहूर है।