किस्मत अच्छी है: राणा दग्गुबति
सेना का मनोबल बढ़ाने वाली वॉर फिल्मों को वक्त की जरूरत मानते हैं राणा डग्गुबाती। पानी के अंदर लड़ी गई ऐसी ही एक जंग की दास्तां बयां करती फिल्म ‘द गाजी अटैक’ का वह बने हैं हिस्सा
By Srishti VermaEdited By: Updated: Sat, 18 Feb 2017 09:56 AM (IST)
गत वर्ष ‘बाहुबली’ के विलेन भल्लाल देव के अवतार से राणा डग्गुबाती को बेशुमार लोकप्रियता मिली। हिंदी की फिल्मों में भी उनके रसूख में इजाफा हुआ। अब उनकी फिल्म ‘द गाजी अटैक’ आ रही है। जिसमें वह लेफ्टिनेंट कमांडेंट अर्जुन वर्मा के रोल में हैं।
गौरवशाली अतीत की गाथा
राणा बताते हैं, ‘यह भारत-पाक युद्ध की वह दास्तान है, जो इतिहास में दर्ज नहीं हो सकी। उन शूरवीर नौसैनिकों की गाथा लोगों के समक्ष नहीं आ पाई, जिन्होंने विशाखापत्तनम जैसे अहम पोर्ट को ध्वस्त होने से बचाया। पाकिस्तान के ‘पीएनएस गाजी’ के आक्रमण से हमारा जहाजी बेड़ा ‘आईएनएस विक्रांत’ बच सका। ’
इसलिए दिया नवोदित निर्देशक को मौका
वॉर फिल्म शूट करने की जिम्मेदारी अक्सर अनुभवी निर्देशकों को दी जाती है। फिर हमने नवोदित संकल्प को वह जिम्मेदारी क्यों सौंपी? दरअसल इसकी वजह थी कि अतीत के इस अनकहे-अनसुने किस्से को वह ढूंढ़कर लाए थे। यह वीरगाथा गोपनीय फाइलों में कैद थी। वहां से तथ्यों को जुटाकर उन्होंने कहानी की शक्ल दी। किताब लिख दी। वह हमारे पास इस कहानी पर शॉर्ट फिल्म बनाने के इरादे से आए थे। हमने इसरार किया कि वह फीचर फिल्म बनाएं। चूंकि उनके पास तकनीकी दक्षता नहीं थी तो हमने उन्हें इंडस्ट्री के बेहतरीन तकनीशियन मुहैया करवाए। इसकी एडिटिंग राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता एश्रीकर प्रसाद ने की है। कैमरे की कमान माधी के हाथों में थी। हमारे आर्ट डायरेक्टर ने जो युद्धपोत व जहाजी बेड़े बनाए, उन्हें देखकर फर्क करना मुश्किल है कि वे असल नहीं हैं।’
राणा बताते हैं, ‘यह भारत-पाक युद्ध की वह दास्तान है, जो इतिहास में दर्ज नहीं हो सकी। उन शूरवीर नौसैनिकों की गाथा लोगों के समक्ष नहीं आ पाई, जिन्होंने विशाखापत्तनम जैसे अहम पोर्ट को ध्वस्त होने से बचाया। पाकिस्तान के ‘पीएनएस गाजी’ के आक्रमण से हमारा जहाजी बेड़ा ‘आईएनएस विक्रांत’ बच सका। ’
इसलिए दिया नवोदित निर्देशक को मौका
वॉर फिल्म शूट करने की जिम्मेदारी अक्सर अनुभवी निर्देशकों को दी जाती है। फिर हमने नवोदित संकल्प को वह जिम्मेदारी क्यों सौंपी? दरअसल इसकी वजह थी कि अतीत के इस अनकहे-अनसुने किस्से को वह ढूंढ़कर लाए थे। यह वीरगाथा गोपनीय फाइलों में कैद थी। वहां से तथ्यों को जुटाकर उन्होंने कहानी की शक्ल दी। किताब लिख दी। वह हमारे पास इस कहानी पर शॉर्ट फिल्म बनाने के इरादे से आए थे। हमने इसरार किया कि वह फीचर फिल्म बनाएं। चूंकि उनके पास तकनीकी दक्षता नहीं थी तो हमने उन्हें इंडस्ट्री के बेहतरीन तकनीशियन मुहैया करवाए। इसकी एडिटिंग राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता एश्रीकर प्रसाद ने की है। कैमरे की कमान माधी के हाथों में थी। हमारे आर्ट डायरेक्टर ने जो युद्धपोत व जहाजी बेड़े बनाए, उन्हें देखकर फर्क करना मुश्किल है कि वे असल नहीं हैं।’
सैनिकों की वीरता का सम्मान
राणा डग्गुबाती आगे कहते हैं, ‘यह फिल्म उनकी वीरता का सम्मान है। हमने पानी के भीतर 18 दिनों तक शूटिंग की। मैं एक प्रामाणिक गोताखोर हूं। वह कला इस फिल्म के दौरान काम आई। इस तरह की वॉर फिल्मों में ड्रामे की गुंजाइश कम रहती है। इसके बावजूद हमने पटकथा इस तरह गढ़ी है कि दर्शकों को युद्ध के दौरान होने वाले तनाव की अनुभूति होगी। हॉलीवुड में नियमित अंतराल पर सेना का मनोबल बढ़ाने वाली फिल्में बनती रही हैं। हमारे यहां भी इस जोनर की फिल्में बननी चाहिए।’रणनीति में यकीन नहीं
राणा डग्गुबाती कहते हैं, ‘ हर किरदार की किस्मत होती है। वह सही वक्त पर सही हाथों में चला जाता है। अगर मैं रणनीति के तहत चलता कि एक साल सिर्फ हिंदी तो दूजे बरस सिर्फ साउथ की फिल्में करूंगा, तो ‘बाहुबली’ मेरे खाते में आती ही नहीं। ‘द गाजी अटैक’ भी नहीं, मिलती। ‘बाहुबली’ के बाद भी सिर्फ उसी स्केल की फिल्में करनी है, इसी सोच के साथ काम नहीं किया जा सकता।’
राणा डग्गुबाती आगे कहते हैं, ‘यह फिल्म उनकी वीरता का सम्मान है। हमने पानी के भीतर 18 दिनों तक शूटिंग की। मैं एक प्रामाणिक गोताखोर हूं। वह कला इस फिल्म के दौरान काम आई। इस तरह की वॉर फिल्मों में ड्रामे की गुंजाइश कम रहती है। इसके बावजूद हमने पटकथा इस तरह गढ़ी है कि दर्शकों को युद्ध के दौरान होने वाले तनाव की अनुभूति होगी। हॉलीवुड में नियमित अंतराल पर सेना का मनोबल बढ़ाने वाली फिल्में बनती रही हैं। हमारे यहां भी इस जोनर की फिल्में बननी चाहिए।’रणनीति में यकीन नहीं
राणा डग्गुबाती कहते हैं, ‘ हर किरदार की किस्मत होती है। वह सही वक्त पर सही हाथों में चला जाता है। अगर मैं रणनीति के तहत चलता कि एक साल सिर्फ हिंदी तो दूजे बरस सिर्फ साउथ की फिल्में करूंगा, तो ‘बाहुबली’ मेरे खाते में आती ही नहीं। ‘द गाजी अटैक’ भी नहीं, मिलती। ‘बाहुबली’ के बाद भी सिर्फ उसी स्केल की फिल्में करनी है, इसी सोच के साथ काम नहीं किया जा सकता।’