Independence Day 2023: मधुबनी से लेकर कालीघाट तक, इन भारतीय लोक चित्रकला की मुरीद है दुनिया
Independence Day 2023 भारत इस साल अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से मिली आजादी याद में हर साल यह दिन मनाया जाता है। आजादी के 76 वर्षों में भारत ने हर क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे भारत की 10 ऐसी लोक चित्रकलाओं के बारे में जो दुनियाभर में मशूहर हैं।
By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Tue, 15 Aug 2023 09:54 AM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Independence Day 2023: आज का दिन हर एक भारतीय के लिए बेहद खास है। यह वह दिन है,जब 200 साल तक जड़की हुई गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर भारत में आजादी का मुंह देख था। इस साल भारत अपनी आजादी के 76 साल पूरे करने वाला है। ऐसे में अपने 77वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए पूरे देश में तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं। बीते 76 साल में भारत में कई सारी उपलब्धियां हासिल की है। खेलकूद हो या फिर स्पेस साइंस हर क्षेत्र में भारत में अपना परचम लहराया है।
इन सबके अलावा आजादी के बाद से ही दुनियाभर में भारतीय संस्कृति और कला की लोकप्रियता भी तेजी से बढ़ी है। देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी लोग यहां की कला से आकर्षित होकर खिंचे चले आते हैं। भारतीय लोक चित्रकला यानी इंडियन फोक आर्ट इन्हीं कलाओं में से एक है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंची यह भारतीय लोक कला आज भी देश के कई हिस्सों में जीवित है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आज जानेंगे भारत के 10 लोकप्रिय लोक चित्रकला के बारे में, जिन्हें दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल है।
मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी पेंटिंग बिहार के मिथिला क्षेत्र की एक बेहद मशहूर लोक चित्रकला की एक शैली है। मधुबनी पेंटिंग अक्सर रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक विषयों को दर्शाती हैं। इसे मिथिला कला भी कहा जाता है, जिसकी उत्पत्ति बिहार में हुई थी। यह सबसे लोकप्रिय भारतीय लोक कलाओं में से एक है, जिसका अभ्यास ज्यादातर महिलाएं करती हैं।पट्टचित्र लोक कला
पट्टचित्र लोक कला ओडिशा और पश्चिम बंगाल की एक कपड़ा-आधारित स्क्रॉल पेंटिंग है, जिसमें एंगुलर बोल्ड लाइन्स वाली ये पेंटिंग महाकाव्यों और देवी-देवताओं को दर्शाती हैं। इसकी शुरुआत पांचवीं शताब्दी से पुरी और कोणार्क जैसे धार्मिक केंद्रों में हुई थी। इस कला के बारे में अनोखी बात यह है कि इस शैली में बनाए गए चित्रों में दर्शाई गई पोशाकों पर मुगल काल का भारी प्रभाव था।
वर्ली पेंटिंग भारतीय लोक कला
2500 ईसा पूर्व में भारत के पश्चिमी घाट से वरली जनजातियों द्वारा शुरू की गई, यह कला भारत के सबसे पुराने कला रूपों में से एक है। इस कला में मुख्य रूप से कई आकृतियां जैसे मछली पकड़ने, शिकार, त्योहारों, नृत्य और दैनिक जीवन गतिविधियों को चित्रित करने के लिए अलग-अलग आकारों (वृत्तों, त्रिकोणों और वर्गों) का उपयोग है। इस शैली के तहत सभी चित्र लाल गेरू या गहरे रंग के बैकग्राउंड पर बनाये जाते हैं, जबकि आकृतियां सफेद रंग की हेती हैं।तंजौर चित्रकला
तंजौर या तंजावुर पेंटिंग तमिलनाडु की दरबारी पेंटिंग की एक शैली है। इस चित्रकला की शुरुआत 1600 ई. में हुई, जिसे तंजावुर के नायकों ने प्रोत्साहित किया था। इसकी विशेषता सोने की पत्ती है, जो चमकते हुए इस पेंटिंग को एक असली लुक देती है। तंजौर पेंटिंग में अक्सर शिव और विष्णु जैसे हिंदू देवताओं को दर्शाया जाता है।