Indian Traditional Art: भारतीय कला के 6 खूबसूरत रूप जिनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए
Indian Traditional Art कला का हर प्रकार भिन्न है और अपने रूप में काफी सम्मानित है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ रही है। कला के कुछ रूप आधुनिकीकरण के फलस्वरूप पहले जैसे ही बने हुए हैं तो कुछ ने विकसित होकर नए रूप और महत्वपूर्ण विकल्पों को अपना लिया है।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Wed, 14 Dec 2022 06:00 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Indian Traditional Art: भारत की सांस्कृतिक और रचनात्मक धरोहर बहुत समृद्ध है। अपनी विशिष्ट और विविध सभ्यताओं के कारण भारत में कला की विशाल विविधता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ रही है। कला के कुछ रूप आधुनिकीकरण के फलस्वरूप पहले जैसे ही बने हुए हैं, तो कुछ ने विकसित होकर नए रूप और महत्वपूर्ण विकल्पों को अपना लिया है। कला का हर प्रकार भिन्न है और अपने रूप में काफी सम्मानित है। भारत की कुछ मशहूर पारम्परिक कलाओं के बारे में आपको भी जानना चाहिए।
वर्ली पेंटिंग की दुनिया का प्रचार
महाराष्ट्र के ठाणे और नासिक क्षेत्रों में वर्ली कलाकारों ने 2500 ईसा पूर्व इस कलाकृति की रचना की थी। इन चित्रणों में मुख्यतः जनजाति के प्राकृतिक वातावरण और सामाजिक रस्मों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। दैनिक जीवन को इसके सभी रूपों - खेती, पूजा, नृत्य, शिकार आदि में दिखाया गया है। कुछ सामान्य रूपांकन पीली या लाल पृष्ठभूमि पर सफ़ेद ज्यामितीय डिजाइन्स हैं। वर्ली चित्रकारी की रचना परम्परागत रूप से नव-विवाहित महिलाओं द्वारा झोपड़ियों को सजाने और वैवाहिक उपहारों के रूप में की गई थी। परम्परागत रूप से, वर्ली चित्रकारी मिट्टी से बनी दीवारों पर सफ़ेद पेस्ट पर दी गई थी। बारी-बारी से बांस के डंडों के एक छोर को कूंच कर पेंटब्रश के रूप में काम में लिया जाता है। अधिकांशतः वे बिलकुल प्राचीन गुफाओं की चित्रकारी के समान लगती हैं। वर्ली चित्रकारी की शैली में आधुनिक हास्य-चित्रों (कैरीकेचर) की रचना के लिए गेरुआ पृष्ठभूमि और सफ़ेद पेंट का प्रयोग करें।
मधुबनी मैजिक
कला के इस रूप, जिसे मिथिला कला भी कहा जाता है की जड़ जनक के राज्य के समय से है, जो आज के बिहार और नेपाल में स्थित है। 1930 के दशक में भूकंप के बाद इस कलात्मक पद्धति से पर्दा हटा और पहली बार इस पर बाहर की बाकी दुनिया का ध्यान गया। दीवारों पर देवी-देवताओं, पशुओं और पेड़-पौधों का चित्रण करने वाली चित्रकारी और भित्ति-चित्र अक्सर महिला कलाकारों द्वारा बनाए जाते हैं। कला का यह रूप अपने ज्यामितीय पैटर्न के प्रयोग के कारण विशिष्ट है और दूसरी संस्कृतियों और रीति-रिवाज़ों के चित्रण की अपनी भावपूर्ण विधि के लिए इसे काफी प्रशंसा मिली है।आकर्षक कलमकारी
कला के इस रूप का इतिहास लगभग तीन हज़ार वर्ष पुराना है और इसकी जड़ें फारसी डिजाइन से गहराई से जुड़ी हैं। कलमकारी शाब्दिक रूप से “कलम से बने रेखाचित्र” हैं। आंध्र प्रदेश ब्लॉक प्रिंटिंग की सदियों पुरानी परम्परा का मूल स्थान है। यह छपाई मानवीय हाथों के हुनर और ध्यान पर आश्रित है। कलमकारी हलके, प्राकृतिक रंगों, जैसे कि हरे, लाल, इंडिगो, मस्टर्ड और काले रंगों के प्रयोग से पहचानी जाती है। आजकल एथनिक वस्त्रों पर इस प्रकार की कलाकृति देखी जा सकती है और इसमें प्रकृति और पशुओं से लेकर महाभारत या रामायण की कथाओं तक हर चीज दर्शाई जा सकती है।
पट्टचित्र में पूर्णता
पट्टचित्र कलाकृति का जन्म पांचवी सदी में ओडिशा और पश्चिम बंगाल में हुआ था। कपड़े के स्क्रॉल पर की गई इन चित्रकारी में मुग़ल काल का ठोस प्रभाव दिखाई देता है। पट्टचित्र की धार्मिक और पौराणिक विषयवस्तु कला के पारखियों के लिए काफी समय से विस्मय का स्रोत रही है। इन कलाकृतियों को बनाने वाले कलाकार अक्सर लाल, काले, नीले, पीले और सफ़ेद जैसे स्पष्ट रंगों का प्रयोग करते हैं। ताड़ (पाम) के पत्तों से लेकर सिल्क तक, इस कला रूप का विकास हुआ है और आज भी इसका व्यापक प्रयोग होता है।शानदार कालीघाट
चित्रकारी की इस शैली का जन्म 19वीं सदी में भारत के बंगाल क्षेत्र में हुआ था। कपड़ों और पट्टों पर बनाई जानी वाली इन चित्रकारियों में अक्सर प्राचीन महाकाव्यों के देवताओं, देवियों और और दृश्यों का चित्रण होता था। चित्रकारी की स्पष्ट शैली, जो आज भी दर्शकों को सम्मोहित करती है, साधारण जीवन के अद्भुत चित्रण के फलस्वरूप प्रसिद्ध हुई। कालीघाट की चित्रकारी की विशिष्टता वह ख़ास रूपरेखा है जो पूरी कलाकृति में लगातार और प्रवाहमान होती है। पहली बार विकसित होने के बाद से चित्रकारी की यह विधि भारी संख्या में विभिन्न चित्रकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है।