ISRO: असफलता से सीख भरी सफलता की उड़ान, जीएसएलवी डी-5 और स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन ने रचा इतिहास
ISRO 5 जनवरी 2014 को चार बजकर 18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी डी-5 को लांच किया गया था और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद जीसैट-14 अपनी कक्षा में पहुंच गया।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 07 Jul 2022 10:15 AM (IST)
संतोष आनंद। 5 जनवरी, 2014 का दिन भारतीय विज्ञान के लिए बड़ा ऐतिहासिक था। इसी दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने जीएसएलवी डी-5 की सफल लांचिंग की थी। जीएसएलवी डी-5 पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन है, जिसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित तक इतिहास रच दिया था। इसके साथ भारत उन देशों में शामिल हो गया, जिनके पास अपनी स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक है। अमृत-महोत्सव श्रृंखला के तहत पढ़ें इससे देश को स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ने में किस तरह मदद मिली...
संतोष। किसी देश के पास अपना स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन होना बड़े गर्व की बात है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए भी स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन तैयार करना इतना आसान नहीं रहा। यह वही इंजन है, जिसे तैयार करने में विज्ञानियों को करीब 20 वर्ष लग गए। हालांकि पहले इस तकनीक को भारत रूस से हासिल करना चाहता था, मगर अमेरिका के दबाव में रूस ने यह तकनीक हमें नहीं दी थी। लेकिन इसरो के विज्ञानियों से इसे स्वदेशी तरीके के विकसित कर दिखा दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं। बता दें कि दो हजार किलोग्राम वजनी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए क्रायोजेनिक इंजन की जरूरत पड़ती है। 5 जनवरी, 2014 को चार बजकर 18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी डी-5 को लांच किया गया था और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद जीसैट-14 अपनी कक्षा में पहुंच गया। इस प्रक्षेपण की कामयाबी के पीछे इसरो के विज्ञानियों की 20 साल की मेहनत थी, जो उन्होंने देसी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में लगाई। इस पूरे अभियान की कुल लागत करीब 356 करोड़ रुपये रही।
असफलता से सीख: यह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन पहले तीन बार नाकाम रहा था। पहली बार क्रायोजेनिक इंजन का एक बूस्टर पंप जाम हो गया था। दूसरी बार कुछ कनेक्टर फेल हो गए थे, तीसरी बार इसी राकेट में एक लीक की जानकारी मिली थी। पर आखिरकार 5 जनवरी, 2014 को इसकी सफलता के साथ भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाले दुनिया के चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया। इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के बाद दुनिया की छठी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया, जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफलता हासिल की।
क्रायोजेनिक इंजन में तरल हाइड्रोजन और तरल आक्सीजन का उपयोग होता है, जो बर्फ से भी बहुत कम तापमान पर काम करता है। पहले भारत को क्रायोजेनिक इंजन के लिए विदेश पर निर्भर रहना पड़ता था, क्योंकि पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया ने यह तकनीकी देने से इनकार कर दिया गया था। भारतीय क्रायोजेनिक इंजन ने वैसा ही प्रदर्शन किया है जैसा इस मिशन के लिए अनुमान लगाया गया था। इसकी कामयाबी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया का अन्य कोई देश ऐसा नहीं है, जिसने पिछले 20 वर्षों में क्रायोजेनिक तकनीक का विकास किया हो।