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चाय (Tea)

Tea चाय कैमेलिया साइनेंसिस पौधे की ताजी हरी पत्तियों और कलियों को उबले पानी में डुबो कर बनाया जाने वाला एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है। चलिए जानते हैं कि चाय का इतिहास क्या है और भारत में इसकी शुरुआत कहां से हुई।

By Ritu ShawEdited By: Ritu ShawUpdated: Fri, 21 Apr 2023 06:35 PM (IST)
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चलिए जानते हैं कि चाय का इतिहास क्या है और भारत में इसकी शुरुआत कहां से हुई।
चाय, आज एक ऐसा पेय पदार्थ बन चुका है, जिसके बिना दुनियाभर के बहुत से लोगों की सुबह अधूरी होती है। चाय, कैमेलिया साइनेंसिस पौधे की ताजी हरी पत्तियों और कलियों को उबले पानी में डुबो कर बनाया जाने वाला एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है। इसके दो मुख्य प्रकार है, छोटे-पत्तों वाले चीनी पौधे (सी साइनेंसिस किस्म साइनेंसिस) और बड़े-पत्ते वाले असम पौधे (सी साइनेंसिस किस्म असमिका)। इन पत्तियों को कई बार फरमेंट किया जाता है और कई बार बिना फरमेंट किए ही छोड़ दिया जाता है।

चाय का व्यापार 

चीन में चाय लगभग 2700 ईसा पूर्व से जानी जाती है। उस दौरान यह पानी में ताजी पत्तियों को उबालकर प्राप्त किया जाने वाला एक औषधीय पेय था। लेकिन तीसरी शताब्दी के आसपास यह एक दैनिक पेय बन गया और चाय की खेती शुरू कर दी गई। लगभग 800 साल पहले बीज जापान लाए गए, जहां 13वीं सदी तक इसकी खेती शुरू हो गई। अमॉय से चीनी 1810 में फॉर्मोसा (ताइवान) के द्वीप में चाय की खेती लाए। जावा में चाय की खेती डच के तहत शुरू हुई, जो 1826 में जापान से बीज लाए और चीन में 1833 में बीज, लेबर के साथ खेती शुरू की गई।

भारत में चाय का इतिहास

1824 में बर्मा और भारतीय राज्य असम के बीच की सीमा के साथ जुड़े पहाड़ियों में चाय के पौधे खोजे गए थे। अंग्रेजों ने 1836 में भारत में और 1867 में सीलोन (श्रीलंका) में चाय की खेती की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने पहले चीन से लाए बीजों का इस्तेमाल किया। हालांकि, बाद में असम के पौधे के बीजों का इस्तेमाल करने लगे।

यूरोप में चाय का इतिहास

डच ईस्ट इंडिया कंपनी 1610 में चीन की चाय की पहली खेप यूरोप ले गई। साल 1669 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी जावा में बंदरगाहों से चीन की चाय लंदन के बाजार में लाई। बाद में, ब्रिटिश भारत और सीलोन में चाय उगाई जाने लगी, जिसे लंदन में चाय व्यापार के केंद्र मिन्सिंग लेन तक पहुंचा। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में, चाय की खेती रूसी जॉर्जिया, सुमात्रा और ईरान तक फैल गई और गैर-एशियाई देशों जैसे नटाल, मलावी, युगांडा, केन्या, कांगो, तंजानिया, अफ्रीका के मोजाम्बिक, ब्राजील, दक्षिण अमेरिका में पेरू,अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड तक फैल गई।

चाय पत्ती के प्रकार

चाय को उगाए जाने के क्षेत्र के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जैसे कि चीन, सीलोन, जापानी, इंडोनेशियाई और अफ्रीकी चाय। वहीं भारतीय चाय को भी छोट-छोटे राज्यों के अनुसार बांटा गया है, जैसे कि दार्जिलिंग, असम और नीलगिरी। इनके अलावा श्रीलंका से उवा और डिंबुला, चीन के अनह्वेई प्रांत के ची- से कीमुन और जापान के एंशु। इन जगहों पर उगने वाली चाय दुनियाभर में मशहूर है।

चाय के प्रकार

ब्लैक टी - ब्लैक टी अब तक के सबसे आम प्रकार के उत्पादन है, असम या संकर पौधों से इसे सबसे अच्छा बनाया जाता है।

ग्रीन टी - ग्रीन टी का उत्पादन आमतौर पर चीन के पौधे से किया जाता है और इसे ज्यादातर जापान, चीन और कुछ हद तक मलेशिया और इंडोनेशिया में उगाया जाता है।

ऊलोंग टी - ऊलोंग टी का उत्पादन ज्यादातर दक्षिणी चीन और ताइवान में चीन के पौधे की एक विशेष किस्म से किया जाता है।

कैमेलिया साइनेंसिस (चाय का पौधा)

चाय का सबसे मुख्य एलिमेंच कैफीन है, जिसकी वजह से इसे पीने के बाद शरीर से सुस्ती दूर भाग जाती है। चाय में कैफीन एक सामान्य एलिमेंट है। लेकिन हर चाय पत्ती का रंग, स्वाद और सुगंध एक दूसरे से अलग होता है। ताजी पत्तियों में लगभग 4 प्रतिशत कैफीन होता है, जबकि बनकर तैयार होने के बाद इसमें 60 से 90 मिलीग्राम कैफीन होता है। चाय में सबसे महत्वपूर्ण केमिकल टैनिन या पॉलीफेनोल्स हैं, जो रंगहीन, कड़वे-स्वाद वाले पदार्थ हैं और इन्ही की वजह से चाय में हल्का सा कसैलापन आता है। जब पॉलीफेनोल ऑक्सीडाइज नाम का एंजाइम इसमें एक्टिव होता है, तो पॉलीफेनोल्स एक लाल रंग प्राप्त कर लेते हैं और पेय के स्वादिष्ट बनाने वाले यौगिकों का निर्माण करते हैं। इसके अलावा इसमें कुछ एसेंशियल ऑयल होते हैं, जो चाय की सुगंध में योगदान करते हैं और विभिन्न शर्करा और अमीनो एसिडए पेय की गुणवत्ता में भी योगदान करते हैं।

चाय पीने के फायदे

1. चाय में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।

2. कॉफी की तुलना में चाय में कैफीन कम होता है।

3. चाय आपके दिल के दौरे और स्ट्रोक के जोखिम को कम कर सकती है।

4. बिना दूध की चाय कैलोरी फ्री होती है।

चाय पीने के नुकसान

1. आयरन का अवशोषण कम होना

2. चिंता, तनाव और बेचैनी बढ़ाए

3. खराब नींद

4. जी मिचलाना

5. गर्भावस्था में दिक्कतें

6. सिरदर्द

7. कैफीन पर निर्भरता